मानव गतिविधियों के चलते मुश्किल में महासागर और इसके निवासी : संयुक्त राष्ट्र

हर साल 80 प्रतिशत तक कूड़ा नदियों से बहकर समुद्र में पहुंच रहा है, जो कि लगभग 11.5 से 21.4 लाख टन है। 1,400 से अधिक समुद्री प्रजातियों के शरीर में प्लास्टिक पाया गया है।

By Dayanidhi

On: Friday 23 April 2021
 
Photo: United Nations World Oceans Day Photo Competition

जनसंख्या वृद्धि के चलते समुद्र पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। दुनिया भर में करीब 60 फीसदी समुद्री पारिस्थितिकी का नुकसान हो चुका है, तथा इनका उपयोग टिकाऊ तरीके से नहीं किया जा रहा है। जलवायु में होने वाले बदलाव के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, अब वहां ऑक्सीजन की कमी होने लगी है और अम्लीकरण बढ़ रहा है। मानवजनित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हो रहे इन बदलावों की वजह से जल में निवास करने वाले जीवों का जीवन कठिन हो रहा है, जिसका असर पृथ्वी पर मौजूद जीवन पर भी पड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र ने द्वितीय विश्व महासागर मूल्यांकन (डब्ल्यूओए-द्वितीय) रिपोर्ट में इस बात का संकेत दिया है। पृथ्वी दिवस (2021) के दिन इसे जारी किया गया। इस रिपोर्ट में वैश्विक पर्यावरण रिपोर्टिंग और सामाजिक पर्यावरण के पहलुओं सहित समुद्री पर्यावरण के पहलूओं का आकलन किया गया है।

पहले विश्व महासागर मूल्यांकन रिपोर्ट की शुरुआत के बाद से ही दुनिया को पहली बार महासागरों की वास्तविक स्थिति के बारे में पता चला था। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से महासागरों के आकलन वाली यह दूसरी रिपोर्ट जारी की गई है। 

महासागर ग्रह की सतह के 70 फीसदी से अधिक हिस्से में हैं।  इनसे 95 प्रतिशत जैवमंडल बनता है। महासागर की मौसम प्रणालियों में बदलाव से भूमि और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र दोनों पर असर पड़ता है। दुनिया भर के लोगों को महासागर और इसके पारिस्थितिकी तंत्र महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं। इसमें जलवायु नियोजन, तटीय संरक्षण, भोजन, रोजगार, मनोरंजन और सांस्कृतिक कल्याण जैसी चीजें शामिल हैं। लाभ काफी हद तक, समुद्री प्रक्रियाओं, समुद्री जैविक विविधता और संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के रख-रखाव पर निर्भर करते हैं।

दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, हालांकि कोविड-19 के चलते आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है। जैसे-जैसे दुनिया भर में जनसंख्या बढ़ी है, ऊर्जा की खपत और संसाधनों के उपयोग में वृद्धि के साथ वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ी है। कई देशों ने महासागर आधारित अर्थव्यवस्थाओं (नीली अर्थव्यवस्था) के विकास, रणनीतियों को बढ़ाया है। लगातार समुद्र के स्वास्थ्य में गिरावट की वजह से महासागर से संबंधित अर्थव्यवस्थाओं के विकास पर लगाम लग रही है।

उपयुक्त अपशिष्ट उपचार की कमी और उद्योग, कृषि, पर्यटन, मछली पालन और शिपिंग से निकलने वाला प्रदूषण महासागरों में मिल रहा है, इसके कारण इन पर भारी दबाव पड़ रहा है। खाद्य सुरक्षा, और समुद्री जैव विविधता पर इसका बहुत खराब असर पड़ रहा है। समुद्री कूड़े, नैनोमेटेरियल्स से लेकर मैक्रोमटेरियल्स तक की समस्या बढ़ रही है, जिसे देखते हुए, इसकी उपस्थिति से होने वाले नुकसान के अलावा, यह प्रदूषक यहां रहने वाले जीवों की मौत का कारण बन रहा है।

सतत विकास लक्ष्य में 2025 तक, भूमि आधारित गतिविधियों से विशेष रूप से समुद्री मलबे और अन्य प्रकार के प्रदूषणों को रोकने की बात कही गई है। कृषि में नाइट्रोजन और फास्फोरस के उपयोग के बाद यह बारिश के पानी के साथ बहकर, नदियों और समुद्र में मिल जाता है, जिसके चलते तटीय वातावरण में प्रदूषण में वृद्धि जारी है। औद्योगिक विकास और कृषि में वृद्धि के परिणामस्वरूप समुद्र में खतरनाक पदार्थ मिल रहे हैं।  हर साल 80 प्रतिशत तक कूड़ा नदियों से बहकर समुद्र में पहुंच रहा है, जो कि लगभग 11.5 से 21.4 लाख टन है। 1,400 से अधिक समुद्री प्रजातियों के शरीर में प्लास्टिक पाया गया है।   

