नमक सत्याग्रह की तर्ज पर कोयला सत्याग्रह कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी

पिछले एक दशक से अधिक समय से प्रति वर्ष दो अक्टूबर को रायगढ़ जिले की चार तहसील रायगढ़, तमनार, धर्मजयगढ़ और घरघोड़ा के लगभग 55 गांवों में कोयला सत्याग्रह किया जाता है

By Anil Ashwani Sharma

On: Wednesday 05 October 2022
 
छत्तीसगढ़ के कई गांव से ग्रामीण अपने-अपने क्षेत्र से कोयला खोदकर तगाड़ी में लेकर सत्याग्रह स्थल पर पहुंचे। फोटो: राजेश त्रिपाठी

कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है। यह अलग बात है कि यह दोहराव अपने किसी दूसरे रूप में होता है। जी हां, 91 साल से भी अधिक हो गए गांधी जी के नमक सत्याग्रह को लेकिन उसकी आंच कहें या उसका प्रभाव अभी भी देश के दूर-दराज जंगलों में बसे लोगों के दिलो दिमाग में जस का तस बना हुआ है।

यही वजह है कि आदिवासी समुदाय अब एक जनआंदोलन का रूप लेकर सरकार के खिलाफ गोलबंद हो रहे हैं। बीते दो अक्टूबर 2022 को 56 ग्राम पंचायत के हजारों आदिवासियों ने अपने-अपने क्षेत्र में एक-एक तगाड़ी कोयला खोदकर प्रतीक स्वरूप रायगढ़ के विकास खंड तमनार के ग्राम पंचायत के उरवा पेलमा गांव में आकर सत्याग्रह किया।

आदिवासियों ने इस कोयला सत्याग्रह की शुरूआत भारत के संविधान का पाठ पढ़ कर शुरू किया। यह सत्याग्रह प्राकृतिक संसाधन जल- जंगल और जमीन में सामुदायिक हक को लेकर शुरू किया गया है।

इस सत्याग्रह में झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, वहीं छत्तीसगढ़ के कोरवा, रायगढ़, अम्बिकापुर जिलों के साथ-साथ तमनार, घरघोडा, धरमजयगढ़, पुसौर, तमनार की 56 ग्राम पंचायत के ग्रामीण कोयला सत्याग्रह में शामिल हुए।

सत्याग्रह स्थल पर लगातार “हमन खोदबो, बेचबो, देश के किस्मत ला हमीच मन गढ़बो” जैसे छत्तीसगढ़ी भाषा में नारे लगाए जा रहे थे।

 

तमनार विकासखंड मुख्यालय में गांव-गांव से आदिवासी हाथ में कोयला लेकर आ रहे थे और लगातार “हमार कोयला-हमार हक” जैसे नारे लगा रहे थे। इस सत्याग्रह में बच्चे से लेकर बुजुर्ग सभी के हांथों में कोयले की ढेली थी तो कुछ लोग कांवर में कोयला ढोह कर ला रहे थे और एक जगह पर एकत्रित करने के बाद गांव में ही उसे नीलाम कर रहे थे।

देश में बड़ी कंपनियां कोयला जमीन से निकालती हैं और उसे बेचती हैं, लेकिन ग्रमाणों द्वारा कोयले को अपनी जमीन से निकालकर उसे बेचकर कोयले कानून को तोड़ना की शुरूआत की है। ध्यान रहे कि ग्रामीण अपनी भूमि दे ही नहीं रहे जिसके कारण सरकार भूमि का अधिग्रहण नहीं हो पा रहा है।

पिछले एक दशक से अधिक समय से प्रति वर्ष दो अक्टूबर को रायगढ़ जिले की चार तहसील रायगढ़, तमनार, धर्मजयगढ़ और घरघोड़ा के लगभग 55 गांवों में कोयला सत्याग्रह आयोजित होता आ रहा है।

ग्रामीण अपने-अपने गांव में भी कोयला कानून तोड़कर यहां आते हैं और सामूहिक रूप से इस सत्याग्रह में शामिल होते हैं। ग्रामीण किसी भी स्थिति में अपनी जमीन देना नहीं चाहते हैं। 2008 में हुई जनसुनवाई के दौरान पुलिस द्वारा किये गए लाठीचार्ज के बाद अब जब भी सत्याग्रह होता है तो ग्रामीण अधिक सतर्कता बरते हैं।

उसी समय से इस सत्याग्रह के माध्यम से सड़क पर लड़ते और आंदोलन करते आ रहे हैं कि जब जमीन हमारी है तो उस पर प्राप्त संसाधन पर भी मालिकाना हक हमारा होना चाहिए।

