पिछले 5 वर्षों के दौरान नेपाल में 16.5 फीसदी बढ़ी गैंडों की आबादी

2015 की गणना में इन एक सींग वाले गैंडों की आबादी 645 थी, जो पांच साल के अंतराल में बढ़कर 752 हो गई है

By Lalit Maurya

On: Monday 12 April 2021
 

पिछले 5 वर्षों के दौरान नेपाल में एक सींग वाले गैंडों की संख्या में करीब 16.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जिसकी आबादी 752 हो गई है। हालांकि इस दौरान इनकी प्राकृतिक मौतों और अवैध शिकार की घटनाओं में भी वृद्धि देखी गई है। मार्च और अप्रैल में की गई गैंडों की इस गणना के अनुसार इनकी संख्या में 107 की वृदि हुई है। गौरतलब है कि इससे पहले 2015 में की गई गणना में इनकी आबादी 645 दर्ज की गई थी।

एक सींग वाले इन गैंडों को भारतीय गैंडे (राइनॉसरस युनिकॉरनिस) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली गैंडों की एक प्रजाति है जिसे इसे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में 'असुरक्षित' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। ग्रे रंग के यह विशालकाय जीव आकार में हाथी के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं। एक वयस्क गैंडे का वजन आमतौर पर 2-2.5 मीट्रिक टन के बीच होता है। यह ज्यादातर एकांत जीवन व्यतीत करते हैं।

नेपाल में इन गैंडों की सबसे बड़ी आबादी चितवन नेशनल पार्क में हैं जहां इनकी संख्या 694 है। वहीं बर्दिया नेशनल पार्क में 38, शुक्लाफांटा नेशनल पार्क में 17 और परसा नेशनल पार्क में 3 है। गणना के अनुसार इनमें से 146 नर और 198 मादाएं हैं जबकि 408 गैंडों के लिंग के बारे में जानकारी नहीं है। वहीं यदि इनकी उम्र के लिहाज से देखें तो इनमें से 520 गेंडे वयस्क हैं, जबकि 96 कम उम्र के वयस्क और 136 बच्चे हैं।

1994 में 466 दर्ज की गई थी इनकी संख्या 

पिछले पांच वर्षों के दौरान चितवन नेशनल पार्क और उसके आसपास कुल 161 गैंडे मृत पाए गए थे। जिनमें से 5 की मौत शिकारियों के कारण हुई थी। दक्षिणी मैदानों में कभी एक सींग वाले हजारों गैंडे विचरण करते थे। लेकिन बढ़ते अवैध शिकार और आवासों पर अतिक्रमण के चलते 1960 के दशक में इनकी आबादी घटकर 100 के करीब रह गई थी। 1994 में इनकी आबादी 466 दर्ज की गई थी। तब से लेकर अब तक नेपाल हर पांच वर्षों में इन गैंडों की गणना कर रहा है। 2011 में इनकी संख्या 534 थी जो 2015 में 21 फीसदी बढ़कर 645 हो गई थी।

पिछले कुछ वर्षों में नेपाल सरकार ने इन गैंडों के अवैध शिकार को रोकने की दिशा में की प्रयास किए हैं साथ ही इनके संरक्षण पर भी जोर दिया है जिसका नतीजा है कि हाल के वर्षों में इनकी आबादी में वृद्धि हुई है। हालांकि चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में इनके बेशकीमती सींगों के अवैध व्यापार और उनके औषधीय गुणों के कारण इनपर लगातार खतरा बना हुआ है।

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