हल्द्वानी में कैक्टस फूलों की बहार

हल्द्वानी रिसर्च सर्कल के 0.2 हेक्टेअर क्षेत्र में कैक्टस की करीब 150 किस्में सहेजी गई हैं। जहां इस समय बहार छायी है

By Varsha Singh

On: Tuesday 19 May 2020
 
गोल्डन बैरल कैक्टस। फोटो: वर्षा सिंह

गगन से जैसे उतरकर, एक तारा, कैक्‍टस की झाड़ियों में आ गिरा है, एक अदभुत फूल काँटो में खिला है...। कवि हरिवंशराय बच्चन ने ये पंक्तियां कैक्टस के चटक रंग के फूलों पर लिखी थीं। कैक्टस में बंजर ज़मीन में भी उग आने की क्षमता होती है और फिर अपनी उर्वरकता से वे पौधों की नई किस्मों के लिए ज़मीन तैयार करते हैं। उत्तराखंड वन विभाग ने वर्ष 2018-19 में कैक्टस गार्डन तैयार करने के लिए रिसर्च एडवायज़री कमेटी से अनुमति ली थी। हल्द्वानी रिसर्च सर्कल के 0.2 हेक्टेअर क्षेत्र में कैक्टस की करीब 150 किस्में सहेजी गई हैं। जहां इस समय बहार छायी है।

इस कैक्टस उद्यान में उत्तराखंड की स्थानीय प्रजातियां हैं, इसके साथ ही मैक्सिको मेडागास्कर जैसी जगहों से लाए गए पौधे भी हैं। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि कैंपा के तहत शुरू किया गया ये प्रोजेक्ट पांच वर्षों के लिए है। जिसका उद्देश्य कैक्टस पर शोध को बढ़ावा देना और लोगों को इसके बारे में जागरुक करना है।

Enchino cactus_grusonii (Photo: Varsha Singh)

चटक रंग के फूलों वाले कैक्टस औषधीय गुणों के साथ सुगंध और सजावट के लिए इस्तेमाल होता है। हवा को शुद्ध करने की इनकी क्षमता अन्य पौधों की तुलना में कहीं अधिक होती है। ये रात के समय भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं। अपने तने में पानी बटोरकर शुष्क-रेगिस्तानी परिस्थितियों में जिंदा रहने के लिए जाने जाते हैं।

Euphorbia_milii (Photo: Varsha Singh)

एलोवेरा या नागफनी कैक्टस पौधे ही हैं। जो घर-घर में लगाए जाते हैं। इन्हें विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रहना आता है। इसीलिए कांटों के बीच उगे कैक्टस फूल मुश्किल हालात में उम्मीद का सा हौसला देते हैं। एनशिनो, यूफोर्बिया, फेरो, गोल्डन बैरल, ओल्डमैन कैक्टस समेत कई नाम, आकार और फूलों के साथ ये हमें चौंकने के लिए हमारे आसपास मौजूद हैं। फिलहाल हल्द्वानी का कैक्टस उद्यान इन्हें देखने की सबसे बेहतर जगह है।

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