क्या हैं बुरांश के फायदे, लेकिन क्यों खतरे में पड़ा इसका अस्तित्व?

बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

By Dayanidhi

On: Monday 14 February 2022
 

हिमालयी राज्यों में 12 माह प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी रहती है। पर बसंत ऋतु की बात ही कुछ और है, इस ऋतु के आने पर पहाड़ो की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख के महीनों में यहां मौसमी फलों, फूलों आदि की प्रचूरता बढ़ जाती है। इन्हीं महीनों में खिलने वाला एक मौसमी फूल "बुरांश" है। मार्च और अप्रैल के महीनों में पहाड़ इसके फूलों के रंग से सराबोर हो जाते हैं।

बुरांश उत्तराखंड का राजकीय वृक्ष है, जबकि यह हिमाचल और नागालैंड का राजकीय पुष्प भी है। एनवायर्नमेंटल इनफार्मेशन सिस्टम (ईएनवीआईएस) रिसोर्स पार्टनर ऑन बायोडायवर्सिटी के मुताबिक बुरांश का वानस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम एसएम है। बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडोडेंड्रोन और संस्कृत में कुर्वाक के नाम से भी जाना जाता है। 'रोडोडेंड्रोन' दो ग्रीक शब्दों से लिया गया है, 'रोड' का अर्थ है 'गुलाबी लाल' और 'डेंड्रोन' का अर्थ है 'पेड़' में खिलने वाले गुलाबी लाल फूलों से है। मार्च-अप्रैल के महीनों में बुरांश के फूलने का समय है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की आर. आर्पोरियम नामक प्रजाति पाई जाती है। यह प्रजाति कुमाऊं और गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में  बहुत अधिक पाई जाती है।

बुरांश एक सदाबहार पेड़ है जो समुद्र तल से 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है, यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है, जिसमें खुरदरी और गुलाबी भूरी छाल होती है। पत्तियां शाखाओं के सिरे की ओर भरी हुई, तिरछी-लांसोलेट और सिरों पर संकुचित, 7.5 से 15 × 2.5 - 5 सेमी, ऊपर चमकदार, नीचे सफेद या जंग के सामान भूरे रंग के होते हैं। फूल कई हिस्सों में, बड़े, गोलाकार, गहरे लाल या गुलाबी रंग के होते हैं। 

किन-किन देशों में पाया जाता है बुरांश

बुरांश मूल रूप से भारतीय है, यह पूरे हिमालयी इलाकों में फैला हुआ है। यह भूटान, चीन, नेपाल और पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका में भी पाया जाता है।

बुरांश का आर्थिक महत्व

बुरांश के पेड़ की लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में और लकड़ी का कोयला बनाने के लिए किया जाता है। लकड़ी का उपयोग टूल-हैंडल्स, बॉक्स, पैक-सैडल्स, पोस्ट, प्लाईवुड बनाने के लिए किया जाता है। 

बुरांश का उपयोग खाने के रूप में

उत्तराखंड में पारंपरिक उपयोग के तौर पर बुरांश के फूल की पंखुड़ियों का उपयोग खाने में किया जाता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। लगभग सभी धार्मिक कार्यों में देवताओं को बुरांश के फूल चढ़ाए जाते हैं।

हवा को शुद्ध करने के लिए

अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों में पवित्र माने जाने वाले धुएं को बनाने और हवा को शुद्ध करने में मदद करने के लिए जुनिपर / थूजा / पीनस की प्रजातियों की पत्तियों के साथ इसकी ताजी पत्तियों को जलाया जाता है।

बुरांश का औषधीय उपयोग

बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इन पंखुड़ियों का उपयोग सर्दी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल स्क्वैश और जैम बनाने में करते हैं। साथ ही इसकी चटनी को आज भी ग्रामीण इलाकों में पसंद किया जाता है।

