बाघ संरक्षण में प्रभावी हो सकती है एकीकृत मॉनिटरिंग

अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई है कि किसी वन्य आवास स्थान की गुणवत्ता में भिन्नता बाघों की आबादी में वृद्धि या उनकी संख्या में गिरावट को कैसे प्रभावित करती है।

By Umashankar Mishra

On: Monday 13 November 2017
 
Credit: Cse

बाघों की गिरती संख्या को देखते हुए जिन देशों में बाघ पाए जाते हैं, उन्होंने मिलकर वर्ष 2022 तक बाघों की आबादी दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हालांकि बाघों के आवास और उनकी आबादी के बारे में वैज्ञानिक आंकड़े न होना एक प्रमुख समस्या है। भारतीय अध्ययनकर्ताओं ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए कर्नाटक के बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर बाघ अभ्यारण्य से संबंधित विस्तृत अध्ययन के बाद बाघों के संरक्षण के लिए उनकी एकीकृत मॉनिटरिंग का सुझाव दिया है।

अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई है कि किसी वन्य आवास स्थान की गुणवत्ता में भिन्नता बाघों की आबादी में वृद्धि या उनकी संख्या में गिरावट को कैसे प्रभावित करती है।

अध्ययनकर्ताओं में शामिल मैसूर के नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन से जुड़े पर्यावरणविद संजय गुब्बी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “किसी भूक्षेत्र के प्राकृतिक आवास की गुणवत्ता में भिन्नता अक्सर पाई जाती है। उच्च गुणवत्ता वाले क्षेत्र में जीवों की आबादी अधिक होती है। लेकिन एक जगह पर किसी प्रजाति के जीवों की संख्या अधिक होने से भी उनके अस्तित्व को खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में जीव कम गुणवत्ता वाले आसपास के क्षेत्रों की ओर पलायन करने लगते हैं। पर, आवास की गुणवत्ता बेहतर न होने से जीवों को वहां भी अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है।”

कैमरा ट्रैप विधि से रंगास्वामी बाघ अभ्यारण्य में 55 बाघों के होने का अनुमान लगाया है। वर्ष 2015 में मार्च से मई के दौरान किए गए इस अध्ययन के दौरान 157 स्थानों पर सेंसर युक्त कैमरे लगाए गए थे। इस दौरान बाघों की 535 तस्वीरें प्राप्त की गईं और उनका विश्लेषण किया गया, जिससे अभ्यारण्य के प्रति 100 वर्ग किमी. क्षेत्र में बाघों की औसत संख्या छह से अधिक पाई गई है। 

कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण विधि में जंगल में बाघों द्वारा उपयोग किए जा रहे रास्तों पर सैकड़ों कैमरा ट्रैप (संवेदनशील कैमरे) लगा दिए जाते हैं। बाघों के कैमरे की रेंज में आते ही सेंसर आधारित ये कैमरे उनकी तस्वीरें खींच लेते हैं। हालांकि इसकी कुछ दिक्कतें भी हैं, जैसे- किसी क्षेत्र में अगर बाघ का फोटो खींचे जाने के बाद वह अन्य क्षेत्र में चला जाता है और वहां भी उसकी तस्वीर खींच ली जाती है तो दोहराव की संभावना रहती है। इससे बचने के लिए बाघ की धारियों के पैटर्न को केंद्र मे रखकर दोनों क्षेत्रों में ली गई तस्वीरों का मिलान किया जाता है, जिससे एक बाघ की दो बार गिनती होने की संभावना नहीं रहती। इस अध्ययन में धारियों के पैटर्न की पहचान करने के लिए वाइल्ड-आईडी नामक सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया है।

बिलिगिरी रंगास्वामी अभ्यारण्य के आसपास के वन क्षेत्रों में भी बाघों के होने की संभावना भी जताई जा रही है। यह अभ्यारण्य कर्नाटक में स्थित मलई महादेश्वरा हिल्स अभ्यारण्य, कावेरी वन्य जीव अभ्यारण्य एवं बानेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान और तमिलनाडु में स्थित सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व और नॉर्थ कावेरी वन्य जीव अभ्यारण्य से घिरा है। ऊंचाई और वर्षा की विविधता के कारण यहां जीवों के आश्रय-स्थलों में काफी भिन्नता देखने को मिलती है। यहां रहने वाले कई तरह के जीव बाघ और तेंदुए जैसे मांसाहारी जीवों के भोजन और अनुकूल आवास की दशाएं मुहैया कराते हैं। दूसरी ओर रंगास्वामी अभ्यारण्य की अपेक्षा सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व और मलई महादेश्वरा हिल्स अभ्यारण्य में बाघों का घनत्व काफी कम है।

गुब्बी के अनुसार “नीतियों और प्रबंधन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में भी इस अध्ययन के नतीजे फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि इसके अंतर्गत चार संरक्षित वन क्षेत्र और अन्य रिजर्व शामिल हैं। इसके आसपास स्थित उत्तर बरगुर, दक्षिण बरगुर, बिलिगुंड्लू, टैगगट्टी, बांदावाड़ी और तमिलनाडु में स्थित अन्य संरंक्षित वन क्षेत्रों को वन्य जीव अभ्यारण्य के रूप में मान्यता दिलाना भी अध्ययन का एक अहम बिंदु है।”

अध्ययनकर्ताओं की टीम में संजय गुब्बी के अलावा नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन से जुड़ीं रश्मि भट्ट और कर्नाटक के वन विभाग से जुड़े एस.एस. लिंगाराज एवं स्वयम चौधरी शामिल थे। यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।

(इंडिया साइंस वायर) 

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