हमें माओवादी बताकर जेल में डाला गया: गरियाबंद के 18 गांवों के लोगों ने वनाधिकारों की लड़ाई से पीछे हटने से किया इंकार

नौ अगस्त को चार गांवों के लोगों को सामुदायिक वन-स्रोत अधिकार दिए जाने के राज्य सरकार के फैसले से आदिवासियों में उम्मीद जगी है

By Zumbish

On: Friday 12 August 2022
 
छत्तीसगढ़ के गढ़ियाबंद में 18 गांवों के प्रतिनिधि बैठक करते हुए

 

छत्तीसगढ़ के कई गांवों के लोगों को पिछले साल और इस साल सामुदायिक वन-स्रोत अधिकार (सीएफआरआर) दिया गया है। संरक्षित वन इलाकों की कई ग्रमासभाओं को भी यह अधिकार मिला है।
 
हालांकि गरियाबंद जिले के 18 गांव उतने भाग्यशाली नहीं रहे। वे कई सालों से इस अधिकार के मिलने की प्रक्रिया में देरी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
 
डाउन टू अर्थ ने अपने अधिकार की लड़ाई जारी रखने वाले इन गांवों के लोगों से बातचीत करने के लिए 15 जून 2022 को जिले का दौरा किया:

बीस जून को छत्तीसगढ़ में नागेश, कोइबा, बाम्हनीझोला, कुरुभाटा और 14 अन्य गांवों के लोगों ने नेशनल हाईवे 130-सी के एक हिस्से को बंद कर दिया।
 
उन्होंने सीएफआरआर की अपनी मांग सुने जाने तक घर लौटने से इंकार कर दिया था। वे गरियाबंद जिले के उदांति सितांदी टाइगर रिजर्व मूल क्षेत्र में स्थित 18 गांवों को सीएफआरआर का दर्जा मिलने में देरी का विरोध कर रहे थे।

क्या है सीएफआरआर का दर्जा
यह दर्जा वन स्रोतों पर निर्भर रहने वाले गांववालों को कानूनी तौर पर अधिकार देता है कि वे वनोत्पादों का अपने उपभोग और आर्थिक फायदों के लिए इस्तेमाल कर सकें।
 
सीएफआरआर का दर्जा, वन क्षेत्र की जमीन को काम में लाने के गांववालों को दिया जाने वाला आधिकारिक प्रमाणीकरण है।
 
इसमें किसी भूखंड-क्षेत्र को स्थानीय लोगों द्वारा पहचानी गई ‘पारंपरिक सीमा’ के अनुरूप सीमांकित किया जाता है, जिन्हें सीएफआरआर का दर्जा दिया जाता है।
 
‘आंदोलन करने से नहीं रोक सकती सरकार’

चक्काजाम में शामिल नागेश गांव के प्रदर्शनकारियों में से एक अर्जुन नायक ने कहा, ‘ हमें लंबे समय से इस अधिकार से वंचित किया जा रहा है।’
 
वह बताते हैं कि संरक्षित इलाके में रहने के कारण इन गांवों के लोगों की न बिजली तक पहुंच है, न जानवरों को चराने के लिए जमीन और न ही निमार्ण कार्य संबंधी गतिविधियों की इजाजत।
 
नायक के मुताबिक, ‘ हमने वन अधिकारियों को अपनी मांगों की सूची सौंप दी है। इसमें उन 18 गांवों को सीएफआरआर दिया जाना शी शामिल है, जो इसकी लडाई लड़ रहे हैं।

सड़क जाम करने के पांच दिन पहले डाउन टू अर्थ ने सीएफआरआर की लड़ाई लड़ रहे बाम्हनीझोला, कोइबा, नागेश, और कुरुभाटा गांवों के रहने वाले लोगों से मुलाकात की। ये लोग संरक्षित क्षेत्र के एक स्थानीय चौक पर जुटे थे।

इस मौके पर कोइबा गांव के दीपचंद सोमवंशी ने कहा,  ‘वे हमें सुविधाएं देने से मना कर सकते हैं, संरक्षित क्षेत्र की सुरक्षा के नाम पर हमसे आर्थिक फायदे छीन सकते हैं, लेकिन सीएफआरआर के लिए संघर्ष करने और आंदोलन करने से हमें रोक नहीं सकते।’

पुलिस उत्पीड़न का शिकार हो रहे आंदोलनकारी
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, स्थानीय लोगों की आमदनी में वनों का 80 फीसदी तक योगदन होता है।
 