बुरांश के औषधीय उपयोग में सिर दर्द का कम करने के लिए कोमल पत्तियों को माथे पर लगाया जाता है। फूल और छाल का उपयोग पाचन और श्वसन संबंधी विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है। 

बुरांश के बारे में क्या कहता है आईआईटी का अध्ययन

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं ने हिमालय की पहाड़ियों में पाए जाने वाले बुरांश के पेड़ से कोरोना का इलाज ढूंढने का दावा किया है। भविष्य में इससे कोरोना की दवा बनाई जा सकती है। बुरांश के फूल में पाया जाने वाला केमिकल संक्रमण को मात देने में अहम भूमिका निभा सकता है।

बुरांश शरीर में कोरोना संक्रमण को फैलने से कैसे रोकता है?

इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के डॉ रंजन नंदा का कहना है कि बुरांश के फाइटोकेमिकल्स शरीर में दो तरह से काम करते हैं। सबसे पहले ये कोरोना में पाए जाने वाले एक एंजाइम से जुड़ते हैं, जो वायरस को खुद की नकल करने में मदद करता है। इसके अलावा ये हमारे शरीर में पाए जाने वाले एसीई-2 एंजाइम से भी बंधते हैं। एसीई-2 एंजाइम के जरिए ही वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक फाइटोकेमिकल की इस जुड़ने की प्रक्रिया से कोरोना वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं को संक्रमित नहीं कर पाता और संक्रमण का खतरा टल जाता है। मंडी आईआईटी के प्रोफेसर डॉ. श्याम कुमार मसकपल्ली का कहना है कि हमें उम्मीद है कि बुरांश से कोरोना का इलाज संभव हो पाएगा। उनकी टीम हिमालय में पाए जाने वाले अन्य औषधीय पौधों में भी कोरोना का इलाज ढूंढ रही है।

बुरांश पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

उत्तराखंड में स्थानीय अर्थव्यवस्था में  बुरांश अहम भूमिका निभाता है। बुरांश के जल्दी फूलने की रिपोर्ट ने तापमान और वर्षा (बर्फ) में आए बदलावों के प्रति पौधों की संवेदनशीलता और प्रतिक्रियाओं ने चिंता बढ़ा दी है।

ग्लोबल वार्मिंग को फूलों के पैटर्न में बदलाव के लिए काफी हद तक जिम्मेदार माना जा रहा है। बदलते मौसम के मिजाज का खामियाजा बुरांस के फूल को भुगतना पड़ा है। किसी साल बारिश की कमी के कारण इनमें रसीले पन का अभाव हो जाता है। सामन्यतया जनवरी से फरवरी माह में बुरांस के फूल कलियों के भाग में बने रहते हैं और उस समय तापमान बहुत कम होता है। बहुत कम तापमान के चलते कलियां खराब न हो जाए, इसके लिए प्रकृति पंखुड़ियांसुरक्षा घेरे के रूप में कलियों के बाहर से लिपटी रहती हैं।

यह तभी हटती हैं, जब तापमान 20 से 25 डिग्री पर पहुंच जाता है। यह तापमान के बारे में डीएनए कोशिकाओं को संकेत भेजता है और फूलने की प्रक्रिया के दौरान हार्मोंस सक्रिय हो जाते हैं। यदि समय से पहले ही तापमान अधिक हो जाता है तो डीएनए तुरंत संकेत भेज देता है। एक बार संकेत मिलने के बाद प्रक्रिया फिर थमती नहीं है। जबकि इस दौरान तापमान में भारी उतार-चढ़ाव आता रहता है।

आईयूसीएन की द रेड लिस्ट ऑफ रोडोडेंड्रोन के अनुसार, बुरांश अम्लीय मिट्टी पर उच्च वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में उगते हैं, ऐसी स्थितियां जिनमें कुछ पौधे जीवित रहेंगे। इसलिए ढलान में बने रहने और वाटरशेड संरक्षण में उनकी भूमिका को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए, खासकर हिमालय में जहां एशिया की कई प्रमुख नदियां शुरू होती हैं।

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