दुनिया भर में पानी के जहाजों में होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या में कमी जारी रही है, 2014 और 2018 के बीच 100 टन से अधिक के 88 जहाजों का नुकसान हुआ, जो कि इससे पहले के पांच वर्षों में 120 था। जहाजों से वायु प्रदूषण को कम करने के लिए काम किया जा सकता है। पिछले दशक में 18 तेल रिसाव की घटनाएं हुई थी इसमें भी अब कमी आई है।

समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को मुख्य खतरा मानव गतिविधियों से होता हैं, जैसे कि मछली पकड़ना, जलीय कृषि, शिपिंग, रेत और खनिज निष्कर्षण, तेल और गैस निकालना, नवीकरण योग्य ऊर्जा बुनियादी ढांचे का निर्माण, तटीय बुनियादी ढांचे के विकास, प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसमें शामिल हैं।

मानवजनित गतिविधियों के दबाव से कई समुद्री प्रजातियों और आवासों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। हालांकि अब इसमें सुधार हो रहा है 2020 में, समुद्र के संरक्षित क्षेत्रों में 18 फीसदी महासागर को कवर किया, जो पूरे महासागर का लगभग 8 फीसदी था, जबकि राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से अलग लगभग 1 फीसदी समुद्री क्षेत्रों की रक्षा की गई।

कुल मिलाकर, लगभग 6 फीसदी जानी पहचानी मछली की प्रजातियां और लगभग 30 फीसदी एल्सा मोब्रैन्च प्रजातियां खतरे में है या ये दुनिया भर में खतरे के रूप में सूचीबद्ध हैं।

समुद्री स्तनधारियों की स्थिति अलग-अलग है, कुछ समूहों में 75 प्रतिशत प्रजातियां - जलपरी, ताजे पानी की डॉल्फिन, ध्रुवीय भालू  ऊदबिलाव, खतरे में हैं या लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं। दुनिया भर में समुद्री पक्षियों की संरक्षण स्थिति बहुत खराब हो गई है, 30 फीसदी से अधिक प्रजातियां अब कमजोर, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध हैं।  

महासागरों का बढ़ता तापमान, अम्लीकरण, ऑक्सीजन की कमी और समुद्री प्रदूषण से खुले समुद्र प्रभावित होते रहते हैं। अमेजन नदी से प्राप्त पोषक तत्व और पश्चिम अफ्रीका के तट से ऊपर की ओर बढ़ते हुए दिखाई देते हैं  

महासागर की प्रक्रियाओं और इसके कामकाज की गहरी समझ के बिना महासागर का स्थायी उपयोग नहीं किया जा सकता है, साथ ही साथ महासागर पर मानव गतिविधियों के प्रभावों को दूर करने की जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है। समुद्र में कार्बन डाइऑक्साइड के निरंतर बढ़ने से समुद्र में अम्लीकरण होता है, इसे रोकना अति आवश्यक है। सेंसर और तकनीकों की मदद से महासागरों का संरक्षण किया जा सकता है।

हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम करने के उपायों पर ध्यान देना होगा ताकि वैश्विक तापमान मे होने वाली वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सके। यदि इस तरह की कार्रवाई नहीं की गई, तो हम भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को बहुत बड़े खतरे में डाल सकते हैं।

हमारे पास महासागरों में रहने वाले जीवों को बचाने के लिए एक सहमत योजना है जिससे जलवायु में होने वाले बदलावों का मुकाबला करने और दुनिया भर में बढ़ते तापमान को कम करने में मदद मिलेगी। सतत विकास लक्ष्य-14 है जो संयुक्त राष्ट्र के 2030 तक टिकाऊ विकास एजेण्डा के 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों में से एक है।

टिकाऊ विकास लक्ष्यों में महासागरों में मौजूद संसाधनों के संरक्षण और उनका टिकाऊ तरीके से उपयोग को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। लक्ष्य-14 को ईमानदारी से लागू किया जाए तो हम लोगों और महासागरों के लिए एक अच्छा भविष्य बनाने की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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