इन 18 गांवों में से 12 ने सीएफआरआर के लिए सफलतापूर्वक आवेदन किया है और शेष आवेदन करने की प्रक्रिया में हैं। लेकिन उनमें से किसी को भी अभी तक इसका दर्जा नहीं मिला है।

लोगों ने दावा किया कि इसके बजाय, वे लोग बुनियादी सुविधाओं की मांग या वन विभाग और बाघ अभयारण्य के अधिकारियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए पुलिस उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
 
सोमवंशी ने बताया, ‘पुलिस मनमाने ढंग से हमें गिरफ्तार करती है और हमें माओवादी के रूप में पेश करती है।’

कुरुभाटा गांव के टीकम नागवंशी ने इस बात पर अपनी सहमति जताई। अपने क्षेत्र के आदिवासियों की मांगों को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए उन्हें पहले कथित तौर पर कुछ समय के लिए जेल में बंद कर दिया गया था।
 
अब वह सीएफआरआर की लड़ाई में सबसे आगे हैं। गांव के प्रमुख 61 साल के नागवंशी ने कहा, ‘ हमें हमारे अधिकारों की मान्यता मिल जाने के बाद हम उन अधिकारियों को जमीन हकीकत भी दिखाएंगे।’

सीएफआरआर विरोध-प्रदर्शनों में इस तरह की घटनाओं के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में जंगगढ़ पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने अस्पष्ट प्रतिक्रिया दी।”
 
2015 में एक घटना के बारे में पूछे जाने पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा- “गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्हें जाने दिया गया। वह केस फाइल गुम हो गई है।’ उस साल इन गांवों के 21 लोगों को सड़क की नाकाबंदी करने के आरोप में पुलिस ने उठा लिया था।  

नागवंशी ने डाउन टू अर्थ से कहा, ‘ धमतारी जिले के गांवों के लोगों की तरह ही सीएफआरआर का हक हासिल करने के लिए हम 18 गांवों में रहने वाले लोगों को आंदोलन करते रहेंगे। धमतरी जिले में पड़ने वाले एक ही संरक्षित क्षेत्र के मुख्य जोन में जोरातराई, करही और मसालखोई समेत पांच गांव हैं, जिन्हें 2021 के अंत में सीएफआरआर का दर्जा मिल गया था।
 
छत्तीसगढ़ के वनाधिकार कार्यकर्ता आलोक शुक्ला इस बारे में कहते हैं, ‘ राज्य में सीएफआरआर का दर्जा देने में जिला प्रशासन की सहभागिता और रुचि के अलावा एक स्थानीय नेता की मर्जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वजह है कि वनाधिकार कार्यकर्ताओं की इस संदर्भ में कामयाबी हर जिले में अलग-अलग है।’ वास्तव में वह जो कह रहे हैं, गरियाबंद जिला उसका प्रमाण है।    

विधायक की दलील अलग

गरियाबंद के राजिम निर्वाचन क्षेत्र के विधायक अमितेश शुक्ला ने गरियाबंद दौरे के दौरान डाउन टू अर्थ को बताया, - ‘हम संरक्षित क्षेत्र में वन्यजीवों को बचाने के लिए टाइगर रिजर्व के मुख्य जोन के 18 गांवों को सामुदायिक अधिकार नहीं दे रहे हैं।’

राज्य ने सीएफआरआर देने के लिए अपने 20,000 गांवों में से 12,500 की पहचान की है। उसका दावा है कि पिछले चार सालों में इनमें से 3,646 गांवों को यह दर्जा दिया भी गया है।

छत्तीसगढ़ सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक,  9 अगस्त, 2022 को, राज्य ने एक अन्य बाघ अभयारण्य - अचानकमार के  मुख्य जोन के चार गांवों को सीएफआरआर का दर्जा दिया। धमतरी में तीन और मुख्य जोन के गांवों को भी उसी दिन इसका दर्जा मिला। उस दिन कुल मिलाकर 10 ग्राम सभाओं को वन अधिकार दिए गए थे।
 
मुख्य जोन के इन गांवों की कामयाबी की कहानी ने इन 18 गांव के लोगों को भी उम्मीद दी है, जो सीएफआरआर की लड़ाई लड़ रहे हैं और जिन्होंने पीछे हटने से इंकार कर दिया है। 

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