Water

जल संरक्षण के यक्ष प्रश्न

स्मार्ट सिटी के दौड़ में अव्वल आया इंदौर भविष्य में जल संकट की आशंकाओं से घिरा है

 
By Ravindra Shukla
Published: Saturday 15 September 2018

तारिक अजीज / सीएसई

इंदौर मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा नगर और यहां की व्यावसायिक राजधानी है। पिछले कुछ वर्षों में इसके “विकास” की मद में शोहरत की बेहतरीन आमद दर्ज हुई है। केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में यह प्रदेश में और स्वच्छ शहर स्पर्द्धा में पूरे देश में अव्वल रहा है। यह नगर न्यायप्रिय शासक देवी अहिल्याबाई होलकर के गौरव से उद्दीप्त है जिन्होंने देश में कई जगह कुएं, बावड़ियां और नदियों पर घाट बनवाए। ऐसा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतवाला यह शहर विकास की नई छलांग के सपने तो संजो रहा है, किन्तु योजनाकार और विकास एजेंसियां यहां पानी की उपलब्धता और समन्वित जल आपूर्ति-प्रबंधन को न तो गंभीरता से ले रही हैं, न उसे समुचित प्राथमिकता और महत्व दे रही हैं। ऐसी दशा में शहर का जीवन आशंकाओं से घिरा नजर आता है।

सतत विकास के लिए जरूरी भौतिक संरचनाओं में जल प्रबंधन की सुविचारित और समन्वित भविष्यदर्शी रणनीति का अहम स्थान है। इंदौर के मामले में यह कुछ ज्यादा अहमियत रखता है। यह मालवा के पठार पर बसा है जिसे “पग–पग रोटी, डग-डग नीर” यानी अनाज-धान्य और पानी की प्रचुरतावाला क्षेत्र माना जाता रहा है। लेकिन यहां पर्यावरण विनाश, भूजल दोहन के अतिरेक और पुनर्भरण की दयनीय दशा के कारण भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।

यहां जलप्रदाय का मुख्य स्रोत नर्मदा है। किंतु 70 किलोमीटर दूर जलूद से लाया जा रहा पानी काफी महंगा है। वर्ष 2014 में इसका खर्च करीब 180 करोड़ रुपए था और उपभोक्ताओं से वसूली मात्र 50 करोड़ रुपए थी। बाकी का बोझ राज्य सरकार उठाती है। ऐसी परियोजना जो आत्मनिर्भर न हो, भविष्य के लिए आशंकाएं पैदा करती है। हालांकि नर्मदा में पानी अभी काफी है, फिर भी ध्यान में रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। पहला, क्षिप्रा, गंभीर, कालीसिंध, पार्वती, चम्बल आदि को नर्मदा से जोड़ने और मालवा के गांवों को पाइप से जल प्रदाय की योजनाएं निर्माणाधीन या विचाराधीन हैं, जिससे नर्मदा में पानी की मात्रा घट सकती है। दूसरा, नर्मदा जल न्यायाधिकरण के फैसले के अनुसार, 2024 में भागीदार राज्यों- मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र द्वारा उपयोग किए गए पानी को देखते हुए फिर से जल आवंटन होना है। उसमें मध्य प्रदेश का हिस्सा घट गया तो क्या होगा?

इसलिए बहु-विध, बहु-आयामी कई उपायों की दरकार है। “जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहे” की मानसिकता से निजात पाकर रणनीतिक बदलाव लाना होगा। ऐसी भविष्यदर्शी दृष्टि और कार्ययोजना अपनानी होगी जिसमें पूर्व निर्धारित परियोजना-कार्यों के साथ नवाचारी, समन्वित और समयानुबंधित वैकल्पिक उपायों का भी समावेश हो ताकि विकास निर्बाध जारी रहे।

इंदौर नगर निगम सीमा का वर्तमान क्षेत्रफल 276 वर्ग किमी और जनसंख्या 26.85 लाख है। किन्तु “विकास योजना 2012” के अनुसार यहां का नियोजन क्षेत्रफल (मास्टरप्लान एरिया) 505.25 वर्ग किमी है, जो विकासान्तर्गत है। इसमें 90 गांव हैं जिनमें से 29 गांव 2014 में नगर निगम सीमा में शामिल किए जा चुके हैं। पिछले करीब डेढ़ दशक में यहां जनसंख्या तेजी से बढ़ी है।

अभी इंदौर में नर्मदा योजना के प्रथम, द्वितीय फेज और तृतीय फेज के प्रथम चरण में 540 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी), यशवंत सागर से 45 एमएलडी और बिलावली से 9 एमएलडी क्षमता के जलप्रदाय संयंत्र स्थापित हैं। अर्थात अभी स्थापित संयंत्र क्षमता कुल 594 एमएलडी जलप्रदाय के लिए है। किन्तु इसमें से वास्तविक उपयोग केवल 97 एमएलडी प्रदाय का ही है। फिर उसमें खरगोन, महू, मंडलेश्वर आदि की कुछ बस्तियों की भी हिस्सेदारी है। वह और बीस प्रतिशत वितरण हानि घटाने के बाद इंदौर को सिर्फ 258.4 एमएलडी पानी मिल रहा है। इसके अतिरिक्त हैंडपम्प और नलकूपों से भी 60 एमएलडी पानी उपलब्ध है।

