बुंदेलखंड में क्यों काटे जाने हैं 44 लाख पेड़, क्या है सरकार की तैयारी?

हीरे की खदान और केन-बेतवा परियोजना को पूरा करने के लिए लाखों पेड़ काटे जाएंगे। साथ ही इलाके में पाषाणकाल की दुर्भल पेंटिंग, मूर्तियां और स्तंभ भी खत्म हो जाएंगे

By Anil Ashwani Sharma

On: Wednesday 01 March 2023
 
बुंदेलखंड में सरकार बड़ी संख्या में पेड़ काटने की तैयारी कर रही है। फोटो: आशीष सागर दीक्षित

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी इलाके में जहां पहले से ही पेड़-पौधों की संख्या कम हो, लेकिन आने वाले समय में उसी इलाके के 44 लाख पेड़ काटने की तैयारी की जा रही हो। यह इलाका है मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में फैला बुंदेलखंड क्षेत्र। जो पिछले डेढ़ दशक से सूखे की मार से अभिशप्त है। ऐसे विपरीत हालात में इस इलाके के लाखों पेड़ काटे जाने के बाद क्या यह उम्मीद बच पाएगी कि भविष्य में इस इलाके से सूखा खत्म हो जाएगा?

बुंदेलखंड के बक्सवाहा (छतरपुर, मध्य प्रदेश) के जंगलों में हीरा खदान के लिए चार लाख से अधिक पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ दायर याचिका को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने 28 फरवरी 2023 को खारिज कर दिया।

इसका मतलब है कि अब हर हाल में चार लाख पेड़ काटे ही जाएंगे। एनजीटी ने याचिका को अपरिपक्व करार दिया। हालांकि इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता पीजी पांडे ने पुनर्विचार याचिका दायर की है।

ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश ने बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट व महोबा की सीमा से लगे बक्सवाहा में हीरा खनन के लिए एक्सेल माइनिंग कंपनी को पेड़ काटने के लिए अभी तक 364 हैक्टेयर भूमि का पट्टा आबंटित किया है।

इस जंगल में केवल पेड़ ही नहीं है, बल्कि यहां के पत्थरों व चट्टानों पर दुर्लभ ऐतिहासकि शैल चित्र भी मौजूद हैं। इनके भी अब नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र में एक व्यापक सर्वे किया था और उसमें यह बात निकलकर आई थी कि बक्सवाहा के जंगल में पाषाणकालीन रॉक पेंटिंग्स मौजूद हैं।

बुंदेलखंड के जिस इलाके में हीरा खनन का ठेका दिया जा रहा है, वहां केवल पेड़ ही नहीं कटेंगे, बल्कि वहां के पत्थरों व चट्टानों पर दुर्लभ ऐतिहासकि शैल चित्र भी मौजूद हैं। फोटो: आशीष सागर दीक्षित

इसके अलावा इस जंगल में कल्चुरी और चंदेल काल की कई मूर्तियां और स्तंभ भी मौजूद हैं, जिनका खनन की वजह से नुकसान पहुंच सकता है।

यही नहीं, इसी इलाके में केन-बेतवा लिंक बांध परियोजना में पन्ना टाइगर रिजर्व के 23 लाख पेड़ काटे जाने की भी तैयारी है। यह बात परियोजना के विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में लिखित तौर पर दर्ज है। यदि इसकी सैटलाइट सर्वेक्षण संख्या को देखें तो लगभग 40 लाख पेड़ काटे जाएंगे।

रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना को लागू करने के लिए 6,017 हेक्टेयर वन भूमि को खत्म किया जाएगा। यह वन भूमि 8,427 फुटबॉल के मैदान के बराबर है। पन्ना के जंगलों में सागौन, महुआ, बेलपत्र, आचार, जामुन, खैर, कहवा, शीशम, जंगल जलेबी, गुली, आंवला समेत अन्य प्रमुख प्रजातियों के बहुत पुराने पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। इसके साथ-साथ यहां घड़ियाल अभ्यारण्य और गिद्धों का प्रजनन केंद्र भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा।

