अफ्रीका में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार ने शिशु मृत्यु दर पर अंकुश लगाया है। इसके कारण वर्ष 2050 तक अफ्रीका दुनिया में सर्वाधिक बच्चों वाला महादेश बन जाएगा।
एक अरब से अधिक निवासियों के साथ अफ्रीका दुनिया में दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है। इसकी जनसंख्या अगले पैंतीस सालों में दोगुनी हो जाने की संभावना है। वर्ष 2100 तक अफ्रीका की आबादी चार अरब के आंकड़े को छू लेगी। यूनिसेफ की जेनरेशन 2030: अफ्रीका रिपोर्ट में इस महाद्वीप में एक बड़े जनसांख्यिकीय बदलाव की भविष्यवाणी की गई है। अफ्रीका विश्व में एकलौता ऐसा क्षेत्र है, जहां 21वीं सदी के दौरान मानव आबादी के बढ़ते रहने का अनुमान है।
ऊंची जन्म दर और प्रजनन आयु तक पहुंचे चुकी महिलाओं की बढ़ती तादाद अफ्रीका की जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण बनेगी। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक यहां लगभग दो अरब बच्चों का जन्म होगा। अफ्रीका को इस आबादी को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाएं मुहैया कराने के लिए व्यापक निवेश करना पड़ेगा।
जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो के जॉन एफ. मेय के अनुसार, “शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करने के साथ-साथ परिवार नियोजन सेवाओं को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। केवल शिक्षा या परिवार नियोजन से इस बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता। इसके लिए सामाजिक क्षेत्र में भी हस्तक्षेप करना पड़ेगा। शिक्षा और परिवार नियोजन दोनों के बीच विशेष तालमेल बैठाने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए महिला शिक्षा के विस्तार की जरूरत है।”
अफ्रीका में कुल 54 देश हैं। पिछले साल 10 में से नौ अफ्रीकी बच्चे बेहद गरीब और पिछडे देशों में पैदा हुए थे। इनमें से कई देश लंबे समय से युद्ध से जूझ रहे हैं। फिलहाल अफ्रीकी देशों में जिस दर से बच्चों का जन्म हो रहा है, इस सदी के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते यहां 18 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या लगभग एक अरब हो जाएगी।
अफ्रीका में प्रजनन आयु (15-49) प्राप्त कर चुकी महिलाओं की संख्या वर्ष 1950 में 5.4 करोड़ थी। जबकि 2015 में यह बढ़कर 28 करोड़ हो गई है। मौजूदा रुझान को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्ष 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 40.7 करोड़ तक पहुंच हो जाएगा।
अफ्रीका के हालात
दुनिया भर में सबसे ऊंची प्रजनन दर के कारण इस क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि के लिए नाइजर, चाड, सोमालिया जैसे गरीब अफ्रीकी देशों को वजह माना जाता है। यहां की महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 5.2 बच्चों को जन्म देती है, जबकि उत्तरी अमेरिका में यह दर 1.6 और यूरोप में 1.9 है।
हालांकि, इन अफ्रीकी देशों ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काफी निवेश किया है। लेकिन जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। जॉन एफ. मेय का कहना है कि यह बहुत तेज गति से चल रहे ट्रेडमिल पर दौड़ने जैसा काम है। बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सामाजिक क्षेत्रों में अधिक निवेश की जरूरत पड़ेगी।
जनसंख्या संदर्भ ब्यूरो के विशेषज्ञ इन देशों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के लिए तीन कारणों का हवाला देते हैं। पहला, मृत्यु दर (विशेष रूप से शिशु और बाल मृत्यु) में तेजी से गिरावट। इसके अलावा, एक हद तक एचआईवी/एड्स का कम होना भी एक वजह है। दूसरा, प्रजनन क्षमता में गिरावट तो आई है लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। उदाहरण के लिए, घाना में 20 साल से प्रजनन स्तर चार शिशु प्रति महिला पर ही स्थिर है। तीसरा, युवा आबादी का बढ़ाना भी जनसंख्या वृद्धि का एक और कारण है। इस परिघटना को ‘जनसंख्या आवेग’ के तौर पर जाना जाता है।
