2019 का चुनाव 85 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए निर्णायक युद्ध की तरह हैं जिसमें 29.4 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ता भी शामिल हैं।
रिचर्ड थेलर को अक्टूबर 2017 में व्यवहार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनके अग्रणी काम के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कानूनी विद्वान कैस सनस्टीन के साथ मिलकर “नज थ्योरी” पर लिखी गई उनकी पुस्तक ने नीतियों को को प्रभावित किया है। इसका प्रभाव राजनीतिक विज्ञापन एवं प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में परिलक्षित हुआ है जो मुख्यत: आंकड़ों पर आधारित हैं।
“बिग डेटा” हमारे लिए एक जानकारी की खान है जो भावनाओं को समझने, वरीयताओं का पूर्वानुमान लगाने और मनोवैज्ञानिक और मतदाता इतिहास का आकलन करने में हमारी मदद करता है। हाल ही में हुआ कैम्ब्रिज एनालिटिका-फेसबुक विवाद डेटा सुरक्षा और गोपनीयता में अतिक्रमण और गिरावट की ओर इशारा करता है। सुरक्षा चूकों ने 5 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं के डेटा को खतरे में डाल दिया था। इस तरह की चूकों की बदौलत बड़ी कंपनियां या राजनैतिक दल इन आकड़ों का इस्तेमाल अपने चुनावी फायदे के लिए कर सकते हैं। ऐसा वे मतदाताओं को बिना बताए सकते हैं।
“नज थ्योरी” 2009 में संस्थागत हुई और वर्ष 2010 में यूनाइटेड किंगडम में बिहेवियरल इनसाइट्स टीम की स्थापना की गई थी। उभरती अर्थव्यवस्थाएं उसी समय से “नज थ्योरी” के सिद्धांतों को सार्वजनिक नीति निर्माण के क्षेत्र में शामिल किए जाने की दिशा में काम कर रही हैं। नीति आयोग ने बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ मिलकर अपनी “नज” यूनिट स्थापित करने का प्रस्ताव दिया। केंद्र के स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य स्वच्छता की दिशा में व्यावहारिक परिवर्तन लाना है। इसी तरह, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना सब्सिडी पर एलपीजी प्रदान करती है। इसका लक्ष्य उपभोक्ताओं को पर्यावरण अनुकूल विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
एक सकारात्मक नज
2019 का चुनाव 85 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए निर्णायक युद्ध की तरह हैं जिसमें 29.4 करोड़ फेसबुक उपयोगकर्ता भी शामिल हैं। राजनीतिक दल व्यक्तिगत सम्बन्ध, लीडर रिकॉल, वैचारिक प्रतिध्वनि और डोर-टु-डोर प्रबंधन के अलावा मतदाताओं के “ऑनलाइन व्यवहार” के विश्लेषण के बाद ही अपने चुनाव अभियान की रूपरेखा तैयार करते हैं। फीडबैक सिफारिशें, कार्यान्वयन और मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से मैपिंग कुछ ऐसे ही ऑनलाइन औजार हैं। हालांकि बिना राजनैतिक पक्षपात के मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के अन्य कई लोकतांत्रिक और संस्थागत रास्ते हैं। मिसाल के तौर पर, चुनाव आयोग की व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी योजना नए नवेले मतदाताओं को पंजीकृत करने एवं महिलाओं और अन्य नागरिकों को चुनाव में भाग लेने के अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करने का एक सफल तरीका है। विदेश नीति थिंक-टैंक कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनावों में सबसे अधिक (66.4 प्रतिशत) मतदान हुआ और इस सफलता में इस स्कीम की भागीदारी भी कुछ हद तक है।
माध्यम ही सन्देश
