Environment

गरीबी का पर्यावरण

विश्व की गरीब आबादी पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में सिमट रही है

 
By Richard Mahapatra
Published: Monday 22 October 2018

तारिक अजीज / सीएसई

गरीबी विश्व की स्थायी चुनौती रही है। 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत विश्व को गरीबी खत्म करनी है। लेकिन 17 अक्टूबर को गरीबी उन्मूलन दिवस की पूर्व संध्या पर जारी होने वाली विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि हम लक्ष्य से बहुत पीछे हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह कि गरीबी उन चुनिंदा देशों में स्थायी बन चुकी है, जहां विश्व के सर्वाधिक गरीब बसते हैं। यह दो तरीके से खतरे की घंटी है। एक, गरीबी कुछ देशों में सिमट रही है और दूसरा, गरीब उन क्षेत्रों में रहते हैं जो पारिस्थितिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। इससे मूलभूत सवाल यह उठता है कि क्या पर्यावरण कुछ हद तक गरीबी के लिए जिम्मेदार है?

विश्व बैंक की रिपोर्ट “पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी 2018 : पीसिंग टुगेदर द पॉवर्टी पजल” के अनुसार, गरीबी उन्मूलन दर की रफ्तार कम हुई है। 1990-2015 के दौरान एक प्रतिशत की सालाना दर से गरीबी कम हुई थी लेकिन 2013-15 के दौरान यह एक प्रतिशत से कम हो गई। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पिछले दो दशकों के दौरान दुनियाभर में गरीबों की संख्या में नाटकीय परिवर्तन हुआ है। यह परिवर्तन बताता है कि आर्थिक कल्याण के लिए नाजुक पारिस्थितिकी के क्या मायने हैं।

गरीबी उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापक हो रही है लेकिन गरीबों की संख्या का भौगोलिक विश्लेषण करने पर दूसरी ही तस्वीर उभरती है। इस समय उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में विश्व के 85 प्रतिशत गरीब आबादी बसती है। यह एक बड़ा बदलाव है। 1990 के दशक में विश्व के आधे गरीब पूर्वी एशिया और पैसिफिक में रहते थे। अब विश्व के सबसे गरीब 27 देशों में से 26 उप सहारा अफ्रीका में हैं। 2002 में इस क्षेत्र में गरीबों की संख्या एक चौथाई ही थी। लेकिन 2015 दुनियाभर के आधे से ज्यादा गरीब इन देशों में हो गए। वैश्विक स्तर पर केवल पांच देश- भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया और कांगा गणराज्य में दुनिया के आधे गरीब हैं। यह ऐसे समय में है जब विश्व के आधे देशों में तीन प्रतिशत से कम गरीबी का स्तर है। चौंकाने वाली बात यह है कि कांगो को छोड़कर बाकी देश ऊंची आर्थिक विकास दर के गवाह बन रहे हैं।

गरीबों के भूगोल की दो परिस्थितिजन्य वास्तविकताएं हैं। पहला यह कि अधिकांश गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल गरीबों में तीन चौथाई ग्रामीण क्षेत्रों में बसते हैं। दूसरा, इन स्थानों में पर्यावरण का बहुत ज्यादा क्षरण हुआ है। अधिकांश गरीब भूमि, वन और पशुओं जैसे संसाधनों पर निर्भर हैं। उनके लिए पर्यावरण ही अर्थव्यवस्था है। अत: पर्यावरण का क्षरण गरीबी का कारण बनता है। आर्थिक पिछड़ेपन के अन्य कारण भी हैं लेकिन पर्यावरण का क्षरण आर्थिक कल्याण के मूल में हैं। संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम असेसमेंट के मुताबिक, भूमि के बंजर होने के कारण एक बिलियन लोगों की जिंदगी दाव पर है।

इसीलिए हैरानी नहीं होनी चाहिए कि अधिकांश गरीब ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं और जीवनयापन के लिए भूमि पर अत्यधिक निर्भर हैं।

विश्व बैंक के आकलन के अनुसार, विश्व 2030 तक गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगा। यह स्पष्ट है कि अकेले आर्थिक विकास से गरीबी उन्मूलन संभव नहीं है। वैश्विक उपायों में गरीबी के कारण पर्यावरण क्षरण पर भी गौर करना होगा। इसका तात्पर्य है कि विकास के सभी प्रयासों में पर्यावरण के उत्थान पर ध्यान केंद्रित करना होगा क्योंकि गरीबी के मूल में यही है।

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