भारत में आर्थिक विकास की गति को मंद कर सकता है जलप्रदूषण : विश्व बैंक

विश्व बैंक द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार नदियों और जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण भारत सहित अनेक देशों में आर्थिक विकास की गति को एक तिहाई तक कम कर सकता है ।

By Lalit Maurya

On: Wednesday 21 August 2019
 
A file photo of fly ash released into Renuka river by a coal-based thermal plant at Obra in Sonbhadra district of Uttar Pradesh. Photo: Meeta Ahlawat

क्या हो यदि आपको पता चले की जीवन देने वाला अमृत रूपी जल अब जहर में बदल चुका है । तथ्य हैरान कर देने वाले है पर सच है | दुनिया भर के कुछ क्षेत्रों की नदियों और झीलों में प्रदूषण इतना अधिक हो चुका है कि ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उनमें से धुंआ निकल रहा है। विश्व बैंक की ओर से जारी की गई ताजा रिपोर्ट में भारत के बंग्लुरू स्थित बेल्लांदुर झील का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, जिसके कारण छह मील दूर तक की इमारतों पर राख की बारिश हुई थी । विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में यह माना गया है कि दुनिया भर में जल की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही है । जिससे बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर उस क्षेत्र की आर्थिक संभावनाओं पर पड़ रहा है । मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि जल की ख़राब गुणवत्ता एक ऐसे संकट के रूप में उभर रहा है जिससे मानवता और पर्यावरण के लिए बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है । मूलतः यह रिपोर्ट वर्ल्ड बैंक द्वारा दुनियाभर में जल की गुणवत्ता पर इकट्ठा किये गए सबसे बड़ा डेटाबेस पर आधारित है । जिसे दुनिया भर में स्थित विभिन्न निगरानी स्टेशनों, उपग्रहों एवं रिमोट सेंसिंग तकनीक और मशीन लर्निंग मॉडल की सहायता से किये गए विश्लेषण और उससे प्राप्त हुए डेटा के आधार पर तैयार किया गया है ।

रिपोर्ट के अनुसार जब बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) प्रति लीटर 8 मिलीग्राम की सीमा को पार करती है तो उस क्षेत्र के जीडीपी की विकास दर 0.83 फीसदी गिर जाती है । जिसका सीधा प्रभाव स्वास्थ्य, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है, इनका सम्बन्ध आर्थिक क्षेत्र से होने के कारण उस क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में एक-तिहाई की कमी आ सकती है । गौरतलब है कि बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), जल में जैविक प्रदूषण की मात्रा का माप है और इससे हमें परोक्ष रूप से जल की गुणवत्ता का भी पता चलता है ।

विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष डेविड मालपास ने बताया कि, "साफ पानी आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण कारक है। जल की गुणवत्ता में आ रही गिरावट आर्थिक विकास को रोक रही है, स्वास्थ्य की स्थिति को खराब कर रही है, खाद्य उत्पादन को कम कर रही है और कई देशों में गरीबी को बढ़ा रही है ।"

 जल की गिरती गुणवत्ता के लिए उर्वरक हैं जिम्मेदार 

जल की गिरती गुणवत्ता के लिए नाइट्रोजन भी मुख्य रूप से जिम्मेदार है, जो की कृषि उत्पादन केलिए आवश्यक है लेकिन समस्या तब उत्पन्न हो जाती है जब यह नाइट्रोजन नदियों और सागरों में जाकर मिलता है। इसके कारणपानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और वहां एक मृत क्षेत्र  (डेड जोन) बन जाता है। वहीं हवा के संपर्क में आकर यह नाइट्रस ऑक्साइड बनाता है जो कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस है। सीएसई और डाउन टू अर्थ  द्वारा किये गए अध्ययन में भी यह बात सामने आयी है कि भारत में यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों को इस्तेमाल फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है। परन्तु यह भूमि और जल प्रदूषण का कारक बन खतरनाक साबित हो रहे हैं। वहीं नाइट्रोजन प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को खराब करने के साथ जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार है। गौरतलब है कि देश में पिछले 60 सालों में यूरिया का इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है। 1960-61 में देश में केवल 10 फीसदी नाइट्रोजन फर्टीलाइजरों का इस्तेमाल किया जाता था। 2015-16 में यह बढ़कर 82 प्रतिशत पर पहुंच गया है। वहीं पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के भूमिगत जल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक पाई गई है। हरियाणा में यह सर्वाधिक 99.5 एमजी प्रति लीटर है जो डब्ल्यूएचओ के मानक 50 एमजी प्रति लीटर से करीब दोगुना है। भारत में भी नाइट्रेट के कारण भूजल भारी मात्रा में प्रदूषित हो रहा है । केंद्रीय भूमि जल बोर्ड (सीजीडब्‍ल्‍यबी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि देश के 19 राज्यों के 50 प्रतिशत से अधिक जिलों में भूजल में विद्यमान नाइट्रेट का स्तर तय सीमा से अधिक है । 