शासन-प्रशासन पर दबाव बनाने, उनके खिलाफ विरोध दर्ज करने और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कोयला खनन से रोकने के लिए 2011 से यह “कोयला सत्याग्रह” शुरू किया गया।

5 जनवरी 2008 गारे कोयला खदान की जनसुनवाई गारे और खम्हरिया गांव के पास के जंगल में आयोजित की गई थी और तभी पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया था। इसके बाद ग्रामीणों ने जन सुनवाई के विरुद्ध एक याचिका हाईकोर्ट में लगाई और इसके अलावा एनजीटी ने भी ग्रामीणों के पक्ष में फैसला दिया।

इसके बाद 25 सितंबर, 2011 को ग्रामीणों ने अपनी बैठक में फैसला किया कि अगर देश के विकास के लिए कोयला जरूरी है तो क्यों न हम कंपनी बनाकर स्वयं कोयला निकालें। इसके बाद सभी तकनीकी पहलुओं पर बातचीत की गई। ग्रामीणों ने तब “गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड” का गठन किया।

कोयला सत्याग्रह के संस्थापकों में से एक डॉ हरिहर पटेल ने बताया कि हम लोगों ने “जमीन हमारी संसाधन हमारा” के आधार पर खुद ही कोयला निकालने के लिए एक कंपनी बनाई बनाई, जिसमें गारे और सरईटोला गांव की 700 एकड़ जमीन का एग्रीमेंट भी करवा लिया।

इसके बाद गांव वालों ने लगातार अपनी जमीन से कोयला निकालना शुरू कर दिया। हमें रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन का बहुत दबाव बनाया गया। हम लोगों ने कहा कि हम अपनी जमीन से कोयला निकाल रहे हैं, आप रोक नहीं सकते।

ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के एक केस “बालकृष्णन बनाम केरल हाईकोर्ट” में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था कि संसाधनों पर पहला हक भूस्वामी का होता है। बालकृष्णनन ने जब अपनी जमीन से डोलोमाइट निकालना शुरू किया तो सरकार ने आपत्ति दर्ज कराई थी। तब बालकृष्णन कोर्ट में गए और निर्णय वादी के पक्ष में आया। इसी निर्णय के आधार पर गारे के ग्रामवासियों ने कोयला सत्याग्रह की शुरुआत की।

उरवा गांव की रहने वाली 38 वर्षीय कौशल्या चौहान ने बताया कि कोयला सत्याग्रह में पहले भी 4-5 बार शामिल हुई हैं। 12 साल से चले आ रहे इस सत्याग्रह के माध्यम से ग्रामीण अधिक जागरूक हुए हैं। ग्रामवासी अपने जल, जंगल और जमीन के महत्व को समझ गए हैं। हम सभी लोग कभी सरकार को अपनी जमीन नहीं देंगे।

जनचेजना मंच के राजेश त्रिपाठी बताते हैं कि आदिवासी ऐसा विकास नहीं चाहते हैं, जिसके कारण उनकी जमीनें और खेत उनके हाथ से निकल जाए। आदिवासियों को इतनी लंबी लड़ाई लड़ते हुए यह तो समझ आ गया है कि हमारा छतीसगढ़ पांचवीं अनुसूची में आता है। पेसा कानून लागू है और ग्रामसभा की अनुमति के बिना कोई भी खनन कार्य अवैध होगा। कंपनी 8 लाख और 6 लाख मुआवजा देने को तैयार है लेकिन गांववाले मुआवजा लेना ही नहीं चाहते क्योंकि वे अपनी जमीन नहीं देंगे।

ध्यान रहे कि बीते साल छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भूमि अधिग्रहण को लेकर राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि खनिजों और गौण खनिजों के लिए सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों की भूमि अधिग्रहित की जाती है तो इससे प्राप्त होने वाली रायल्टी का एक निश्चित हिस्सा उन्हें मिले। गौण खनिज से होने वाले फायदे का एक तय हिस्सा शेयर होल्डर के रूप में भूमि स्वामी को मिलता रहे।

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों के हवाले से कहा कि अनूचित जनजाति के भूमि स्वामी को एक बार मुआवजा देने के बजाए ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे उनको मासिक अथवा वार्षिक आमदमी होती रहे। यह किराया थोक मूल्य सूचकांक से जोड़ा जा सकता है, जिससे समय-समय पर महंगाई के साथ-साथ इसमें वृद्धि होती रहे।

अनूसूचित क्षेत्र में किसी भी प्रकार की परियोजना की स्थापना के पूर्व संबंधित ग्राम की ग्राम सभा में अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक होता है। इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 244 (1) में प्रावधान किए गए हैं।

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