अब मध्यप्रदेश में गूंजा जंगल-जमीन कोन री छे, आमरी छे का नारा, 4 आदिवासी घायल

मध्यप्रदेश के बुरहान पुर के वन क्षेत्र में पुलिस की गोली से चार आदिवासी घायल हो गए। ये आदिवासी वन भूमि से कब्जा हटाने आए दस्ते का विरोध कर रहे थे 

By Manish Chandra Mishra

On: Thursday 11 July 2019
 
बुरहानपुर में अतिक्रमण हटाने की कोशिश में प्रशासन का अमला। फोटो: मनीष चंद्र शर्मा

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के बदनापुर बीट के वन क्षेत्र में मंगलवार सुबह से ही हलचल मची थी। एक के बाद एक करीब 9 जेसीबी, पुलिस और वन विभाग की गाड़ियों की वजह से इलाके में तनाव फैलने लगा। यहां प्रशासन की टीम करीब 150 हैक्टेयर की भूमि पर आदिवासियों का कब्जा हटाकर गड्ढे खोदने वाली थी, जिसमें पौधे लगाए जाने थे।

दो घंटे की गहमागहमी के बाद तकरीबन 60 हैक्टेयर भूमि पर गड्ढे कर दिए गए, लेकिन अचानक स्थानीय आदिवासी इस बात का विरोध करने पहुंच गए। आदिवासी एकता जिंदाबाद,  आमु आखा एक छे, आवाज दो हम एक है, जंगल जमीन कोन री छे आमरी छे आमरी छे के नारों के जंगल गूंज उठा। प्रशासन का आरोप है कि अतिक्रमणकारियों ने उनकी टीम पर हमला कर दिया। देर रात तक इलाके में तनाव की स्थिति बनी रही। पुलिस के मुताबिक स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस ने हवाई फायर किए।

पुलिस की गोली से गोखरसिंह बदोले गंभीर रूप से घायल हुए हैं। उनके गले में पैलेट (छर्रा) घुस गया है और अस्पताल में उसे निकालने की कोशिश की जा रही है। भूरालाल अच्छाले को छर्रा सीने और पांव में लगी। वहीं राकेश अच्छाले और वकील को छर्रा हाथ और पांव में लगा।

बुरहानपुर जिले के कलेक्टर राजेश कौल ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि पुलिस की तरफ से भीड़ नियंत्रण के लिए हवा में दो फायर किए गए, जिसमें एक व्यक्ति को बंदूक से निकला छर्रा लग गया। कलेक्टर कौल ने कहा कि घायल व्यक्ति को प्रशासन ने इंदौर इलाज के लिए भेजा है। स्थिति अभी नियंत्रण में है और मामले की पूरी जांच के लिए मजिस्ट्रेट जांच के आदेश भी दिए गए हैं।

आदिवासियों ने कहा, जमीन उनकी

हालांकि, आदिवासी आरोप लगा रहे हैं कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्होंने उस जमीन पर दावे किए हैं जिसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बावजूद इसके प्रशासन जबरदस्ती उनसे जमीन छीनना चाहता है।

आदिवासियों ने एक साथ बयान जारी कर कहा कि वन विभाग द्वारा अपनी पुरानी खेत पर काम कर रहे ग्रामीण आदिवासी महिलाओं एवं पुरुषों पर फायरिंग किए। जिसमें 4 लोग पुलिस की गोली से घायल हुए हैं।

आदिवासियों का कहना है कि वन अधिकार अधिनियम की धारा 4-5 के अनुसार जब तक कि दावेदारों के द्वारा जमा दावों की नियमित रूप से कार्यवाही नहीं होती, ऐसे दावेदारों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए। इसके बावजूद खेती पर लगे आदिवासियों पर आए दिन हमले चालू है एवं फसलों को नुकसान पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे है, जिनको लोग बड़ी मुश्किल उन्होंने रोका है।

आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम कर ही सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी कृष्णास्वामी ने बताया कि वन विभाग पिछले कई वर्षों से इस इलाके के आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करना चाह रहा है। आदिवासी उस जगह पर तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं और वन अधिकार कानून के तहत उन्होंने वर्ष 1988-89 के दस्तावेज सबूत के तौर पर लगाए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने एक मई को वन अधिकार अधिनियम के दावों को एक बार फिर सत्यापित करने के लिए सर्कुलर जारी किए थे। माधुरी ने आरोप लगाया कि उस सर्कुलर को प्रशासन ने नजरअंदाज कर गैर कानूनी तरीके से आदिवासियों पर कार्रवाई की है।

बुरहानपुर में पुलिस के छर्रे से घायल आदिवासी। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन पहले फायरिंग की बात मान ही नहीं रहा था, लेकिन जब लोगों के शरीर में पैलेट मिले तो उन्हें हमारी शिकायत पर केस दर्ज करना पड़ा। 

तो क्या अतिक्रमण हट गया?

इस सवाल का जवाब देते हुए कलेक्टर राजेश कौल ने प्रशासन का पक्ष लेते हुए कहा कि अतिक्रमण हटा लिया गया है। वे कहते हैं कि अतिक्रमणकारियों ने प्रशासनिक अमले पर पत्थरों से हमला किया और इसके जवाब में पुलिस को भी कार्रवाई करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि आदिवासियों का पक्ष जानने के बाद मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए गए हैं। जांच बुरहानपुर अपर कलेक्टर रोमानुस टोप्पो को सौंपी गई है। इधर, पुलिस ने आदिवासी और वन विभाग दोनों की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए तकरीबन 26 आदिवासियों पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 353, 147, 148, 149, 332, 427 के तहत नामजद प्रकरण दर्ज किया।

वहीं आदिवासी एकता संगठन ने शिकायत दर्ज कराई है कि प्रशासन की ओर से गोली चलाई। चार आदिवासी घायल हुए। पुलिस ने आदिवासियों की मेडिकल जांच कराने के साथ ही आइपीसी की धारा 336-337 के तहत मामला कायम कर जांच शुरू की है।

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