पहले कभी नहीं हुई ऐसी विलुप्ति

यह एजेंडा पूरी मानवता के लिए है कि वह इस धरती और उसके संसाधनों को मानवीय हमलों से बचाए

By Richard Mahapatra

On: Monday 27 May 2019
 

हमारी जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की विभिन्न सेवाएं खतरे में हैं। एक के बाद एक प्रजातियां विलुप्ति के अंधे कुंए में मानवीय गतिविधियों का धक्का खाकर गिर रही हैं। जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन करने वाली अंतरसरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) ने पहली बार इस धरती पर संकटग्रस्त जैवविविधता की स्थिति से पर्दा उठाया है। आईपीबीईएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मानव इतिहास में वैश्विक स्तर पर प्रकृति में अप्रत्याशित दर से गिरावट दर्ज हो रही है। जिस तरह प्रजातियों की विलुप्ति दर है वह पूरी दुनिया में लोगों पर भयानक प्रभाव छोड़ सकती है। आईपीबीईएस के वैश्विक आकलन के मुताबिक पशुओं और वनस्पतियों की दस लाख प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। इसमें से हजारों एक दशक के भीतर ही विलुप्त हो जाएंगी। जिस तरह रिपोर्ट में कहा गया है उससे यही अंदाजा लगता है कि यह मानव इतिहास में हुई विलुप्ति से कहीं बढ़कर होगा।

बीती सदी (1900) की शुरुआत में इस धरती पर मौजूद स्थानीय प्रजातियों की संख्या में 20 फीसदी की गिरावट आई थी। ठीक इसी तरह 40 फीसदी उभयचर (जल और भूमि दोनों पर रहने वाली) प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। यदि हम 16वीं शताब्दी से प्रजातियों की विलुप्ति का पीछा करें तो अब तक मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी वाली 680 प्रजातियां विलुप्ति की खाई में ढकेली जा चुकी हैं। जबकि खाने और कृषि के काम में लिए जाने वाले 9 फीसदी सभी पालतू स्तनधारी नस्लें 2016 तक विलुप्त हो गईं। इसमें अभी एक हजार प्रजातियां ऐसी जुड़ सकती हैं जिनपर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 33 फीसदी चट्टानों का निर्माण करने वाले कोरल अर्थात प्रवाल और एक तिहाई समुद्री स्तनपायी खतरे में हैं।

आईपीबीईएस ने अपनी रिपोर्ट के बारे में कहा है कि यह पहली बार है जब पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं और जैव विविधता को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में करीब तीन वर्ष लग गए। 50 देशों के 145 विशेषज्ञ लेखकों ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। वहीं, रिपोर्ट जारी करने से पहले 15 हजार से अधिक वैज्ञानिक और सरकारी दस्तावेजों का अध्ययन और पड़ताल किया गया। रिपोर्ट के जरिए प्राथमिक तौर पर यह विश्लेषण किया गया है कि आर्थिक विकास की वजह से प्रकृति और पारिस्थितिकी सेवाओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। यह आकलन 6 मई,2019 को जारी किया गया।

इस वैश्विक आकलन की सह-अध्यक्षता करने वाले जर्मनी के जोसेफ सेटेल ने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियां, वन आबादी ,पालतू पशु और वनस्पतियों की स्थानीय किस्में और नस्लें सिकुड़ती, नष्ट होती और गायब होती जा रही हैं। इस पृथ्वी पर जीवन का फैला महत्वपूर्ण अंतर्जाल छोटा और अस्त-व्यवस्त होता जा रहा है। यह नुकसान सीधा मानवीय गतिविधियों से जुड़ा है। इस नुकसान की वजह से दुनिया में पूरी मानवता की सेहत को खतरा है।

आईपीबीईएस के अध्यक्ष रॉबर्ट वाट्सन ने कहा कि जिस पारिस्थितिकी तंत्र पर हम और अन्य प्रजातियां पूरी तरह निर्भर हैं वह बेहद तेजी से नष्ट होता जा रहा है। हम अपने पशु, खाद्य सुरक्षा और हमारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद को ही नष्ट करते जा रहे हैं। आकलन में कहा गया है कि मानवीय गतिविधियों के कारण तीन चौथाई जमीन आधारित पर्यावरण और करीब दो तिहाई समुद्री पर्यावरण में बहुत ही अहम बदलाव हुए हैं। इस वक्त 75 फीसदी ताजे पानी के संसाधनों का इस्तेमाल फसलों और पशुओं के लिए हो रहा है। इसका खामियाजा भी भयावह होगा। मिसाल के तौर पर जमीन खराब होने के कारण वैश्विक स्तर पर 23 फीसदी जमीन की उत्पादकता खत्म हो चुकी है। परागणकारी जीवों की कमी के चलते 577 अरब डॉलर की वैश्विक फसल का जोखिम है। वहीं, तटीय पर्यावास खत्म होने व उनका संरक्षण न होने के कारण 10 से 30 करोड़ लोगों पर बाढ़ व तूफान का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट का आकलन है कि यह गिरावट 2050 तक जारी रहेगी।

आया एलियन, डरी जैवविविधता

एशिया प्रशांत के द्वीपों और समुद्र में एक नए आक्रमणकारी परिग्रही (एलियन) ने स्थानीय जैव विविधता के लिए तनाव पैदा कर दिया है। पुरानी कथा की तरह इस समुद्री एलियन प्रजाति को भूगोल का नया दुश्मन माना जा रहा है। डरने की बात यह है कि वैश्विक स्तर पर संरक्षण और जैवविविधता के विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र को नुकसान पहुंचाने वाली इस एलियन प्रजाति के बारे में किसी को पर्याप्त जानकारी नहीं है। इसलिए इस एलियन से लड़ने और उसे बाहर भगाने के लिए हमारे पास कोई रणनीति नहीं है। आईपीबीईएस के प्रारूप रिपोर्ट में यह कहा गया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने वाले इन एलियन प्रजाति की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। रिपोर्ट व आकलन के मुताबिक एशिया प्रशांत क्षेत्र में इन एलियन की वजह से बड़ा नुकसान हो रहा है। इन परिग्रही जीवों से कृषि प्रधान क्षेत्र और शहरी क्लस्टर्स प्रभावित होते रहते हैं। इनका हमला द्वीप और तटीय क्षेत्र पर होता हैं।

आईपीबीईएस के ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में यह परिग्रही स्थानीय आजिविका के लिए बड़ा खतरा हैं। इस क्षेत्र में ताजे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र 28 फीसदी समुद्री और अर्धसमुद्री प्रजातियों को सहयोग देता है। वहीं, इस क्षेत्र में करीब 37 फीसदी प्रजातियां, अत्यधिक मछलियों के शिकार, प्रदूषण, औद्योगिक विकास और आक्रमणकारी एलियन प्रजाति के कारण हुआ है।

आईपीबीईएस आकलन रिपोर्ट के मुताबिक यदि मानवीय सभ्यता ने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए कदम नहीं बढ़ाया तो यह दुनिया एक बड़े फासले के साथ तय समावेशी विकास लक्ष्यों को हासिल करने से चूक सकती है। ट्रांसफोरमेटिव चेंजेस एक्रॉस इकोनॉमिक, सोशल, पोलिटिकल एंड टेक्नोलॉजिकल फैक्टर्स नाम की रिपोर्ट में यह चेताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के जरिए तय एसडीजी लक्ष्यों में 80 फीसदी (44 में 35 लक्ष्य) अब भी पूरे नहीं हो पाएंगे।

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