जैव-विविधता की अनूठी मिसाल है छोटी-काशी की प्राकृतिक धरोहर

साल भर जल उपलब्धता की वजह से पशु-पक्षियों के आश्रय-स्थल बने बूंदी के जंगल

On: Monday 13 May 2019
 
Photo : Prithvi Singh Rajavat

पृथ्वी सिंह राजावत

बूंदी (हाड़ौती) सहित पूरे राजस्थान में इन दिनों जहां एक और मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी के चलते जल-स्तर गहराने से पेयजल का गंभीर संकट पैदा होने लगा है, वहीं दूसरी ओर जिले के वन क्षेत्र व पहाड़ी इलाकों में परम्परागत जलस्रोतों पर पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए हैं। बूंदी जिले में रामगढ़-विषधारी वन्यजीव अभयारण्य में मेज नदी के अलावा दो दर्जन प्राकृतिक जल-स्रोत हैं, जिनमें 12 माह पानी रहता है। इसी प्रकार जिले के दक्षिण-पश्चिम में देवझर महादेव से भीमलत महादेव के दुर्गम पहाड़ी जंगलों में भी डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी कल-कल पानी बहता रहता है।

साल भर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जल उपलब्धता के चलते मूक प्रणियों के लिए बूंदी के जंगल सदियों से प्रमुख आश्रय-स्थल बने हुए हैं। इनमें से कई प्राकृतिक जल-स्रोत तो पहाड़ी की चोटियों पर है, जिनमें भीषण गर्मी में भी जल प्रवाह बना रहता हैं। जल उपलब्धता के कारण जिले में भालू, पेंथर सहित अन्य वन्यजीवों का कुनबा बढ़ा है तथा इलाका फिर से बाघों से आबाद होने लगा है। अब बढ़ते मानवीय दबाव व भौतिकतावादी दौर में इस जैव-विविधता के संरक्षण व इसे ओर अधिक समृद्ध बनाने की जरूरत है।

बूंदी-चित्तौड़ मार्ग पर गुढ़ानाथावतान कस्बे के निकट खजूरी माताजी का पहाड़ी नाला वर्ष भर जल उपलब्धता एवं सघन प्राकृतिक वनस्पति के चलते गर्मियों में कई प्रजातियों के दुर्लभ परिंदों का प्रमुख आश्रय स्थल बना हुआ है। करीब दो किलोमीटर लम्बा यह नाला अनुकूल वातावरण के चलते तीन दर्जन से अधिक प्रजातियों के परिंदों का प्रमुख प्रजनन केंद्र बना हुआ है। इनमें भारतीय गिद्ध, बोनेलीज ईगल, लाल व बेंगनी सिर वाले तोते, स्वेताक्षी चिड़िया, गोल्डन ओरयो, बेंगनी शक्करखोरा, हरियल या हरे कबूतर, पपीहा, नवरंग, कोयल, पीतकंठ गौरया, निलिमा, पहाड़ी बुलबुल, कलंगीगीदार गंदम, दूधराज जैसे दुर्लभ व रंग-बिरंगें पक्षी शामिल हैं।

नाले के मध्य भाग में गर्मियों में भी पानी बहता रहता है तथा अंतिम भाग में आधा दर्जन जगहों पर खड़ी चट्टानों से पानी झरता रहता हैं जिससे यहां बरगद, पीपल, लेसवा, जामुन व अन्य नम भूमि वाली वनस्पति का झुरमुट जैव-विविधता का अनुठा केंद्र बन गया है।

जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ आम-जन के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में भी उभरे हैं। इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालदां माताजी का स्थान प्रमुख है जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता हैं तथा प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है। इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा, जो अब कालदां वन खण्ड के रूप में जाना जाता है।

बूंदी में पहाड़ी तलहटियों व पहाड़ों के ऊपर पानी का प्रवाह निरन्तर एक सा बना रहने के पीछे पहाड़ों पर जल-संचय व सघन वनस्पति प्रमुख कारण है। राजस्थान में जहां पहाड़ियां वनस्पति विहीन हो गई हैं, वहां के प्राकृतिक जल-स्रोत भी सूखने लगे हैं। बूंदी सहित पूरे राजस्थान में मैदानी इलाकों में जल-स्तर गहराने के पीछे भू-जल का अति दोहन है, जिसे रोकना होगा। साथ ही, जल स्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल का संचयन व मैदानी इलाकों में अधिक से अधिक पौधारोपण करना होगा।

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