दुनिया भर में चरने वाले जानवरों की विलुप्ति से आग की घटनाओं में हुई वृद्धि

शोध में दुनिया भर के 410 इलाकों के आग लगने के चारकोल रिकॉर्ड से पता चला कि, चरने वाले बड़े जानवरों के विलुप्त होने के बाद आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई।

By Dayanidhi

On: Friday 26 November 2021
 
दुनिया भर में चरने वाले जानवरों की विलुप्ति से आग की घटनाओं में हुई वृद्धि
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

हजारों साल पहले, दुनिया के कई सबसे बड़े घास के मैदानों को चरने वाले जानवर विलुप्त हो गए। इन विशालकाय जानवरों में ऊनी मैमथ, विशाल बाइसन और प्राचीन घोड़े शामिल थे। येल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए अध्ययन के मुताबिक, इन चरने वाली प्रजातियों के नुकसान के चलते दुनिया के घास के मैदानों में आग की घटनाओं में नाटकीय वृद्धि हुई है।

यूटा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के सहयोग से, येल वैज्ञानिकों ने चार महाद्वीपों में विलुप्त हुए बड़े स्तनधारियों और उनके विलुप्त होने की अनुमानित तिथियों की सूची तैयार की। आंकड़ों से पता चला कि दक्षिण अमेरिका में सबसे अधिक चरने वाली, सभी प्रजातियों का 83 फीसदी का नुकसान हो गया है। इसके बाद उत्तरी अमेरिका में यह आंकड़ा 68 फीसदी का रहा। इसी तरह का नुकसान ऑस्ट्रेलिया में 44 फीसदी और अफ्रीका 22 फीसदी रहा।

फिर अध्ययनकर्ताओं ने इन निष्कर्षों की तुलना झील के तलछट या गाद में छिपी आग संबंधी गतिविधि के रिकॉर्ड के साथ की। दुनिया भर के 410 इलाकों के चारकोल के रिकॉर्ड का उपयोग करते हुए, जिससे महाद्वीपों में क्षेत्रीय आग की गतिविधि का एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड हासिल हुआ।उन्होंने पाया कि चरने वाले बड़े जानवरों के विलुप्त होने के बाद आग की गतिविधि में वृद्धि हुई।

जिन महाद्वीपों ने सबसे अधिक चरने वाले जानवरों का नुकसान झेला उनमें दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका शामिल है। इन इलाकों में आग लगने की सीमा में बड़ी वृद्धि देखी गई। जबकि महाद्वीपों में विलुप्त होने की कम दर ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में रही जहां घास के मैदानों में आग की गतिविधि में थोड़ा बदलाव देखा गया।

येल के पारिस्थितिकी और विकासवादी जीव विज्ञान विभाग के सहयोगी और अध्ययनकर्ता एलिसन कार्प ने कहा इन विशालकाय जानवरों के विलुप्त होने के परिणामस्वरूप काफी बदलाव आया। इन प्रभावों का अध्ययन करने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि आज शाकाहारी जीव वैश्विक पारिस्थितिकी को कैसे आकार देते हैं।

व्यापक रूप से विशाल शाकाहारी जानवरों के विलुप्त होने का पारिस्थितिक तंत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ा। शिकारी जानवरों से लेकर फल वाले पेड़ों के नुकसान तक जो कभी अलग-अलग हिस्सों में फैलने के लिए शाकाहारी जानवरों पर निर्भर थे। लेकिन अध्ययनकर्ताओं ने सोचा कि क्या दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र में आग की गतिविधि में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से सूखी घास, पत्तियों के कारण। उन्होंने पाया कि विशाल शाकाहारियों के नुकसान के कारण घास के मैदानों में आग बढ़ गई। 

हालांकि, कार्प और स्टावर ने इस बात पर भी गौर किया कि कई प्राचीन चरने वाली प्रजातियां- जैसे कि मास्टोडॉन, डिप्रोटोडोन और विशाल स्लॉथ, जो जंगली क्षेत्रों में झाड़ियों और पेड़ों पर रहते थे। ये भी इसी अवधि के दौरान विलुप्त हो गए थे, लेकिन उनके नुकसान का आग पर उतना प्रभाव नहीं पड़ा था। यह अध्ययन जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है। 

आग में वृद्धि के कारण जड़ी-बूटियों के नुकसान और चराई वाले घास के नुकसान के बाद दुनिया भर में घास के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र बदल गए थे। पशुओं सहित नए चरवाहे अंततः नए पारिस्थितिक तंत्र में ढल गए।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा इसलिए वैज्ञानिकों को आग और जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी जंगली चरवाहों की भूमिका पर विचार करना चाहिए। स्टावर ने कहा यह काम वास्तव में इस बात पर प्रकाश डालता है कि आग की गतिविधि को आकार देने के लिए चराई कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है। अगर हम भविष्य में लगने वाली आग के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना चाहते हैं तो हमें इन सब पर पूरा ध्यान देना होगा।

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