क्या 58 दिन में मिल जाएगा मध्य प्रदेश के सभी ग्राम सभाओं को वन अधिकार?

सामुदायिक दावों की प्रक्रिया एक जटिल काम है जिसके लिए ग्राम सभा की मुकम्मल तैयारी की ज़रूरत होती है

By Satyam Shrivastava

On: Wednesday 06 October 2021
 

मध्य प्रदेश सरकार ने 58 दिन के भीतर राज्य की सभी ग्राम सभाओं को वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकारों के अधिकार पत्र सौंपने की मुहिम शुरू की है। यह काम 18 सितंबर से 15 नवंबर 2021 तक पूरा किया जाना है। लेकिन क्या यह संभव है?

दरअसल मध्य प्रदेश सरकार ने इस बार गोंडवाना राज के इन शहीदों की याद में ‘जनजाति गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का उद्यम किया है। 18 सितंबर 2021 को देश के गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में इस आयोजन की विधिवत शुरूआत की। यह आयोजन 15 नवंबर 2021 तक चलेगा। इस दिन झारखंड के बिरसा मुंडा का शहीद दिवस है।

इस आयोजन को जनजातियों के लिए यादगार बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने इस पूरी अवधि के दौरान वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 3 (झ) के तहत सामुदायिक वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया का समग्रता में पालन करने हेतु एक समय सारणी जारी की है।

संचालनालय, आदिम जाति क्षेत्रीय विकास योजनाएँ, मध्य प्रदेश, सतपुड़ा भवन, भोपाल की तरफ से, 17 सितंबर 2021 को जारी प्रदेश के सभी जिला कलेक्टर्स को संबोधित इस आदेश में 18 सितंबर 2021 से 15 नवंबर 2021 के बीच यानी 58 दिनों में प्रदेश की समस्त ग्राम सभाओं को वन अधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन अधिकारों के अधिकार पत्र सौंपे जाने को निश्चित करने के लिए कहा गया है।

यह समय सारणी और जनजाति गौरव को बढ़ाने के लिए किया जा रहा यह महत्वाकांक्षी उद्यम हास्यास्पद लगता है, क्योंकि मध्य प्रदेश भौगोलिक दृष्टि से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। आदिवासियों की जनसंख्या, राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार, 21. 1 प्रतिशत है 15.31 मिलयन आबादी केवल जनजाति समुदायों की है। वन अधिकार कानून को लागू हुए 13 साल पूरे हो चुके हैं।

जनजाति कार्य मंत्रालय, भारत सरकार को सौंपे प्रतिवेदन के अनुसार इन 13 सालों में मध्य प्रदेश सरकार ने व्यक्तिगत वन अधिकारों के मामलों में महज़ 7.12 प्रतिशत ही हासिल किया है। 33 लाख से ज़्यादा पात्र दावेदारों में से महज़ 206, 960 दावेदारों को ही व्यक्तिगत वन अधिकारों के दावे सुपुर्द किए जा सके हैं। कुल 5 दावे ही जमा करवाए जा सके हैं और जिनमें से 374, 718 व्यक्तिगत वन अधिकार के दावे निरस्त किए गए हैं।

वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और अधिकारी जानते हैं कि व्यक्तिगत वन अधिकार के दावों की प्रक्रिया सामुदायिक वन अधिकारों के दावों की प्रक्रिया से अपेक्षाकृत बहुत आसान है क्योंकि इसमें दावेदार की व्यक्तिगत रुचि होती है।

सामुदायिक दावों की प्रक्रिया एक जटिल काम है जिसके लिए ग्राम सभा की मुकम्मल तैयारी की ज़रूरत होती है। इस प्रक्रिया को असावधानीवश संचालित नहीं किया जा सकता।

एटीआरईई की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में सामुदायिक वन संसाधनों के अधिकारों के लिए पात्र ऐसे गांवों की संख्या देखें तो न्यूनतम आंकलन 19158 गांवों का है। जिन्हें 67,170 वर्ग किलोमीटर के जंगल पर यह अधिकार मिलना चाहिए।

न्यूनतम 19158 गांवों में 67,170 वर्ग किलोमीटर के विशाल भूखंड पर दावे तैयार करवाना, उनका निरीक्षण, सत्यापन आदि करना समय साध्य काम है और वो भी एक ऐसे प्रदेश में जहां वन भूमि व राजस्व भूमि के अभिलेखों में ऐतिहासिक गलतियां मौजूद हों।

यह निर्धारण करना मुश्किल हो कि कौन सी जमीन वन भूमि है और कौन सी भूमि राजस्व भूमि। यानी कहां वन अधिकार कानून लागू होता है और किस भूमि पर वह लागू नहीं होता है।

मध्य प्रदेश के भूमि विवादों पर हाल ही में 6 फरवरी 2020 को मध्य प्रदेश, वन मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ए.पी. श्रीवास्तव की अध्यक्षता में गठित एक रिपोर्ट में यह बतलाया गया है कि 1956 से ही मध्य प्रदेश में आरक्षित वन बनाए जाने के लिए भारतीय वन कानून, 1927 की धारा 5 से लेकर 19 तक की जाँचें लंबित हैं। ये ज़मीनें जबरन वन विभाग के कब्जे में हैं जबकि वही ज़मीनें राजस्व अभिलेखों में दर्ज़ हैं।

सरकार की मंशा पर भरोसा करते हुए भी यह कहा जाना ज़रूरी है कि 2006 में देश की सर्वोच्च संस्था यानी भारत की संसद ने यह कानून जनजातियों पर हुए ऐतिहासिक अन्यायों को स्वीकार करते हुए उन्हें न्याय देने के उद्देश्य से बनाया था। इसे महज़ किसी ईवेंट में बदलकर अगले अन्याय की मजबूत आधारशिला न रखी जाए।

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 13 फरवरी 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के बेदखली के फैसले के आलोक में व्यक्तिगत वन अधिकारों की समीक्षा व नए सिरे से ऐसे दावों के लिए जारी की थी। लेकिन उसका हश्र सर्वविदित है।

20 फरवरी 2020 को जारी एक परिपत्र में 30 जून 2020 तक खारिज हुए दावों का निराकरण कर लिए जाने की समयबद्ध प्रक्रिया अपनाने पर जोर दिया गया। इस प्रक्रिया को उन्होंने तकनीकी आधारित बनाते हुए प्रदेश मे वन एप मित्र के माध्यम से की थी।

इस समय सारिणी के हिसाब से 29 फरवरी 2020 से लेकर 30 जून 2020 तक समस्त दावों का परीक्षण हो जाना था। इसका हश्र प्रदेश के आदिवासी व जंगलों पर आश्रित समुदाय जानते हैं। आज डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी इस एप के माध्यम से जमा किए दावों की पावती भी दावेदारों को नहीं मिली है।

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