धड़धड़ाती हुई ट्रेन आएगी और इस राम-रावण के मिथकीय युद्ध के तमाशबीन आम इंसानों को कुचलकर निकल जाएगी
रामायण सीरियल का आखिरी एपिसोड जैसे ही खत्म हुआ कहीं से आवाज आई, “यह तो अनर्थ हो गया!”
यह आवाज चित्रगुप्त की थी। यमराज ने देखा कि चित्रगुप्त के चेहेरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।
“अमां चित्रगुप्त जी! आप ठीक तो हो?” यमराज ने पूछा।
“मैं तो ठीक हूं यमराज जी पर आने वाला समय ठीक नहीं रहेगा...आज के इस युद्ध ने ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ की स्थापना कर दी है। हमारी नौकरी तो अब गई समझो।” चित्रगुप्त ने बुदबुदाते हुए कहा।
“नेशन वांट्स टू नो कि आखिर आपको क्या परेशानी है इस महान धर्म युद्ध से” यमराज ने चित्रगुप्त को प्यार से धमकी दी।
“सतयुग तो बीत गया, द्वापर भी बीत ही जाएगा पर बाई गॉड कलियुग में बड़ी परेशानी होने वाली है।” चित्रगुप्त बोले।
“अमां चित्रगुप्त, आपमें नास्त्रेदमस की आत्मा कब घुस गई?” यमराज ने पूछा।
चित्रगुप्त ने यमराज को अनसुना करते हुए कहा, “आज के इस एपिसोड के बाद आम आदमी ‘बाइनरी’ में सोचने लगेगा। बोले तो जीरो और वन। आम आदमी में या तो राम को देखा जाएगा या रावण को। इस ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ में खूबियों और कमियों को लेकर जीने वाले आम आदमी के लिए कोई जगह नहीं बचेगी। अब तक मैं किसी के पाप-पुण्य का डिसक्रिप्टिव टाइप हिसाब रखता आया हूं। आइंदा मुझे भी ऑब्जेक्टिव टाइप एंट्री करनी होगी।”
“मगर इस बाइनरी में बुराई क्या है? आपका काम अब आसान हो जाएगा तो क्यों टेसुए बहा रहे हो? इससे तो हमारी एफिसिएंसी बढ़ेगी। ” यमराज ने पलटवार किया।
“आसान नहीं अनर्थ हो जाएगा!” चित्रगुप्त ने कहा, “आने वाले दिनों में इसी राम-रावण के ‘बाइनरी’ के चलते कुछ सिरफिरे लोग फतवे पर फतवे जारी करेंगे। कोई जॉर्ज बुश बोलेगा कि या आप मेरे साथ हो या मेरे दुश्मन के साथ। अब #मीटू को ही देख लो। क्या कुछ नहीं हो रहा है इसके नाम पर!”
“तो आपको इस #मीटू से भी शिकायत है!” यमराज बोले, “चित्रगुप्त जी! हम तो आपको शरीफ इंसान मानते थे... यू टू ब्रूटस!”
“ज्यादा शाणे मत बनो यमराज जी। यह कैंपेन भी इसी बाइनरी सोच की उपज है जहां इंसान या तो एकदम पाक साफ है या इतना बुरा कि रातोंरात उसका हुक्का-पानी बंद। यह भला कहां का न्याय हुआ? थाना-अदालत, कोर्ट-कचहरी, यमराज-चित्रगुप्त सब बेकार? इधर किसी ने कोई एलीगेशन थोपा नहीं कि उधर किसी बंदे की नौकरी गई। फिलिम फेस्टिवल से उसकी फिलिम हटा दी गई। कल तक जो राम था, आज रावण के रूप में बदनाम है। भला वह एक आम इंसान रहा ही कब यमराज जी?”
थोड़ी देर रुक कर उन्होंने कहा ,“धंधे की कसम, सदियों से इस प्रोफेशन में रहकर इतना तो कह सकता हूं कि एक आम इंसान न तो ‘शुद्ध’ राम होता है और न ही ‘शुद्ध’ रावण। महंगाई, अशिक्षा और कुरीतियों के बोझ से दबा बेचारा आम इंसान तो बस भीड़ का हिस्सा होता है। आम इंसान की असली पहचान खोकर कभी वह राम के पाले में खड़ा होता है तो कभी रावण के।”
यमराज ने कहा, “ ऐसा ही होता आया है।”
“यमराज जी, खतरा तो इस बात का है कि भीड़ का हिस्सा बना यह आम इंसान किसी जलते रावण को देखने के लिए इतना बेसुध हो जाएगा कि उसे इस बात का भी पता नहीं चलेगा कि कब वह किसी ट्रेन लाइन के बीच आकर खड़ा हो चुका है। फिर धड़धड़ाती हुई ट्रेन आएगी और राम-रावण के मिथकीय युद्ध के तमाशबीन आम इंसान को कुचलकर निकल जाएगी। मुझे डर बस इस बात का है...” कहते हुए चित्रगुप्त अपनी पोथी समेटकर कमरे से बाहर निकल गए।
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