डाउन टू अर्थ से बात करते हुए जॉन एफ. मेय ने बताया, “गरीब अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में युवा शादी के लायक हो चुके हैं। कुल मिलाकर, ये तीन कारक बताते हैं कि क्यों इन देशों की आबादी वर्तमान की तुलना में 21वीं सदी के मध्य तक दोगुनी हो सकती है।”
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग का एक अनुमान यह दर्शाता है कि इन देशों में प्रजनन आयु प्राप्त कर चुकी शादीशुदा महिलाएं में 25 प्रतिशत को परिवार नियोजन की जरूरत है।
जनसंख्या अनुमान रिपोर्ट 2014 के सह लेखक कार्ल हौब के अनुसार, “इन अफ्रीकी देशों की जनसंख्या में अन्य देशों के मुकाबले अधिक तेजी आई है। इसका कारण आधुनिक दवाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और इसके चलते शिशु मृत्यु दर में अाई कमी है। अब वयस्कों में भी मृत्यु दर घट गई है।”
इन अफ्रीकी देशों में से एक नाइजर में जन्म दर काफी अधिक है। इस देश में हरेक महिला औसतन 7.6 बच्चों को जन्म देती है जो बाकी देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। जनसंख्या अनुमान रिपोर्ट 2013 के अनुसार बुर्किना फासो और अन्य पश्चिमी अफ्रीकी देशों में महिलाएं खुद भी बड़े परिवारों की इच्छा रखती हैं।
“यहां तक कि नाइजर में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त महिलाएं भी कम से कम छह बच्चे पैदा करना चाहती हैं। इसका कारण पारंपरिक मूल्य, संस्कृति और कभी-कभी धर्म भी रहा है। कई महिलाएं आधुनिक गर्भ निरोधकों के दुष्प्रभाव से डरती भी हैं। हालांकि, यह संभव है कि धीरे-धीरे महिलाएं कम बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित हो जाएं, लेकिन वे हमेशा अपनी इच्छा पर अमल नहीं कर सकतीं, क्योंकि उन पर पति या परिवार का दबाव हमेशा रहता है।” जॉन एफ. मेय ने अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा।
आधुनिक दवाओं और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं ने समाज में एक नई सोच को पैदा किया है जिससे परिवार नियोजन क्रांति को शुरू करने में मदद मिल रही है। मेय कहते हैं, “अब माता-पिता को यह एहसास हो रहा है कि उन्हें बच्चों के जीवन-मरण को लेकर अधिक चिंतित रहने की जरूरत नहीं है। और न ही इस वजह से ज्यादा संतान पैदा करना जरूरी रह गया है।”
अफ्रीकी देशों में नाइजीरिया अपने 18.4 करोड़ निवासियों के साथ सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। वर्ष 2015 में नाइजीरिया की जनसंख्या अफ्रीका की कुल आबादी का 16 प्रतिशत थी।
वर्ष 2100 तक, अकेले नाइजीरिया में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 1 अरब हो जाने का अनुमान है। फिलहाल अगले तीन सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में इथियोपिया (99 लाख), मिस्र (85 लाख) और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (71 करोड़) शामिल हैं।
बोको-हरम जैसे उग्रवादी समूहों का उदय और आतंकियों के तौर पर बच्चों को भर्ती करने की उनकी रणनीति से निपटना अफ्रीकी देशों के लिए एक नया सिरदर्द बनता जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, इसके अलावा अधिक से अधिक अफ्रीकी बच्चों पर जलवायु संबंधी आपदाओं का भी काफी असर हो रहा है।
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के लिए यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक लीला घरागोजलू-पक्काला ने ‘अफ्रीका 2030’ नामक रिपोर्ट में बताया, “बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और देखभाल में निवेश करके अफ्रीकी देश उन आर्थिक लाभों को प्राप्त कर सकते हैं जो दुनिया के कई अन्य देश अनुभव कर रहे हैं।”
यूनिसेफ के सांख्यिकी और निगरानी विशेषज्ञ डॉ. डैनझेन यू के अनुसार, “अफ्रीका के निम्न आय वाले देशों में शिशु मृत्यु दर में अत्यधिक गिरावट दर्ज की गई है। इन देशों में इथियोपिया, लाईबेरिया, मेदागास्कर, मलावी, मोजाम्बिक, नाइजर, रवांडा, युगांडा और तंजानिया आदि शामिल हैं। यह इस क्षेत्र में तीव्र जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है।”
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