झीलों के गर्म होने का पूर्वानुमान लगाना हुआ संभव, वैज्ञानिकों ने विकसित की प्रणाली

झीलों के गर्म होने के पूर्वानुमान लगने से सैल्मन और ट्राउट मछलियों को होने वाले खतरों से बचाया जा सकेगा

By Dayanidhi

On: Monday 09 March 2020
 
Photo credit; need pix

एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की झीलों के भविष्य में गर्म होने के पूर्वानुमान लगाने का बेहतर तरीका ईजाद किया है। इस तरीके से ठंडे पानी की प्रजातियां जैसे कि सैल्मन और ट्राउट मछलियों को होने वाले खतरों से बचाया जा सकेगा।

यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी (यूकेसईएच) की अगुवाई में एक ऐसी प्रणाली तैयार की है जो दुनिया भर में झीलों को वर्गीकृत करती है, उनमें से प्रत्येक को नौ 'गर्म क्षेत्रों' में से एक में रखा गया है।

झीलों को सतह के पानी के तापमान, उनके मौसमी पैटर्न के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, अलास्का, कनाडा, उत्तरी रूस और चीन सहित ये झीलें सबसे ठंडे क्षेत्रों में है, जबकि भूमध्यरेखीय दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे गर्म आवरण वाली झीलें हैं।

जलवायु परिवर्तन मॉडल को शामिल करके, वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2100 तक, सबसे चरम जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के लिए, औसत झील का तापमान लगभग 4 डिग्री सेल्सियस गर्म होगा और दुनिया भर की 66 फीसदी झीलों को एक गर्म तापीय क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाएगा।

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन को यूकेसीएच, डंडी, ग्लासगो, रीडिंग और स्टर्लिंग के साथ-साथ, डंडालक इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा किया गया है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता,  यूकेसीईएच के प्रोफेसर स्टीफन मबेरली बताते हैं कि 16 से अधिक वर्षों में दो बार ली गई 700 से अधिक झीलों के उपग्रह चित्रों का उपयोग करके अत्याधुनिक विश्लेषण किया गया, जिसके आधार पर हमने पहली वैश्विक झील तापमान वर्गीकरण योजना बनाई है।

झील के मॉडल और जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के साथ इसे मिलाकर हम उन उत्तरी झीलों की पहचान करने में सक्षम हो पाए, जैसे कि कुछ झीलें जो ब्रिटेन में जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।

तापमान में जरा सा बदलाव भी जलीय जीवों पर बहुत सारे बुरे प्रभाव डाल सकता हैं, जिससे जीवों के बढ़ने की गति, खाने की गति और प्रजनन भी प्रभावित होता हैं। बदलाव के कारण प्रजातियां पहले की तरह व्यवहार नहीं करती हैं, शिकार और शिकारियों में विभिन्न प्रजनन और खाने का चक्र होता हैं, जिससे संभावित भोजन की मात्रा भी कम हो जाती है।

तापमान बढ़ने से हानिकारक शैवालों के उगने का खतरा भी बढ़ जाता है, जो जलीय पौधों और मछलियों पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।

प्रोफेसर मबेरली कहते हैं कि विशेष रूप से ठंडे पानी की मछली की प्रजातियों को गर्म तापमान के प्रभाव से उनमें तनाव बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, सैल्मन, ट्राउट और आर्कटिक चारर जैसे सैल्मनॉयड पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है, क्योंकि वे भोजन के स्तर पर प्रमुख भूमिका निभाते हैं और इनका बड़ा आर्थिक महत्व भी है।

यह अध्ययन न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में नई जानकारी देता है, बल्कि सबूत भी है जहां से इन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील वातावरण का बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है और झीलों और इसमें रहने वाले जीवों पर परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है।

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