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कब, कहां और कैसे हुई स्मॉग प्रदूषण की शुरुआत

स्मॉग का जिक्र सबसे पहले 1905 में लंदन के रसायनशास्त्री एचए डेस वॉक्स ने किया था। लंदन में हजारों लोगों की मौत के बाद स्मॉग प्रदूषण से निपटने के लिए कानून बना

 
By Bhagirath Srivas
Published: Thursday 15 November 2018

दिल्ली और एनसीआर में सर्दियों में स्मॉग प्रदूषण पर बहुत हल्ला मचता है। स्मॉग धुंध और कोहरे का मिश्रण है जो पर्यावरण में प्रदूषण को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देता है। स्मॉग प्रदूषण आज की परिघटना नहीं है। स्मॉग का जिक्र सबसे पहले 1905 में लंदन के रसायनशास्त्री एचए डेस वॉक्स ने किया था। उस वक्त लंदन की हवा धुएं से बेहद खराब हो गई थी। उन्होंने 1911 में ब्रिटेन की स्मोक एबेंटमेंट लीग को भेजी रिपोर्ट में बताया था कि दो साल पहले ग्लास्गो और एडिनबर्ग में हुई मौतें स्मॉग का परिणाम थीं। इससे पहले 13वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सम्राट एडवर्ड प्रथम ने लंदन में स्मॉग की वजह बनने वाले समुद्री कोयले पर प्रतिबंध लगा दिया था और लकड़ी के इस्तेमाल का आदेश दिया था।

आदेश न मानने पर मृत्युदंड का प्रावधान था लेकिन लंदन के लोग इससे भयभीत नहीं हुए। दरअसल उस समय लकड़ी महंगी थी और समुद्री कोयला उत्तरपूर्वी तट पर बहुतायत में था। समुद्री कोयला बहुत ज्यादा धुआं छोड़ता था और यह कोहरे के साथ मिलकर स्मॉग बनाता था। सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में वैज्ञानिक जॉन ग्रांट और जॉन एवलिन ने पहली बार स्मॉग को बीमारियों से जोड़ा। एवलिन ने लिखा कि लंदन के नागरिक धुंध की मोटी और अशुद्ध परत में सांस ले रहे हैं। इससे उन्हें भारी असुविधा हो रही है। 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के बाद हालात और बदतर हो गए। पहले जहां लंदन में साल में 20 दिन धुंध छाई रहती थी, 19वीं शताब्दी में वह बढ़कर 60 दिन हो गई।

स्मॉग से हालात खराब होने पर राजनेताओं का इस पर ध्यान गया। ग्रेट ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विस्काउंट पामर्स्टन को 1853 में कहना पड़ा, “लंदन में शायद 100 भद्र पुरुष हैं जो विभिन्न भट्टियों से जुड़े हैं। वे अपने 20 लाख लोगों की सांसों में धुआं भरना चाहते हैं जिसका शायद वे खुद भी उपभोग न करें।” धुएं के विरोध में खड़े लोगों और ब्रिटिश संसद में पामर्स्टन की मजबूत स्थिति के कारण 1853 में लंदन स्मोक एबेटमेंट एक्ट पास हो गया। इस कानून ने लंदन की पुलिस को धुआं फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की ताकत दे दी।

1891 में ये शक्तियां स्वच्छता से संबंधित प्राधिकरणों को स्थानांतरित कर दी गईं। हालांकि कानून से बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा। उद्योपतियों ने दलील दी कि 95 प्रतिशत धुआं लंदन के 700,000 घरों की चिमनियों से निकलता है। यहां तक िक लंदन काउंटी काउंसिल ने भी स्वीकार किया कि खुले में आग जलाना हमारी जिंदगी में शामिल हो चुका है और इसे खत्म करने का सवाल ही नहीं उठता। धुआं फैलाने वालों के अपराध सिद्ध करने के लिए अधिकारियों को यह भी साबित करना था कि उनके परिसर से निकलने वाला धुआं काले रंग का है। अत: दोष सिद्ध करना असंभव था।

इन सबसे बीच धुआं निर्बाध रूप से जारी रहा। अध्ययन में यह साबित हुआ कि 1873 के स्मॉग में 250 लोगों की मौत ब्रोंकाइटिस से हुई है। 1892 में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। सबसे दर्दनाक हादसा 1952 में हुआ जब लंदन में महज चार दिन के भीतर स्मॉग के कारण 4,000 लोग मारे गए। इस हादसे के बाद जनदबाव के कारण सरकार को हग बेवर की अध्यक्षता में समिति गठित करने को मजबूर होना पड़ा।

समिति ने 1953 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि घरों में उद्योगों से दोगुना धुआं निकलता है। समिति के सुझावों के चलते 1956 में ब्रिटिश क्लीन एयर कानून पारित हुआ। इस कानून ने ठोस, तरल और गैसीय ईंधनों को विनियमित किया। साथ ही औद्योगिक चिमनियों की ऊंचाई को नियंत्रित किया। पहले यह सब किसी कानून के दायरे में नहीं था।

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