लुप्त हो रहे हिमालयन आईबैक्स को बचाने आए लोगों ने शुरू की अनूठी पहल

इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन आफ नेचर की ओर से रेड लिस्ट में शामिल आईबैक्स का शिकार करने वाले का सामाजिक बहिष्कार के साथ हुक्का पानी बंद

On: Wednesday 22 January 2020
 
हिमाचल प्रदेश की ताबो पंचायत की वजह से हिमालयन आईबैक्स अब अमूमन दिख जाते हैं। फोटो: रोहित पाराशर

रोहित पराशर

दुनिया में केवल 6 हजार संख्या वाले विलुप्तप्राय हिमालयन आईबैक्स की संख्या अब हिमाचल के कबाईली क्षेत्र लाहौल-स्पीति में धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। इस दुर्लभ प्राणी को बचाने के लिए लाहौल-स्पीति जिला की कई पंचायतों ने कड़े कदम उठाए हैं। 3500 से 6500 मीटर तक की उंचाई पर पाए जाने वाले इस दुर्लभ प्राणी आईबैक्स का शिकार करता हुए यदि कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है तो पंचायत की ओर से उस व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है और उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है।

आईबैक्स के सरंक्षण के लिए लाहौल और स्पीति जिला के कई महिला मंडल भी आगे आए हैं और लोगों में इसके सरंक्षण को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। इसी का नतीजा है कि वन विभाग के रिकार्ड में पिछले 7 सालों में एक आईबैक्स के शिकार का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया है। जिसके चलते अब लाहौल-स्पीति घाटी में आईबैक्स के झुंडों को प्रायः विचरते देखा जा रहा है।

ताबो पंचायत की ओर से आईबैक्स के शिकार पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है। पंचायत की प्रधान डेचन आंगमो ने बताया कि हर साल सर्दियां शुरू होने से पहले पंचायत में एक महासभा की जाती है और इसमें सभी लोगों से वन्य प्राणियों का शिकार न करने की शपथ दिलाई जाती है। वहीं लांगजा पंचायत के प्रधान शेर सिंह ने भी आईबैक्स के शिकार पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। प्रतिबंध के बाद आईबैक्स के झुंडों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वहीं लाहौल क्षेत्र में भी दर्जनों पंचायतों में आईबैक्स के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है। घाटी की महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लोगों में आईबैक्स को बचाने के लिए जागरूक फैलाने का काम कर रही हैं। लोग बताते हैं कि शिकार के कारण पहले ये गिनी चुनी दिखाई देती थी, लेकिन अब यह आईबैक्स अकसर दिख जाते हैं। 

हिमाचल और जम्मू एंड कश्मीर में पाए जाने वाले हिमालयन आईबैक्स को जंगली बकरे के नाम से भी जाना जाता है। इनके लंबे-लंबे और मुड़े हुए सींग होते हैं। इस हिमालयन आईबैक्स को साइबेरियन आईबैक्स की उपप्रजाति कहा जाता है। एक स्वस्थ मेल आईबैक्स का वजन150 किलो तक होता है और मेल का वजन फिमेल के मुकाबले अधिक होता है। आईबैक्स छोटे-छोटे झुंडों में रहते हैं और एक झुंड में इनकी संख्या 50-60 तक हो जाती है। आईबैक्स घास खाते हैं। ये बर्फानी तेंदुओं के आसान शिकार होते हैं। दुनिया में केवल 6 हजार बचे हैं बेहद कठिन परिस्थितियों और खड़ी चट्टानों में रहने वाले हिमालयन आईबैक्स पूरी दुनिया में केवल 6 हजार के करीब बचे हुए हैं।

आईबैक्स को इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन आफ नेचर की ओर से रेड लिस्ट में डाला गया है। यह अफगानिस्तान, चाइना, कजाकिस्तान, मंगोलिया, पाकिस्तान, रूस और उज्बेकिस्तान के साथ भारत में जम्मू एंड कश्मीर और हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिला में पाए ही पाए जाते हैं। जहां दुनिया भर में इनकी घटती संख्या के लिए वन्य जीव प्रेमी चिंतित हैं वहीं दूसरी ओर हिमाचल सरकार की ओर से अभी तक इन दुर्लभ प्रजाति के इनकी संख्या को लेकर गणना तक नहीं की गई है।

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