नए युग में धरती: सॉफ्ट शैल कछुआ प्रजाति की अंतिम मादा खत्म

2015 से लगातार कृत्रिम गर्भाधान कराने के प्रयास हुए लेकिन उसकी मौत के साथ ये सभी प्रयास धरे के धरे रह गए

By DTE Staff

On: Tuesday 13 October 2020
 
90 साल की यह मादा पूर्वी चीन के जियान्गसू प्रांत के सूजो शांगफंग्शान चिड़ियाघर में मर चुकी है।

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करीब डेढ़ साल पहले विशालकाय यांग्त्जे सॉफ्ट शैल कछुआ (राफेटस स्विनहोई) प्रजाति की आखिरी मादा खत्म हो गई। इससे स्पष्ट हो गया है कि यह प्रजाति भी अवसान पर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 12 अप्रैल, 2019 को 90 साल की यह मादा पूर्वी चीन के जियान्गसू प्रांत के सूजो शांगफंग्शान चिड़ियाघर में मर गई। मरने से पहले उसे कृत्रिम गर्भाधान कराने का प्रयास किया गया लेकिन ये प्रयास कामयाब नहीं हुआ। यह मादा 2008 में चांग्सा शहर में मिली थी। इसके बाद उसे चिड़ियाघर में ले आया गया, जहां 100 साल के नर कछुए से उसका मिलन कराया गया। मादा कछुए ने कई बार अंडे भी दिए लेकिन उनमें से किसी भी अंडे से बच्चे नहीं निकले। 2015 से लगातार कृत्रिम गर्भाधान कराने के प्रयास हुए लेकिन उसकी मौत के साथ ये सभी प्रयास धरे के धरे रह गए। मादा कुछए की मौत के बाद इस प्रजाति के केवल तीन नर कछुए बचे हैं। इनमें से 100 साल का एक नर कछुआ सूजो में, दूसरा वियतनाम के डोंग मो लेक में और तीसरा हनोई के बाहरी हिस्सों में स्थित जुआन खान्ह झील में है।

हालांकि अभी तीसरे का लिंग (जेंडर) अज्ञात है। चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, विशाल यांग्त्जे सॉफ्ट शैल कछुआ चीन की यांग्त्जे और दक्षिणी चीन से उत्तरी वियतनाम में लाखों साल से बह रही लाल नदी में रहता था। यह चीन की पौराणिक रचना बाईजी के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। चीनी मान्यता है कि बाईजी ड्रेगन का छठा बेटा था जो विशाल यांग्त्जे सॉफ्ट शैल कछुए से हूबहू मिलता था। यह मीठे पानी में मिलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा कछुआ माना जाता है। यह 100 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है और इसका वजन 100 किलो तक हो सकता है।

प्रजातियों की विलुप्ति सॉफ्ट शैल कछुओं की दुर्दशा की ओर ध्यान खींचती है। लेकिन इसमें और हार्ड शैल कछुओं में क्या अंतर है? भारतीय जूलॉजिकल सर्वेक्षण के वैज्ञानिक बासुदेव त्रिपाठी बताते हैं, “नाम से ही दोनों प्रजातियों में अंतर स्पष्ट हो रहा है।”

वह बताते हैं, “सॉफ्ट शैल कछुओं का ऊपरी हिस्सा मुलायम और मांसल वाला होता है जबकि हार्ड शैल कछुओं का ऊपरी हिस्सा हड्डियों से बना और त्वचा से ढंका होता है।” त्रिपाठी आगे बताते हैं कि सॉफ्ट शैल कछुओं को शिकारियों से अधिक खतरा होता है, इसलिए ये आमतौर पर नदी, झील या तालाब के मीठे पानी में पाए जाते हैं। हार्ड शैल प्रजातियां दोनों जगह यानी समुद्र और मीठे पानी के स्रोतों में पाई जाती हैं। त्रिपाठी कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा कछुआ न तो सॉफ्ट शैल है और न हार्ड शैल। इसे लेदरबैक के नाम से जाना जाता है। यह साढ़े तीन मीटर ऊंचा और इसका वजन 700-800 किलो तक हो सकता है।

ओडिशा के वाइल्डलाइफ सोसायटी के सचिव बिश्वजीत मोहंती बताते हैं कि मीठे पानी में पाए जाने वाले कछुए समुद्र में मिलने वाले कछुओं से ज्यादा खतरे में हैं। मीठे पानी के कछुओं की आबादी कम है और ये बेहद स्थानीय हैं। वह बताते हैं कि प्रदूषण, रेत का खनन, शिकार और बांध इनके भविष्य के लिए खतरा हैं। त्रिपाठी भारतीय संदर्भ में इसका उदाहरण देकर बताते हैं, “गंगा में मिलने वाले सॉफ्ट शैल कछुए (निलसोनिया गेंगेटिका) का मांस के लिए शिकार किया जाता है। चंबल नदी इसकी मुख्य रिहाइश है। नदी में होने वाला रेत का खनन इसे प्रभावित कर रहा है। यह कछुआ नदी किनारे धूप सेंकता है और नदी किनारे ही अंडे देता है। नदी में होने वाला खनन इस काम में बाधा पहुंचाता है। सॉफ्ट शैल कछुए पारिस्थितिक लिहाज से बड़े महत्वपूर्ण हैं। त्रिपाठी के अनुसार, “ये मुर्दाखोर होते हैं। यानी ये नदी में बहने वाले मृत शवों को खाते हैं और नदी को साफ रखते हैं। ये मुख्य रूप से प्लवकों को खाकर जिंदा रहते हैं।”

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