जैव विविधता में किस तरह आ रहा है बदलाव, जानने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाई पद्धति: शोध

शोधकर्ताओं ने बताया कि वनों की निगरानी करने, जैव विविधता में बदलाव के बारे में पता लगाने के लिए यह पद्धति सबसे अधिक उपयोगी है और इसमें अपार संभावनाएं हैं।

By Dayanidhi

On: Friday 02 July 2021
 
जैव विविधता में किस तरह आ रहा है बदलाव, जानने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाई पद्धति: शोध
Photo : Wikimedia Commons, vulnerable Greater glider Photo : Wikimedia Commons, vulnerable Greater glider

क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी (क्यूयूटी) के शोधकर्ताओं ने एक नई मशीन लर्निंग मैथमैटिकल सिस्टम विकसित किया है जो जैव विविधता में आए बदलाव को पहचानने और पता लगाने में मदद करता है। इसमें भूमि में होने वाले बदलाव और भूमि उपयोग भी शामिल है।

इस पद्धति में अनिश्चितता को मापने के लिए सांख्यिकीय विधियों का उपयोग किया गया है। शोध में मध्य दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड में 180 किमी वर्ग क्षेत्र की उपलब्ध उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया गया है।   

इस इलाके में कई तरह की देशी प्रजातियां रहती हैं जिनमें गंभीर रूप से लुप्तप्राय जीव भी शामिल हैं। यहां नोर्थन हेयर नोज़ड वॉम्बैट और ग्रेटर ग्लाइडर खतरे वाली प्रजातियां रहती हैं और इस क्षेत्र में मुख्य रूप से जंगल, चारागाह और कृषि भूमि शामिल है।

डॉ जैसिंटा होलोवे-ब्राउन का कहना है कि समय के साथ वन आवरण में परिवर्तन को मापना जीवों के आवासों को ढूंढना और उन्हें संरक्षित करना आवश्यक है। यह संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक द्वारा वनों को स्थायी रूप से प्रबंधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण सतत विकास लक्ष्य भी है।

डॉ होलोवे-ब्राउन ने कहा सैटेलाइट इमेजरी महत्वपूर्ण है क्योंकि बड़े, पेड़ों से घिरे क्षेत्रों में अक्सर आंकड़े एकत्र करना बहुत कठिन और महंगा होता है। सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करने में समस्या यह है कि पृथ्वी का बड़ा हिस्सा बादलों से ढका हुआ होता है और बड़ी मात्रा में बादलों से ढके इलाके के आंकड़े प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं।

डॉ होलोवे-ब्राउन ने कहा 12 साल की उपग्रह इमेजरी के आधार अनुमान लगाया गया कि औसतन 67 प्रतिशत पृथ्वी बादलों से ढकी हुई है।

उन्होंने बताया कि हमारी पद्धति के उपयोग में हम पिक्सेल के आधार पर पिक्सेल की तुलना कर सकते हैं, जिससे यह पता लग सकता है कि किस प्रकार का भूमि कवर है और यह पिछली छवि के बाद से बदल गया है या नहीं। उदाहरण के लिए, यदि पिक्सेल अंतिम छवि में जंगल था और अगले एक सप्ताह में या बाद में यह मिट्टी या पेड़ के स्टंप में बदल गया है, तो हम इसका पता लगाने में सक्षम हैं।

शोध में दो तरह की घटनाओं की गणना शामिल थी, स्पष्ट कटाई जिसमें क्षेत्र से सभी पेड़ों को हटाना और भविष्य के विकास की तैयारी के लिए इन्हें जलाना शामिल है और दूसरा, पेड़ों की संख्या का कम होना जिसमें केवल क्षेत्र से पेड़ों को हटाना शामिल है। इसमें छोटी झाड़ियों, घास के मैदान और चारागाह को छोड़ दिया गया था।

बादलों का अनुकरण (सिमुलेट) करके, शोधकर्ता इस विधि की सीमाओं का परीक्षण करने में सफल रहे। वे इस बारे में भी पता  कर सकते हैं कि यह कितनी अच्छी तरह पूर्वानुमान लगा सकता है कि बादलों के नीचे क्या था। परिणामों ने स्पष्ट रूप से पेड़ों की कटाई और पेड़ों को हटाने दोनों के तहत भूमि कवर में आए बदलाव का सही पता लगाया।

उन्होंने कहा कि वनों की निगरानी करने के लिए हमारी पद्धति सबसे अधिक उपयोगी है और इसमें अपार संभावनाएं हैं। यह शोध रिमोट सेंसिंग इन इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन में प्रकाशित हुआ है।

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