बुंदेलखंड के पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित का कहना है कि इलाके से इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों के काटे जाने के बाद यहां की जैव विविधता पूरी तरह से खत्म हो जाएगी, यही नहीं हीरे की परियोजना पर प्रतिवर्ष 53 लाख क्यूबिक पानी भी खर्च होगा। पहले से ही सूखे की मार झेल रहे इलाके लिए यह और भी गंभीर खतरा है।

ध्यान रहे कि बक्सवाहा के जंगलों में 3.42 करोड़ कैरेट के हीरों का यहां दबे होने का अनुमान है। भारत में अभी तक हीरे का सबसे बड़ा भंडार मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में है लेकिन बक्सवाहा में तो पन्ना से 15 गुना अधिक हीरे निकलने का अनुमान लगाया गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरे की खोज के लिए 2010 में ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टेंटो की मदद से सर्वे कराया था। सर्वे के दौरान ही बक्सवाहा के आसपास किंबरलाइट पत्थर की चट्टानें दिखाई दीं।

हीरा इन्हीं किंब्रलाइट की चट्टानों में मिलता है। 2002 में कंपनी को औपचारिक रूप से क्षेत्र में हीरा तलाशने का काम सौंप दिया गया। लंबे शोध के बाद कंपनी ने खनन की तैयारियां शुरू कीं लेकिन स्थानीय समुदाय के विरोध के कारण कंपनी ने 2016 में इस परियोजना से अपने को अलग कर लिया। इसके बाद 2019 में हीरे की खदान का नया लाइसेंस आदित्य बिड़ला ग्रुप की एक्सेल माइनिंग कंपनी को मिला।  

वहीं दूसरी ओर केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट इस दलील पर आधारित है कि केन नदी में पानी की मात्रा ज्यादा है, इसलिए दोनों नदियों को जोड़कर केन के पानी को बेतवा में पहुंचाया जाएगा, जिससे लोगों को सिंचाई एवं पेयजल का लाभ मिल सकेगा। वैसे देखा जाए तो केन और बेतवा दोनों नदियां प्राकृतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, जो अंत में जाकर यमुना नदी में मिल जाती हैं, लेकिन सरकार जिस कृत्रिम तरीके से इन्हें जोड़ना चाह रही है, उसे पर्यावरण विशेषज्ञों ने पूरी तरह से विनाशकारी बताया है।

सरकार का दावा है कि इसके जरिये 9.04 लाख हेक्टेयर की भूमि सिंचित होगी, जिसमें से मध्य प्रदेश में 6.53 लाख हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 2.51 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। साथ ही 62 लाख लोगों को पेयजल भी मिलेगा।

हालांकि बुंदेलखंड के विकास के नाम पर प्रचारित की जा रही इस परियोजना के तहत जहां एक तरफ क्षेत्र के 13 जिलों में से आठ जिले (पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर , सागर, दामोह, दतिया, बांदा, महोबा, झांसी और ललिपुर) को ही लाभ मिलने की संभावना है। 

केन-बेतवा नदी जोड़ों परियोजना को दो चरणों में लागू किया जाना है, जिसमें से पहले चरण में केन नदी के पास में स्थित दौधन गांव में एक बांध बनाया जाएगा, जो 77 मीटर ऊंचा और 2,031 मीटर लंबा होगा। इसके अलावा 221 किलोमीटर लंबी केन-बेतवा लिंक नहर बनाई जाएगी, जिसके जरिये केन का पानी बेतवा बेसिन में डाला जाएगा। दौधन बांध के चलते 9,000 हेक्टेयर का क्षेत्र डूबेगा, जिसमें से सबसे ज्यादा 5,803 हेक्टेयर पन्ना टाइगर रिजर्व का होगा, जो कि बाधों के रहवास का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है।

इस योजना के चलते 6,017 हेक्टेयर वन भूमि को पूरी तरह साफ कर दिया जाएगा, जिसमें बेहद संवेदनशील पन्ना टाइगर रिजर्व का 4,141 हेक्टेयर वन क्षेत्र भी शामिल है।

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