आपके बच्चों की आंखों के लिए खतरा बन सकता है आपका धूम्रपान करना: शोध

सेकंड-हैंड स्मोकिंग ने केवल बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है और बल्कि आने वाले वक्त में बच्चों की दृष्टि में विकार भी पैदा कर सकता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 22 October 2019
 

स्मोकिंग सिर्फ करने वाले के ही नहीं अपितु उसके संपर्क में आने वाले के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती है। विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू का धुआं इनडोर (घर-चारदीवारी के भीतर) प्रदूषण का एक खतरनाक रूप है, क्योंकि इसमें 7,000 से अधिक रसायन होते हैं, जिनमें से 69 तरह के कैंसर का कारण बनते हैं। जर्नल जामा ऑप्थैल्मोलॉजी में छपे शोध के अनुसार सेकंड-हैंड स्मोकिंग ने केवल बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि आने वाले वक्त में बच्चों की दृष्टि में विकार भी पैदा कर सकता है

हांगकांग के बच्चों पर किये गए इस अध्ययन में यह चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं, जिसके अनुसार जैसे-जैसे बच्चे सेकंड-हैंड स्मोक के अधिक संपर्क में आने लगे उनकी आंखों के पिछले हिस्से की संरचना भी पतली होती गई। गौरतलब है कि जब आप खुद स्मोकिंग नहीं करते लेकिन जब कोई और स्मोक कर रहा होता है, तो वहां उपस्थित रहते हैं, इसे सेकंड हैंड स्मोकिंग कहते हैं।

आंखों के लिए कितनी नुकसान देह है सेकंड-हैंड स्मोकिंग

इस शोध के सह शोधकर्ता और चायनीज़ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जेसन याम ने बताया कि "चीनी बच्चों के लिए सेकंड-हैंड स्मोकिंग, स्वास्थ्य से जुड़ा एक बड़ा खतरा है, जो कि 40 फीसदी बच्चों को प्रभावित कर सकता है, इसलिए बच्चों पर इसके खतरे को देखते हुए लोगों को इस विषय में जागरूक करना और इसपर प्रतिबंध लगाना अत्यंत जरुरी है। "हालांकि यह पहले से ही ज्ञात है कि सेकंड-हैंड स्मोकिंग से वयस्कों के नेत्र खराब हो सकते हैं, जिसमें उम्र बढ़ने के साथ आंखों में धब्बे पड़ना और रोशनी का कम होना शामिल है, लेकिन बच्चों की आंखों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, यह ज्ञात नहीं था।

याम के अनुसार "हमने पाया कि बच्चों का सेकेंड-हैंड स्मोकिंग के संपर्क में आना 'कोरॉइड' के पतले होने से जुड़ा है। 'कोरॉइड' आंखों के पीछे की एक परत है, जिसमें बहुत सारी रक्त वाहिकाएं होती हैं। यह अध्ययन चायनीज़ यूनिवर्सिटी के हांगकांग आई सेंटर द्वारा 6 से 8 वर्ष के 1,400 बच्चों पर किया गया, जिसमें से 941 बच्चे सेकेंड-हैंड स्मोक के संपर्क में नहीं थे। इसके लिए बच्चों के माता-पिता ने बच्चों की उम्र, लिंग, बीएमआई, जन्म के समय बच्चों का वजन और सेकेंड हैंड स्मोक के संपर्क में आये या नहीं इस विषय पर आंकड़े उपलब्ध कराये थे।

शोधकर्ताओं ने बच्चों के 'कोरॉइड' को मापने के लिए स्वेप्ट सोर्स ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी तकनीक की सहायता ली। सेकेंड-हैंड स्मोक के संपर्क में आने वाले और न आने वाले बच्चों की आंख का तुलनात्मक अध्ययन करने पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि सेकेंड-हैंड स्मोक के संपर्क में आने वाले बच्चों के 'कोरॉइड' 6 से 8 माइक्रोमीटर पतले पाए गए। साथ ही, परिवार में धूम्रपान करने वाले लोग  जितने अधिक थे, 'कोरॉइड' उतना ही अधिक पतला था।

भारत में भी 12 करोड़ लोग करते हैं स्मोकिंग

भारत में लगभग 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में दुनिया के धूम्रपान करने वालों का 12 फीसदी हिस्सा रहता है। जहां तंबाकू से होने वाली बीमारियों से हर साल 10 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। हालांकि भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 2008 से सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बावजूद 1998 से 2015 के बीच धूम्रपान करने वालों की संख्या में 36 फीसदी का इजाफा हो चुका है।

स्मोकिंग न केवल करने वाले के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है, साथ ही यह आसपास रहने वाले के स्वास्थ्य को नुकसान पहुचांती है। इसलिए जिन घरों में परिवार का कोई सदस्य धूम्रपान करता है, वहां बच्चों पर इसका खतरा कई गुना बढ़ जाता है, इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि यदि माता-पिता को अपने बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य की रक्षा करनी है तो उन्हें अपने धूम्रपान की लत को छोड़ना होगा और साथ ही अपने बच्चों को घर के बाहर भी सेकंड-हैंड स्मोक के खतरे से बचाना होगा।

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