उम्मीदवार की लोकप्रियता, सामाजिक पहुंच या किसी राजनैतिक दल या मुद्दे से जुड़ा होना, यह कुछ ऐसे पहलू हैं जिन पर मतदान का मनोविज्ञान निर्भर करता है। इसके अलावा व्यक्तिगत पसंद नापसंद भी मायने रखती है। इसलिए, राजनैतिक संदर्भों में “नज” अनुकूलता और अनुकूलनशीलता का एक मिश्रण है जो किसी भी राजनैतिक परिदृश्य में उपलब्ध विकल्पों को परिलक्षित करता है। जैसा कि पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है, महिलाएं चुनावी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वोटबैंक के रूप में उभरी हैं।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज नामक रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा 2014 में किए एक अध्ययन से पता चलता है कि दस में से चार से अधिक महिला मतदाताओं ने मतदान से पहले अपने घर के भीतर किसी से परामर्श किया। अतः महिला मतदाताओं को प्रभावित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह एक मतदाता वर्ग है जो सही प्रबंधन की सूरत में विकास और राजनीतिक लाभांश प्रदान कर सकता है। यह जमीनी स्तर पर स्वयं सहायता समूहों की क्रांति के रूप में भी परिलक्षित हुआ है। ऐसे ही महिलाओं के अनुकूल व्यवहार-उन्मुख हस्तक्षेप के कुछ उदाहरण हैं - बिहार के हाई स्कूल की छात्राओं के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, यूपीए सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में लिंग आधारित आर्थिक समानता की शुरुआत की और मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के लिए स्मार्टफोन पर आधारित उपहार।
अतः चुनावों के दौरान मतदाता को ऐसे ही किसी तमाशे के चारों और इकठ्ठा करना आवश्यक होता है। मिसाल के तौर पर 2011 का इंडिया अगेंस्ट करप्शन कैम्पेन जिसने शहरी माध्यम वर्ग की सामूहिक एकजुटता को भुनाते हुए आम आदमी पार्टी का निर्माण किया।
इसी तरह नोटबंदी का बचाव भी पहले पहल काले धन पर अंकुश लगाने की दिशा में एक कदम के रूप में किया गया था। हालांकि समय के साथ यह एक कैशलेस अर्थव्यवस्था के निर्माण में बदल गया जिसे पहले सुरक्षा चिंताओं को कम करने के लिए और अंत में डिजिटल व्यवहार पैटर्न को स्थापित करने के लिए जरूरी बताया गया। राहुल गांधी की कैलाश-मानसरोवर यात्रा एक नरम कूटनीतिक और समन्वयवादी कदम है जो एक उदार एवं लोकतांत्रिक अपील को परिलक्षित करती है। यह सोच मतदाताओं तक पहुंच बना पाने में सक्षम थी।
2018 में तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में, गांधी ने कहा, “हमें किसी को भारत से मुक्त नहीं करना है”, एक ऐसा संदेश था जो समावेश और सहिष्णुता के महत्व को रेखांकित करता है। कांग्रेस द्वारा हाल ही में न्यूनतम आय गारंटी की घोषणा “नज” के ही एक मास्टरस्ट्रोक, मनरेगा की याद दिलाती है। इस योजना की यादें अब भी मतदाताओं के ज़हन में ताजा हैं और इसके फायदे तमाम गड़बड़ियों के बावजूद जनता को आकर्षित करते हैं। 2019 के चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। एक एकजुट विपक्ष ने राष्ट्रीय राजधानी में कृषि संकट से जूझ रहे 40,000 किसानों को संबोधित किया। इसके बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ऋण माफी (चुनावोपरांत ) नीति लागू की गई। यह किसानों को अल्पकालिक लाभ प्रदान करने अलावा उनकी कार्यशीलता बढ़ाने की क्षमता भी रखती हैं।
अतः चुनाव प्रचार के क्षेत्र में “नज” थ्योरी का प्रयोग जबरदस्ती एवं जोड़तोड़ से दूर, एक उदारवादी दायरे में होना चाहिए। आज का औसत मतदाता डिजिटल उपनिवेश के परिणामस्वरूप ऑनलाइन थकान से पीड़ित है। संसद में राइट टु डिसकनेक्ट नामक विधेयक को भी पेश किया गया है। आज हर तरफ एक “बर्नआउट” का माहौल कायम है और यही कारण है कि अंतर-व्यक्तिगत, अनुभवजन्य एवं विनम्र कहानियों के पास जनपटल पर छाने का मौका है, बशर्ते कि सही दिशा में “नज” किया जाए।
(स्वस्ति पचौरी एक सार्वजनिक नीति सलाहकार हैं। उन्होंने सिवनी, मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो के रूप में कार्य किया है)
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