घातक है प्राकृतिक जंगल काटना, करते हैं कृत्रिम जंगल से 23 फीसदी अधिक कार्बन कैप्चर

भारत में किये इस अध्ययन के अनुसार जिन जंगलों में वृक्षों की कई प्रजातियां साथ-साथ पायी जाती हैं, वहां कार्बन अधिक मात्रा में अवशोषित और संग्रहित होती है

By Lalit Maurya

On: Friday 10 January 2020
 
Photo credit: needixe

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन का असर दिन प्रतिदिन विकराल रूप लेता जा रहा है। जिसको देखते हुए इससे निपटने के लिए अनेकों प्रयास किये जा रहे हैं। जिसमें जीवाश्म ईंधन से हो रहे उत्सर्जन में कटौती करने से लेकर कार्बन अवशोषण जैसे उपायों पर दुनिया भर में बहस जारी है। जिसमें नए जंगल उगाना और मौजूदा जंगलों को बहाल करना कुछ सर्वोत्तम तरीकों के रूप में उभरा है। चूंकि पेड़ प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन को हवा से बाहर खींच लेते हैं, और फिर उसे अपनी जड़ और तने में संग्रहित कर लेते हैं। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक सस्ता और कारगर उपाय है। इस सन्दर्भ में जर्नल एनवायरनमेंट रिसर्च लेटर में एक नया शोध प्रकाशित हुआ है। इसके अनुसार जिन जंगलों में वृक्षों की कई प्रजातियां साथ-साथ पायी जाती हैं, वो कुछ प्रजातियों वाले जंगलों की तुलना में कार्बन को अवशोषित और संग्रहीत करने में कहीं अधिक विश्वसनीय और स्थिर है। यह अध्ययन कोलंबिया विश्वविद्यालय के पृथ्वी संस्थान और उसके पारिस्थितिकी, विकास और पर्यावरण जीवविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। 

भारत के जंगलों पर आधारित है यह अध्ययन

यह अध्ययन भारत के जंगलों पर किया गया है। जहां वन संरक्षण कानूनों के कारण प्राकृतिक और काष्ठ के लिए उगाये गए जंगल दोनों को संरक्षण प्राप्त है। इस शोध में पश्चिमी घाट में उगे दोनों तरह के वनों की कार्बन अवशोषण और संग्रह करने की क्षमता का तुलनात्मक अध्ययन किया है। इसके लिए नम और सूखी दोनों परिस्थितियों का भी ध्यान रखा गया है। अध्ययन के लिए चयनित इस क्षेत्र में पहले सागौन और नीलगिरी (यूकलिप्टस) के वृक्ष थे, जिन्हें हाल के वर्षों में लकड़ी के लिए नहीं काटा गया है। इसके साथ ही साथ प्रजातियों से समृद्ध सदाबहार और पर्णपाती उष्णकटिबंधीय वन भी थे, जिनका 1980 तक विशेष रूप से दोहन किया गया था। इस क्षेत्र के अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पेड़ों की प्रजातियों की समृद्धि का विश्लेषण किया है। साथ ही किसी एक स्थान पर उगने वाले पेड़ों की ऊंचाई और चौड़ाई को भी मापा है। जिसके आधार पर पेड़ों के ऊपर बायोमास और उसके कार्बन भंडारण की गणना की गई है। इसके साथ ही एक विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में प्रकाश संश्लेषक गतिविधि का पता लगाने वाले उपग्रह की सहायता से कार्बन कैप्चर की दर का भी आंकलन किया गया है। 

कम रही कृत्रिम वनों की कार्बन कैप्चर करने की दर

इस अध्ययन में कार्बन स्टोरेज के विषय में एक जटिल तस्वीर सामने आयी है। बाद में उगाये गए सागौन और यूकेलिप्टस के जंगलों ने प्राकृतिक सदाबहार वनों की तुलना में 30 से 50 फीसदी तक कम कार्बन को संग्रहित किया था। लेकिन यह संग्रहण नम-पर्णपाती वनों के लगभग बराबर था । जबकि प्राकृतिक वनों में लम्बी अवधि के दौरान भी कार्बन कैप्चर में स्थिरता बनी रही थी। विशेष रूप से सूखे की स्थिति में भी उनसे उत्साहवर्धक नतीजे सामने आये थे। जबकि इसके विपरीत बारिश के मौसम में कृत्रिम रूप से लगाए गए जंगलों ने सदाबहार और पर्णपाती जंगलों की तुलना में 4 से 9 फीसदी अधिक कार्बन को कैप्चर किया था। इसके बावजूद उन्होंने शुष्क मौसम में बहुत कम मात्रा में कार्बन को अवशोषित किया था। जिसका परिणाम है कि उनकी कार्बन कैप्चर करने की दर प्राकृतिक जंगलों की तुलना में 29 फीसदी कम पायी गयी थी। 

शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु मॉडल बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते आने वाले वक्त में सूखे की स्थिति और गंभीर हो जाएगी। ऐसे में शुष्क मौसम के दौरान प्राकृतिक वनों के कार्बन सोखने की क्षमता मायने रखती है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि भले ही कृत्रिम रूप से लगाए गए जंगल कुछ मामलों में प्राकृतिक जंगलों से प्रतिस्पर्धा करते हैं। लेकिन वो लम्बी अवधि के दौरान विशेष रूप से सूखे और जलवायु सम्बन्धी घटनाओं की स्थिति में किसी भी तरह से प्राकृतिक जंगलों की बराबरी नहीं कर सकते।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक आनंद एम ओसुरी मानते हैं कि प्राकृतिक वनों के अन्य फायदों के साथ-साथ उनकी कार्बन कैप्चर की क्षमता भी महत्वपूर्ण है। जिससे नए वृक्षों को लगाने से पहले प्राकृतिक जंगलों को बचाने और पुनर्जीवित करने सम्बन्धी नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए| बॉन और पेरिस क्लाइमेट सम्मलेन में भी वृक्षारोपण और उसकी वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने का एक कारगर तरीका माना है। भारत सरकार भी प्राकृतिक वनों को बहाल करने और उनके संरक्षण के लिए कई जरुरी कदम उठा रही है। इसके बावजूद 2015 से 2018 के बीच भारत के आधे से अधिक क्षेत्रों में उगाये गए जंगलों में पांच या उससे कम प्रजातियों के पेड़ लगाए गए थे। जोकि एक चिंता का विषय है।

हालांकि नए जंगल लगाने की पहल में एक या दो प्रजाति के पेड़ों पर ध्यान केंद्रित करना आसान और सस्ता हो सकता है, लेकिन लेखक का मत है कि यदि सरकार कार्बन कैप्चर और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम को देखते हुए यह जंगल लगा रही है, तो अधिक से अधिक मात्रा में देशी पेड़ों की प्रजातियों को लगाने पर ध्यान देना चाहिए।

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