दुनिया भर में आग लगने की घटनाओं से चार हजार से अधिक प्रजातियों को खतरा

मेलबर्न विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया भर में जंगल में आग लगने से लगभग 4,400 से अधिक प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है।

By Dayanidhi

On: Wednesday 25 November 2020
 

आग ने जैव विविधता के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और यह कई पारिस्थितिक समुदायों को आकार देने वाला एक प्राकृतिक तरीका है। हालांकि मानवीय गतिविधि के कारण आग की घटनाएं बढ़ गई है और यह अब पारिस्थितिक तंत्र और आवासों को प्रभावित कर रही है।

मेलबर्न विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया भर में जंगल में आग लगने से लगभग 4,400 से अधिक प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है।

अध्ययनकर्ता डॉ. ल्यूक केली ने कहा कि इन प्रजातियों में 19 प्रतिशत पक्षी, 16 प्रतिशत स्तनपायी, 17 प्रतिशत कीट पतंगे (ड्रैगनफ्लाई) और 19 प्रतिशत पेड़-पौधे शामिल हैं जिन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय या कमजोर रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह आग से जुड़े खतरों का सामना करने वाले पौधों और जानवरों की एक बड़ी संख्या है।

डॉ. केली ने कहा हाल की आग लगने की घटना ने पारिस्थितिक तंत्र को काफी नुकसान पहुंचाया है। जहां क्वींसलैंड, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय जंगलों से आर्कटिक क्षेत्र के टुंड्रा तक जंगल में आग लगने की इतनी घटनाएं पहले कभी नहीं देखी गई।

जिन क्षेत्रों का आग लगने की घटनाओं का लंबा इतिहास है वहां बहुत बड़ी और गंभीर आग देखी गई है। इसमें ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी यूरोप और अमेरिका के पश्चिमी राज्य शामिल हैं, यहां के जंगलों में बढ़ती आग की घटनाएं देखी गई हैं।

शोध टीम को ऑस्ट्रेलिया से महत्वपूर्ण उदाहरण भी मिले हैं जिसमें अगस्त 2019 से मार्च 2020 तक पूर्वी सीबोर्ड की झाड़ियों में आग लगने से 1.26 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र जल गया था।

हालांकि यहां कुछ अपवाद भी हैं, जहां कुछ ऐसी प्रजातियां और पारिस्थितिक तंत्र भी है जिनको आग न लगने से खतरा होता है। उदाहरण के लिए आग लगना, अफ्रीकी सवाना पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और आग न लगने के कारण अतिक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है, जो खुले इलाकों को पसंद करने वाले वन्यजीवों जैसे जंगली जानवर शाकाहारी जानवरों को विस्थापित कर सकते हैं।

दुनिया भर के 27 शोधकर्ताओं ने मानव संबंधी गतिविधियों से लगने वाली आग के तीन मुख्य समूहों की पहचान की है। इसके जैव विविधता पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। जिसमें दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन, भूमि-उपयोग और जैविक हमले शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि दुनिया भर के लोगों और सरकारों को पर्यावरण के लिए होने वाले अलग-अलग बदलावों को अपनाने और उनका सामना करने की आवश्यकता है।

डॉ केली ने कहा यह वास्तव में नए और एक साहसी संरक्षण की पहल का समय है। इन कार्यों में बड़े पैमाने पर जानवरों के निवास की बहाली करना शामिल हैं। शाकाहारी जानवर घास को खाकर इसके जलने की संभावना को कम करते हैं, जिससे क्षेत्र कम ज्वलनशील बनता है और वे झाडियों को सही परिस्थितियों में जलने में मदद करते हैं। लोगों की भूमिका वास्तव में महत्वपूर्ण है, पारंमपरिक तरीके से प्रबंधित आग से दुनिया के कई क्षेत्रों में जैव विविधता और मानव कल्याण बढ़ेगा।

ला ट्रोब विश्वविद्यालय में जूलॉजी के प्रोफेसर माइकल क्लार्क ने कहा कि हमारा शोध जानवरों, पौधों और लोगों को चुनौती की भयावहता को उजागर करता है, बिगड़ती जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए यह एक मुख्य निष्कर्ष निकालता है।

भारत के जंगलों में आग लगने की घटनाएं

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें भारत के कई इलाकों में आग लगने की आशंका जताई गई थी। वन क्षेत्र के कुल 7,12,249 वर्ग किमी में से 1,52,421 वर्ग किमी (21.40 प्रतिशत) में आग लगने की सबसे अधिक आशंका थी। जिसमें मिजोरम, छत्तीसगढ़, मणिपुर, ओडिशा और मध्य प्रदेश के जंगल सबसे ज्यादा असुरक्षित बताए गए थे।

सर्वेक्षण में एमओडीआईएस (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर) सेंसर डेटा का उपयोग किया गया, जिसके अनुसार सन 2019 में 29,547 आग लगने की घटनाओं का पता लगा।  

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