पारिस्थितिकी तंत्रों को बचाने के लिए 2050 तक पर्यावरण पर करना होगा 587 लाख करोड़ का निवेश

रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक प्रकृति-आधारित समाधानों पर अब से करीब चार गुना ज्यादा निवेश करना होगा

By Lalit Maurya

On: Friday 28 May 2021
 

यदि धरती पर मौजूद पारिस्थितिकी तंत्रों को नष्ट होने से बचाना है तो 2050 तक पर्यावरण पर करीब 587 लाख करोड़ रुपए (8.1 लाख करोड़ डॉलर) का निवेश करने की जरुरत होगी| यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट द स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर में सामने आई है, जिसे यूनाइटेड नेशन एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी), वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) और द इकोनॉमिक्स ऑफ लैंड डिग्रडेशन इनिशिएटिव (ईएलडी) ने तैयार किया है|

वहीं यदि वार्षिक आधार पर देखें तो अब से 2050 तक हर साल जमीन, जलवायु और जैविविधता को बचाने के लिए 38.9 लाख करोड़ रुपए (53,600 करोड़ डॉलर) खर्च करने होंगें, जोकि वैश्विक जीडीपी का करीब 0.13 फीसदी है|

रिपोर्ट के अनुसार यदि 2020 के आधार पर देखें तो वर्तमान में प्रकृति-आधारित समाधानों पर करीब 964,120 करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है जिसे 2030 तक तिगुना और 2050 तक चार गुना बढ़ाना होगा|

रिपोर्ट के मुताबिक अब से 2050 के बीच निवेश में करीब 297.2 लाख करोड़ रुपए के अंतर को भरने के लिए संरचनात्मक बदलाव करने होंगे| आज दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है ऐसे में इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसे ध्यान में रखते हुए हमें इस दिशा में कहीं ज्यादा प्रयास करने होंगें| पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही कृषि, रासायनिक उर्वरकों और जीवाश्म ईंधन के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं, उनका उपयोग कहीं बेहतर तरीके से किया जा सकता है| 

प्रकृति में किया यह निवेश न केवल हम इंसानों बल्कि अन्य जीवों और पृथ्वी के लिए भी फायदेमंद होगा| इससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगें। रिपोर्ट में सरकारों से अपने महामारी प्रोत्साहन पैकेज में जैव विविधता और जलवायु से जुड़े समाधानों को शामिल करने का भी आह्वान किया है| हालांकि यदि वर्तमान में कोविड-19 के मद्देनजर आर्थिक सुधारों के लिए जो खर्च किया जा रहा है उसका केवल 2.5 फीसदी ही प्रकृति आधारित समाधानों के लिए है|

यदि प्रकृति आधारित समाधानों की तुलना जलवायु पर किए जा रहे निवेश से करें तो वो उससे काफी कम है| जिसका करीब 86 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र पर निर्भर है| इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जहां 2018 में निजी क्षेत्र द्वारा जलवायु पर 23.6 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया था| वहीं इसकी तुलना में प्रकृति आधारित समाधानों के लिए हर वर्ष कुल निवेश की आवश्यकता की बात करें तो वो 38.9 लाख करोड़ रुपए है|

रिपोर्ट के अनुसार अकेले वनों के प्रबंधन, संरक्षण और बहाली सहित उसपर आधारित समाधानों के लिए वैश्विक स्तर पर कुल 14.7 लाख करोड़ रुपए की जरुरत होगी| इसे यदि 2021 की आबादी के आधार पर देखें तो यह प्रति व्यक्ति केवल 1,812 रुपए के बराबर है।

वहीं पिछले एक दशक के दौरान वैश्विक स्तर पर वनों को होने वाले नुकसान की बात करें तो उसके 26 फीसदी के लिए कृषि से जुड़ी केवल सात चीजें पाम आयल, सोया, कोको, रबड़, कॉफी, लकड़ी के रेशे और मवेशी ही जिम्मेवार थे|

रिपोर्ट में वनों की बहाली और संरक्षण पर भी जोर दिया गया है| इसकी मदद से वन और कृषि-वानिकी क्षेत्र में 2050 तक लगभग 30 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हो सकती है।

बेहतर भविष्य के लिए सुधारने होंगे प्रकृति के साथ बिगड़ते अपने रिश्ते

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक, इंगर एंडरसन के अनुसार जैव विविधता को हो रहा नुकसान पहले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल उत्पादन के 10 फीसदी का नुकसान पहुंचा रहा है| ऐसे में यदि हम प्रकृति-आधारित समाधानों पर पर्याप्त निवेश नहीं करेंगें तो उसका असर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की प्रगति पर पड़ेगा| यदि हम अभी पर्यावरण को नहीं बचाते हैं तो हम सतत विकास के लक्ष्यों को भी हासिल नहीं कर पाएंगें|

ऐसे में सरकारों, वित्तीय संस्थानों और व्यवसायों को भविष्य में अपने आर्थिक निर्णयों में प्रकृति को भी ध्यान में रखना होगा, जिससे निवेश के बीच की इस खाई को दूर किया जा सके| इसके लिए जरुरी है कि प्रकृति पर आधारित समाधानों को न केवल सरकारी क्षेत्र बल्कि निजी क्षेत्र द्वारा भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए|

यदि निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी की बात करें तो रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रकृति-आधारित समाधानों पर 2018 में निजी क्षेत्र ने केवल 130,482 करोड़ रुपए का निवेश किया था जोकि कुल निवेश का केवल 14 फीसदी था| जो स्पष्ट करती है कि इन समाधानों में अभी भी निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी काफी कम है जिसपर ध्यान देना होगा|

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक जीडीपी का करीब आधे से अधिक हिस्सा प्रकृति पर निर्भर है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता| इसपर किया गया निवेश न केवल विकास को बढ़ाएगा साथ ही इससे प्रदूषण में भी कमी आएगी| उत्पादन और खपत की जो प्रणाली वर्षों से चली आ रही है उसमें बड़े बदलाव करने होंगें, जिससे समाज को जलवायु परिवर्तन, भूख, गरीबी और बीमारियों से बचाया जा सके| हमें प्रकृति के साथ अपने बिगड़ते रिश्तों को सुधारना होगा, जिसपर हमारे ग्रह का भविष्य निर्भर करेगा| इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी|

1 डॉलर = 72.49 भारतीय रुपए

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