दो बीघा जंगल

जहां जानवर घूमते थे, अब वहां हाथी ट्रेन के नीचे आकर कटकर मर जाता है तो कभी कोई हिरन, जंगली सूअर, तेंदुआ या नीलगाय वाहनों के नीचे आ जाता है। 

By Sorit Gupto

On: Tuesday 15 May 2018
 

सोरित/सीएसई

“ठाकुर हरनाम सिंह ने अभी इसी वक्त तुम्हें अपनी हवेली में आने का बुलावा भेजा है।”

यह सुनते ही शम्भू की रीढ़ से ठंडी लहर दौड़ गई। उसने एक बार अपनी बीवी पार्वती की ओर देखा, एकबार अपने बच्चों और बाकी झुंड की ओर। पूरा झुंड आराम से खाने में मस्त था।

पार्वती की आंखों में भी डर था पर उसने अपने को संभालते हुए कहा , “एक बार जाकर देख तो आओ कि ठाकुर साहब ने क्यों बुलाया है?”

शम्भू भारी कदमों से ठाकुर की हवेली की ओर चल पड़ा।

“आपने मुझे बुलाया सरकार?” शम्भू , ठाकुर हरनाम सिंह के सामने फर्श पर बैठता हुआ बोला। हरनाम सिंह ने कुछ कागज शम्भू की ओर बढ़ाते हुए कहा, “बस इस पर तुम अपने अंगूठे का निशान लगा दो।”

“मैं तो ठहरा अनपढ़ जानवर, आप ही बता दो कि क्या लिखा है इस कागज पर।” हकलाते हुए शम्भू बोला। “तुम्हें तो पता है शम्भू कि हमारा इलाका आज भी कितना पिछड़ा है। एक भी मॉल नहीं, न कोई वाटर पार्क है।

गांव के लोग आज भी हाट-बाजार से अनाज-पाती खरीदते हैं। तुम्हें तो पता है कि मैं हमारे इलाके में विकास के लिए कितनी कोशिश कर रहा हूं। आखिरकार मुझे स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाने के लिए सस्ती दरों पर जमीन मिल भी गई है, बस तुम्हारे दो बीघे का जंगल बीच में आ रहा है। जल्दी से कागज पर अंगूठे का निशान लगा दो, इनमें यह लिखा है कि तुम अपने दो बीघे का जंगल मुझे बेच रहे हो।”

शम्भू ने कहा, “सरकार, जंगल तो हमारी मां है! मैं अपनी मां को कैसे बेच सकता हूं ? मुझसे यह नहीं हो सकेगा सरकार।”

ठाकुर हरनाम सिंह चीख उठा, “तेरी इतनी हिम्मत शम्भू! तो ठीक है कल तक मेरे उधार का पाई-पाई चुका दे। मुंशी जी शम्भू को उसका हिसाब बता दो।”

शम्भू हाहाकार कर उठा, “मुझ पर ऐसा जुलुम मत कीजिए सरकार। मैं एक अनपढ़ जानवर भला कैसे इतने रुपयों का बंदोबस्त करूंगा?”

ठाकुर हरनाम सिंह बोले, “मैं चाहता था कि इलाके की तरक्की हो, वहां रोजगार बने, तुमको रोजगार मिले और तुम एक जंगली जिंदगी को छोड़कर सभ्य-शिक्षित बनो पर तुम ही जंगली बने रहना चाहते हो तो तुम्हारी मर्जी।” यह कहकर ठाकुर हवेली के अंदर चला गया।

शम्भू ने जब यह बात अपने झुंड को बताई तो किसी को विश्वास नहीं हुआ। शम्भू बुझे मन से बोला, “हमारे पास अब एक ही उपाय है कि हम शहरों में जाकर कुछ काम धंधा कर पैसे जोड़ें जिससे हम ठाकुर का पैसा वापस दे सकें।”

थोड़े दिनों बाद शम्भू अपने परिवार और अपने झुंड के सदस्यों के साथ शहर के बीच से बहती एक गंदली नदी के किनारे बंधा देखा गया, साथ में एक बोर्ड लगा था- “यहां हाथी रहते हैं”।

अब शम्भू, पार्वती और बाकी हाथी शहर में माल ढोने का काम करते थे। कभी-कभार उनको सजा धजाकर धार्मिक जुलूसों में भी ले जाया जाता था। ट्रैफिक के पागल करने वाले शोर से शम्भू के लोगों के कान सुन्न पड़ जाते हैं और धुएं और धूल से उनकी सांस अटक जाती थीं।

सड़कों का पिघला हुआ कोलतार उनके पैरों के तलवों से चिपक कर उन्हें बुरी तरह लहूलुहान करता था।

एक दिन शम्भू को पता चला कि उसके दो बीघे के जंगल से होकर अब एक आठ लेन का हाइवे और एक ट्रेन लाइन गुजरती है।

जहां कभी जानवर दिन-रात आराम से घूमते थे, अब वहीं रातों को कभी कोई हाथी ट्रेन के नीचे आकर कटकर मर जाता है तो कभी कोई हिरन, जंगली सूअर, तेंदुआ या नीलगाय हाइवे पर तेजी से गुजरती गाड़ियों से कुचल कर मर जाती है।

Subscribe to our daily hindi newsletter