सदी के अंत तक 50 फीसदी और बढ़ जाएगी जंगल में आग लगने की घटनाएं

अनुमान है कि सदी के अंत तक दावाग्नि की इन घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हो सकता है

By Lalit Maurya

On: Thursday 31 March 2022
 

अगले कुछ दशकों में जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी, उनके साथ ही इन घटनाओं से जुड़ा सामाजिक और आर्थिक जोखिम भी पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। हालांकि शोध में यह भी कहा गया है कि इससे होने वाले वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में थोड़ी ही वृद्धि का अनुमान है।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में भी बढ़ती दावाग्नि के बारे में चेतावनी दी थी कि सदी के अंत तक तक बढ़ते तापमान के साथ ऐसी घटनाओं में 50 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। देखा जाए तो दुनिया भर के जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं अब बढ़ते तापमान के साथ सामान्य होती जा रही हैं।

गौरतलब है कि अभी कुछ वर्ष पहले ही 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में भीषण आग लगी थी, जिसकी वजह से करीब 1.9 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल नष्ट हो गए थे। इसकी वजह से 33 लोगों की जान चली गई थी जबकि 151,735 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इसी तरह 2019-20 में अमेजन में भीषण आग लग गई थी, जिसमें भी भारी क्षति हुई थी।   

शोधकर्ताओं का मानना है कि इस शोध से जुड़े निष्कर्ष दावाग्नि के बढ़ते खतरे के बारे में हमारी क्षेत्रीय समझ में सुधार कर सकते हैं और भविष्य में लगने वाली आग से निपटने की तैयारियों में हमारी मदद कर सकते हैं। साथ ही यह जानकारी जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने और इससे जुड़े सामाजिक आर्थिक नुकसान के बारे में सटीक जानकारी दे सकते हैं। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।

गौरतलब है कि अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने जंगल में लगने वाली आग के कारण होने वाले उत्सर्जन और उसके सामाजिक आर्थिक प्रभावों को समझने के लिए मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 21वीं सदी में दावाग्नि के कारण होने वाले उत्सर्जन में उतनी वृद्धिं नहीं होगी, लेकिन आबादी, जीडीपी और कृषि क्षेत्र पर यह घटनाएं व्यापक असर डाल सकती हैं। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि अफ्रीका, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी दक्षिण अमेरिका के वो जंगल जिन में पहले भी आग लगने की आशंका ज्यादा थी, उनपर यह खतरा 21वीं सदी में भी बरकरार रहेगा। इतना ही नहीं पश्चिम और मध्य अफ्रीकी देशों में आग लगने की यह घटनाएं और बढ़ता सामाजिक आर्थिक विकास विशेष तौर पर आबादी, जीडीपी और कृषि, इससे पैदा होने वाले सामाजिक-आर्थिक जोखिम को और बढ़ा सकते हैं।    

धरती पर प्रति व्यक्ति केवल 0.52 हेक्टेयर वन क्षेत्र ही रह गए हैं शेष

वहीं संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी रिपोर्ट 'ग्लोबल फारेस्ट रिसोर्स एसेस्समेंट 2020' के अनुसार 1990 से लेकर अब तक दुनिया भर के करीब 17.8 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो चुके हैं। ऐसे में यदि पृथ्वी पर मौजूद हर व्यक्ति के हिसाब से देखें तो प्रति व्यक्ति केवल 0.52 हेक्टेयर जंगल बाकी बचे हैं।

     

वहीं हाल ही में मोनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दावाग्नि की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु में आता बदलाव आग लगने के मौसम पर असर डाल रहा है, जिस वजह से इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

शोध से पता चला है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहता है तो इस सदी के अंत तक दावाग्नि का खतरा दुनिया के 74 फीसदी भूभागों को अपनी जद में ले सकता है। हालांकि रिपोर्ट का यह भी मानना है कि यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर लिया जाता है तो  इस जोखिम को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

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