सिमलीपाल की आग भड़कने का कारण यूकलिप्टस के पेड़ तो नहीं
एक अधिकारी ने कहा कि राज्य में 5,695,873 हेक्टेयर भूमि में से 67,828 हेक्टेयर जमीन पर ज्यादातर यूकलिप्टस के पेड़ लगाए गए हैं
On: Wednesday 10 March 2021
15 दिन पहले ही सूचना मिल चुकी थी, लेकिन 15 दिन बाद भी ओडिशा के सिमलीपाल टाइगर रिजर्व (एसटीआर) में लगी आग नहीं बुझ सकी। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे में इसका अर्थ है कि एसटीआर और राज्य के अन्य जंगलों में लगाए गए यूकलिप्टस पेड़ आग की इस भयावहता को बढ़ाने के पीछे के कारण हो सकते हैं।
ओडिशा एनवायरनमेंटल सोसायटी के सचिव जयकृष्ण पाणिग्रही के दावे के मुताबिक, जंगल के बड़े हिस्से से औषधीय पौधों और अन्य देशी पेड़ों को काट कर यूकलिप्टस के पेड़ लगाए गए थे। यूकलिप्टस के पेड़ों में आसानी से आग लग सकती है। इसकी पत्तियों में अत्यधिक ज्वलनशील तेल पाया जाता है, जो आसानी से आग को भड़का सकते हैं। इसके पत्ते पेड़ के नीचे भारी मात्रा में बिखरे रहते हैं, जिससे पेड़ों में आग लग जाती है।
पाणिग्रही ने कहा, "वन विभाग द्वारा देशी वृक्ष, जैसे साल, महुली, आसन, करंज, अर्जुन, कटहल की जगह यूकलिप्टस के पेड़ लगाना गैरकानूनी है, जिसकी वजह से आज आग इतने भयावह स्तर पर फैल रही है।"
राज्य के वन विभाग ने 1977 में पहली बार जोशीपुर और सिमलीपाल के कलिंग वन क्षेत्रों में यूकलिप्टस के पेड़ लगाने शुरू किए थे। बाद में राज्य के अन्य जंगलों में भी ये पेड़ लगाए गए। राज्य सरकार ने अधिक से अधिक यूकलिप्टस पेड़ लगाने के लिए 2021 में कंपेंसेटरी अफॉरस्टेशन फंड मैनेजमेंज़ एंड प्लानिंग अथॉरिटी (कैम्पा) के तहत 903 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की है।
अब तक राज्य में विभिन्न सार्वजनिक और विकासात्मक कामों के लिए कुल 5,695,873 हेक्टेयर भूमि का डायवर्जन किया जा चुका है।
कैम्पा, ओडिशा के चीफ एक्जीक्यूटिव यू नंदूरी ने कहा कि इसके एवज में अब तक 67,828 हेक्टेयर जमीन पर ज्यादातर यूकलिप्टस के पेड़ लगाए गए है।
23 फरवरी को सिमलीपाल टाइगर रिजर्व में लगी आग को बुझाने के लिए वन अधिकारियों, फायर ब्रिगेड, पुलिस, स्थानीय लोगों और स्वयंसेवकों सहित 10,000 से अधिक लोगों ने अपने स्तर पर प्रयास किया। यह आग बाद में राज्य के 30 जिलों में से 28 जिलों के जंगलों में फैल गई।
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, रिजर्व के अंदर 1,428 स्थानों में आग लगने की घटनाएं दर्ज की गई है।
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राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री बिक्रम केशरी अरूखा ने कहा, “वरिष्ठ वन अधिकारी दमकल कर्मियों का मार्गदर्शन करने के लिए मौके पर हैं। सरकार इस तरह की बड़ी आग की घटनाओं के कारणों का अध्ययन करेगी और उसके अनुसार कार्य योजना तैयार करेगी।”
मंत्री ने आगे कहा कि स्थिति को संभालने के लिए राज्य सरकार ने देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्टरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून, नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद, ओडिशा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, भुवनेश्वर और अन्य एजेंसियों से मदद मांगी है।
मंत्री ने कहा,“हम सेटेलाइट के माध्यम से फायर अलर्ट जारी कर रहे हैं। सुदूर जंगल में आग लगने पर हमें तुरंत पता चल जाता है। लेकिन ये अलर्ट आग लगने के बाद ही जारी किए जाते हैं। सरकार इस बात की जांच करेगी कि बड़े पैमाने पर आग कैसे और क्यों फैली।”
अरुख ने कहा कि राज्य के पूर्व प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) संदीप त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो आग की घटना की समीक्षा करेगी और सुझाव देगी।
इस बीच, कई पर्यावरणविदों ने सिमलीपाल के जंगल में लगी आग की जांच की मांग की है। इस आग से बड़े पैमाने पर वनस्पति नष्ट हो गए। ये आग सिमलीपाल के आसपास के आदिवासी गांवों को भी प्रभावित कर सकती है।
पीपुल्स फॉर एनिमल्स के ओडिशा यूनिट के सचिव संजीव दास ने कहा,”वन विभाग को घटना की जांच करनी चाहिए। क्या जंगल की आग एक दुर्घटना थी या किसी ने जानबूझकर जंगल में आग लगा दी।“
दास ने आगे कहा कि दमकलकर्मी और स्थानीय लोग पेड़ों की शाखाओं को काट कर आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं। पहुंच की सुविधा न होने के कारण दमकल वाहन वन क्षेत्र के बड़े हिस्से में जा पाने में असमर्थ हैं।
एक वरिष्ठ अग्निशमन अधिकारी ने कहा, “हम आग को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जंगल से आने वाली हवा के कारण आग आसपास के जंगल और गांवों में फैल रही हैं।“