यहां जानिए आखिर क्यों दक्षिण पूर्व एशिया के पहाड़ों से निकल रहा है अत्यधिक ग्रीन हाउस गैस

ऊंचे पहाड़ों, तेज ढलानों पर जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है, इन वनों में तराई की तुलना में कार्बन इकट्ठा करने की क्षमता अधिक होती है।

By Dayanidhi

On: Wednesday 14 July 2021
 
Photo : Wikimedia Commons

दक्षिण पूर्व एशिया में सभी उष्णकटिबंधीय पर्वतीय जंगलों का लगभग आधा हिस्सा है। ये जंगल जैव विविधता और कार्बन भंडारण के लिए जाने जाते हैं। अब शोध से पता चला है कि हाल के दशकों में क्षेत्रीय पर्वतीय जंगलों का काफी नुकसान हुआ है। आखिर जंगलों का नुकसान क्यों हो रहा है? इनका सफाया होने से किस तरह के नुकसान होंगे इसी पर प्रकाश डाला गया है। 

नए शोध के मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया में फॉरेस्ट क्लीयरेंस तेजी से किया जा रहा है, जिससे चलते कार्बन उत्सर्जन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शिक्षाविदों सहित एक शोध दल ने इस बात का खुलासा किया है। शोध के निष्कर्षों  से पता चलता है कि कृषि के लिए जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है। इसमें अधिक ऊंचाई वाले इलाके और तेज ढलान भी शामिल हैं।

इस सबके चलते 40 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक कार्बन हर साल वातावरण में मिल रही है, क्योंकि इस क्षेत्र में जंगलों का बड़े स्तर पर सफाया किया जा रहा है। गौरतलब है कि हाल के वर्षों में उत्सर्जन का यह आंकड़ा बहुत बढ़ गया है। यह अध्ययन नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है।

लीड्स स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरनमेंट के सह-शोधकर्ता प्रोफेसर डॉमिनिक स्प्रैकलेन ने कहा दक्षिण पूर्व एशिया के अधिकांश निचले उष्णकटिबंधीय जंगलों को कृषि के लिए पहले ही साफ कर दिया गया है। बहुत पहले पहाड़ के जंगलों को अक्सर फॉरेस्ट क्लीयरेंस देने से बचा जाता था क्योंकि खड़ी ढलानों और अधिक ऊंचाई में वनों की कटाई मुश्किल होती थी।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अब हमारे शोध से पता चलता है कि वनों की कटाई अब इन पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से हो रही है और पिछले 10 वर्षों में बहुत अधिक बढ़ गई है। ये पर्वतीय वन जैव विविधता से प्रचुर हैं और कार्बन भंडारण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए यह बहुत चिंताजनक है कि अब वनों की कटाई की सीमा दक्षिण पूर्व एशिया के पहाड़ों में ऊपर तक पहुंच चुकी है।

इन जंगलों का नष्ट होना प्रकृति के लिए एक विनाशकारी आघात है और इससे जलवायु परिवर्तन में और तेजी आएगी। दक्षिण पूर्व एशिया में सभी उष्णकटिबंधीय पर्वतीय जंगलों का लगभग आधा हिस्सा जैव विविधता से समृद्ध हैं। इन जंगलों में धरती के कार्बन की एक बड़ी मात्रा है।

शोध में पाया गया कि 21वीं सदी के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया के पहाड़ों में फॉरेस्ट क्लीयरेंस में तेजी आई है, जो इस क्षेत्र में कुल वनों के नुकसान का एक तिहाई हिस्सा है। उपग्रह के उच्च-रिज़ॉल्यूशन के आधार पर आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि 2001-2019 के दौरान इस क्षेत्र में वार्षिक औसत वनों का नुकसान 32.2 लाख हेक्टेयर प्रति वर्ष था, जिसमें 31 फीसदी का नुकसान पहाड़ों पर हुआ।

पिछले एक दशक में वनों का नुकसान की औसत ऊंचाई में 150 मीटर की वृद्धि हुई है और तराई की तुलना में ऊंचे पहाड़ों पर वन कार्बन घनत्व वाले तेज ढलानों पर वृद्धि हुई है। इन बदलावों के कारण जंगलों से प्रति वर्ष 42.4 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन का नुकसान हुआ है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें और तेजी आई है।

लीड्स स्कूल ऑफ ज्योग्राफी के सह-शोधकर्ता प्रोफेसर जोसेफ होल्डन ने कहा पहाड़ों के जंगल जैव विविधता, भविष्य की जलवायु से निपटने, जल आपूर्ति और कार्बन भंडारण के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसलिए पिछले 20 वर्षों में दक्षिण पूर्व एशिया के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत अधिक ऊंचाई पर जंगलों का नुकसान होना एक प्रमुख चिंता का विषय है। विशेष रूप से यह देखते हुए कि इन क्षेत्रों में कई संवेदनशील प्रजातियां भी रहती हैं। 

शोध में इस बात के बदलाव का पता लगाने के लिए उच्च रिज़ॉल्यूशन उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। यह इस बात को भी उजागर करता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वन संरक्षण और कार्बन प्रबंधन को आगे बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है।

वनों के बायोमास कार्बन मानचित्र के साथ जंगलों के नुकसान के आंकड़े को जोड़ा गया है, उन्होंने पाया कि फॉरेस्ट क्लीयरेंस से उत्पन्न कार्बन हानि मुख्य रूप से 2000 के दशक में निचले इलाकों में थी, उदाहरण के लिए इंडोनेशिया में। 2010 के दशक में, हालांकि, तराई वन कार्बन हानि में कमी आई, जबकि म्यांमार और लाओस जैसे क्षेत्रों में पर्वतीय वन कार्बन हानि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

यह शोध शेष जंगलों के भविष्य के नुकसान को कम करने के लिए रणनीति बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। जहां अभी भी वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर करने और जैव विविधता संरक्षण सहित बेशकीमती पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को संरक्षित करने की बड़ी क्षमता है।

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