गुजरात में चिड़ियाघर बना सकता है ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू सेंटर: सर्वोच्च न्यायलय

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Thursday 18 August 2022
 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 16 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर एक मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर और बचाव केंद्र है। साथ ही इसे मान्यता देने में कोई कानूनी पेंच नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश अधिवक्ता कन्हैया कुमार द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में था। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता का कहना था कि ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर को भारत और विदेशों में किसी भी व्यक्ति, सरकारी विभाग या चिड़ियाघर से जानवरों को प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

इसके अलावा, ग्रीन्स सेंटर के प्रबंधन के मामले में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा विदेशों और घरेलू स्तर पर कई लुप्तप्राय, कमजोर और संकट ग्रस्त जानवरों को आयात करने की अनुमति दी गई थी।

याचिकाकर्ता गुजरात के जामनगर जिले में इस सेंटर को एक चिड़ियाघर स्थापित करने के लिए दी गई अनुमति का भी विरोध कर रहा था।

इस मामले में ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि वो जानवरों के कल्याण के उद्देश्य से एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में काम कर रहा है।

ऐसे में यदि जूलॉजिकल पार्क से करों के भुगतान के बाद कोई राजस्व उत्पन्न होता है तो उसका उपयोग केवल बचाव इन जानवरों के राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए किया जाएगा।

ईआईए अधिसूचना, 2006 में संलग्न अनुसूची में शामिल क्यों नहीं है स्टोन क्रशिंग गतिविधियां: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 18 अगस्त, 2022 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) को यह बताने का निर्देश दिया कि क्यों स्टोन क्रशिंग गतिविधियां ईआईए अधिसूचना, 2006 में संलग्न अनुसूची में शामिल नहीं है। कोर्ट ने मंत्रालय से पूछा है कि मंत्रालय के 'परिवेश पोर्टल' में स्टोन क्रशिंग यूनिट्स को पर्यावरण मंजूरी के आवेदन का कोई प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए।

गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश बिप्लब कुमार चौधरी द्वारा दायर आवेदन के मद्देनजर आया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि मेसर्स लार्सन एंड टूब्रो लिमिटेड और मेसर्स सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, रैधक नदी तल में अपनी स्टोन क्रशिंग इकाइयों का संचालन कर रहे हैं।

खनन के दौरान वे नदी तल से बड़े-बड़े पत्थर और शिलाखंड भी निकाल रहे हैं और उसके बाद उक्त पत्थरों को तोड़कर वो उसके छोटे-छोटे क्यूबिकल्स बना रहे हैं और उन्हें आवश्यक अनुमति प्राप्त किए बिना अपने व्यावसायिक लाभ के लिए बेच रहे हैं।

इस मामले में पश्चिम बंगाल के राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) ने अपने हलफनामे में अदालत को जानकारी दी है कि स्टोन क्रशिंग गतिविधियों को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 से जुड़ी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है, और न ही इस तरह का आवेदन करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 'परिवेश पोर्टल' में कोई प्रावधान है।

यह भी कहा गया है कि मंत्रालय के 19 अप्रैल, 2021 को दिए कार्यालय ज्ञापन में पर्यावरण मंजूरी से संबंधित सभी फाइलों को 'परिवेश पोर्टल' के माध्यम से सख्ती से प्रोसेस किया जाना है। इस मामले में एनजीटी की प्रधान पीठ ने अपने 31 जनवरी, 2019 को दिए अपने आदेश में यह निर्देश दिया था कि स्टोन क्रशिंग इकाइयों को अनिवार्य रूप से खनन से पहले पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करनी होगी।

सेन्की, पचिन और डिक्रोंग नदी प्रदूषण मामले में एनजीटी ने जताई नाराजगी

एनजीटी ने अपने 18 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में सेन्की, पचिन और डिक्रोंग नदी प्रदूषण मामले में राज्य सरकार पर नाराजगी व्यक्त की है। गौरतलब है कि इन नदियों में कचरे के निपटान के मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार ने कोर्ट से और वक्त मांगा था। यह मामला नवंबर 2020 से अदालत में लंबित है और ऐसे में कोर्ट ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य सरकार को और समय देने से इनकार कर दिया है। 

राज्य सरकार को तीन नदियों सेन्की, पचिन और डिक्रोंग के लिए तैयार पर्यावरण संबंधी कार्य योजना को रिकॉर्ड में लाना था।

दामोदरी नदी अवैध खनन मामले में न्यायालय के निर्देशों का पालन न करने पर एनजीटी ने जिलाधिकारी से मांगा जवाब

दामोदरी नदी में होते अवैध खनन के मामले में न्यायालय के निर्देशों का पालन न करने पर एनजीटी ने बांकुड़ा के जिलाधिकारी से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को कहा है। मामला पश्चिम बंगाल के गोपालपुर का है।

गौरतलब है कि एनजीटी उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मार्को फ्रांसेस्को शूज प्राइवेट लिमिटेड को वैध पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त किए बिना ही दामोदर नदी तल पर लगभग 12.10 एकड़ क्षेत्र में खनन करने की मंजूरी दे दी गई थी।

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