बच्चों के स्वस्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर, भविष्य के संभावनाओं के लिए भी है खतरा

बच्चों के छोटी उम्र में नाइट्रेट के संपर्क में आने से उनका बौद्धिक और शारीरिक विकास भी प्रभावित होता है, जिससे भविष्य में उनके स्वास्थ्यपर बुरा असर पड़ता है और साथ ही कमाई की संभावनाएं भी कम हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत, वियतनाम और अफ्रीका के 33 देशों में जन्म लेने वाले उन शिशुओं का पूर्ण विकास नहीं हो पाया था, जो अपने जीवन के पहले तीन वर्षों में नाइट्रेट के बढे हुए स्तर के संपर्क में थे । अनुमान है कि पीने के पानी में फ्लोराइड के बढ़ने के कारण 25 देशों के 20 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, जिनमे से 6.6 करोड़ लोग अकेले भारत में रहते हैं, जिनमें कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं । भारत में मानव विकास सर्वेक्षण के स्वास्थ्य और सीजीडब्ल्यूबी द्वारा जारी भूजल में नाइट्रेट के प्रदूषण सम्बन्धी आंकड़ों के विश्लेषण में भी यह बात सामने आयी है कि चार से आठ साल की उम्र के बच्चों के नाइट्रेट्स की उच्च मात्रा के संपर्क में आने से उनका विकास प्रभावित हो रहा है । वह अपनी आयु वर्ग के सामान्य बच्चों की तुलना में अल्पविकसित हो रहे हैं। 

यदि प्रति हेक्टेयर कृषि भूमि में एक किलोग्राम अतिरिक्त उर्वरक डाला जाता है तो उससे पैदावार पांचप्रतिशत तक बढ़ सकती है, लेकिन इससे बच्चों में अविकसित होने के मामले 19 फीसदी बढ़ जाते हैं। वहीं भविष्य में वयस्क होने पर इन अविकसित बच्चों की आय भी सामान्य बच्चों की तुलना मेंदो प्रतिशत तक गिर जाती है । वहीं दूसरी और मनुष्यों द्वारा उर्वरकों के बढ़ते उपयोग, सिंचाई और शहरों से निकले अपशिष्ट जल के कारण जल स्रोतों में लवणता बढ़ती जा रही है, जिसका सीधा प्रभाव कृषि पैदावार पर पड़ रहा है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है जल में बढ़ते खारेपन के कारण हर वर्ष 17 करोड़ लोग जो कि बांग्लादेश की आबादी के बराबर हैं, के पेट भरने लायक भोजन गंवाया जा रहा है ।

प्रयासों से लाया जा सकता है, जल की जल की गुणवत्ता में सुधार

वर्ल्ड बैंक की यह रिपोर्ट सुधार की संभावनाओं पर भी प्रकाश डालती है, इस रिपोर्ट में उन उपायों का भी जिक्र किया गया है जिनको अपनाकर प्रभावित देश जल की गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं। इनमें सबसे पहले पर्यावरण की बेहतरी के लिए नीतियां और मानकों को लागू करने पर बल दिया गया है, उसके साथ ही प्रदूषण के स्तर की सटीक निगरानी, प्रभावी प्रणालियों को लागू करने, जल शोधन के ढांचे में मदद के लिए निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहन देने; जल की शुद्धिकरण के लिए नयी तकनीकों को अपनाने और नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विश्वसनीय व सटीक सूचना प्रदान करने पर जोर दिया गया है ।

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