2025 में जरूरत

दशकीय वृद्धि दर 48.8 प्रतिशत के आधार पर 2025 में इंदौर की जनसंख्या 9.5 लाख हो सकती है। स्मार्ट सिटी घोषित होने, विभिन्न आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस, इनफोसिस आदि आने तथा निगम सीमा बढ़ने से यह और बढ़ेगी। यह आबादी 40 लाख से कुछ अधिक संभावित है। वैसे, शैक्षिक और व्यावसायिक केंद्र होने से यहां रोज आने-जाने वालों की संख्या (फ्लोटिंग आबादी) भी बहुत बड़ी है। अभी नर्मदा से खरगोन, महू, मंडलेश्वर आदि को 60 एमएलडी पानी दिया जा रहा है। आगे चलकर बढ़ी हुई मांग के अनुरूप 80 एमएलडी पानी देना होगा। यह इंदौर शहर की मांग के अतिरिक्त होगा। आगामी वर्षों में नर्मदा पेयजल प्रदाय योजना, यशवंत सागर और बिलावली से 948 एमएलडी क्षमता बढ़ाने की योजना है। यदि इतनी क्षमता सृजित हो जाए और उसका पूरा उपयोग भी हो सके तो वर्ष 2025 के लिए आकलित मांग सुनिश्चित हो सकेगी। किन्तु यह मात्र परिकल्पित विचार है। इसे वास्तविकता की कसौटियों पर परखना होगा। जैसा कि पूर्व का अनुभव है, सृजित/स्थापित क्षमता के मुकाबले वास्तविक उपलब्धता बहुत कम ही हो पाती है।

भविष्य की रणनीति

जल प्रदाय की एशियन डेवलपमेंट बैंक समर्थित वर्तमान व्यवस्था केंद्रीकृत है जिसमें पूरी जवाबदारी शासन और नगर निगम की है। इसमें बदलाव लाकर विकेन्द्रित करना होगा जिससे इसमें नागरिकों की भागीदारी बढ़े, स्थानीयता बोध जगे और जल स्रोतों-संपत्तियों का “समन्वित” उपयोग हो। इसका उद्देश्य यह है कि नल जल प्रदाय पूरे शहरी क्षेत्र में हों और पानी बर्बाद होने से बचाया जाए। लोगों को शहरी विकास मंत्रालय की अनुशंसानुसार 150 एलपीसीडी की दर से मान्य गुणवत्तावाला पानी मिले। जल कर वसूली शत–प्रतिशत हो और नर्मदा योजना आत्मनिर्भर बने। इंदौर के आसपास नर्मदा एवं चम्बल कछार में पर्याप्त सतही जल उपलब्ध है जो संग्रहण की व्यवस्था नहीं होने से वर्षा ऋतु में बह जाता है। धरनावदा, भैंसलाय, पलारी और डोंगरगांव तालाब यशवंत सागर के फीडर तालाब के रूप में काम आ सकते हैं। वहां संचित जल उद्वहन (लिफ्ट) या बहाव द्वारा यशवंतसागर में स्थानान्तरित कर उसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है।

इसी प्रकार, बिलावली तालाब के लिए, जो कुछ वर्षों से पूरा नहीं भर पाता, तिंछा, तिल्लोरखुर्द, मकोय, धोसीखेड़ी और कम्पेल तालाब का निर्माण फीडर तालाब के रूप में हो सकता है। इससे बिलावली जल शुद्धिकरण संयंत्र उपयोग जल प्रदाय के लिए किया जा सकेगा। यशवंतसागर और बिलावली तालाब के नौ फीडर तालाबों के अलावा छः और स्थानों पर भी तालाब बनाए जा सकते हैं और उनसे भी इंदौर और महू को सीधे पानी दिया जा सकता है। नर्मदा की सहायक कारम नदी पर धार जिले के गुजरी गांव के पास तालाब बनाया जा सकता है। इसकी जलग्रहण क्षमता 60 मिलियन घन मीटर है। यह जगह इंदौर से 70 किमी दूर है। इसके अलावा इंदौर के पास चोरल नदी से भी पानी स्थानांतरित कर यशवंत सागर में संग्रहीत किया जा सकता है।

शहर में करीब 200 पुराने कुएं और बावड़ियां हैं। उनकी स्थिति विवरण तैयार कर जीर्णोद्धार किया जाए, साफ सफाई कर उन्हें संरक्षित किया जाए ताकि गंभीर जल संकट में उनसे पानी लिया जा सके। फिलहाल करीब 1,000 हैंडपंपों और 5,000 नलकूपों से भी पानी लिया और वितरित किया जा रहा है किन्तु निजी नलकूपों की संख्या इससे कई गुणा ज्यादा होने का अनुमान है जिससे भूजल स्तर नीचे जा रहा है। अवैध नल कूपों की खोज कर उन्हें बंद कराया जाए।

करीब 10 वर्ष पहले इंदौर नगर निगम ने वर्षा जल संग्रहण (आरडब्लूएच) की एक योजना लागू की थी। इसकी समीक्षा और उचित सुधार कर इसे पुनः लागू किया जाए। साथ ही साथ केन्द्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा गंभीर और क्षिप्रा नदी थाले के लिए बनाई गई कृत्रिम भूजल पुनर्भरण विस्तृत योजना तत्काल लागू की जाए ताकि इंदौर के कछार में भूजल उपलब्धता बढ़ सके। ओवरहेड स्टोरेज टैंकों की क्षमता में 450 लाख लीटर की वृद्धि शीघ्र की जाए। अभी यह 1992 लाख लीटर है। अभी वितरण पाइप लाइन नेटवर्क की कुल लंबाई 2079 किमी है, जो शहर के सिर्फ 10 से 150 वर्ग किमी क्षेत्र में है। निगम सीमा में 2014 में शामिल 29 गांव तो इसके बाहर हैं ही, पुरानी निगम सीमा के कई इलाकों में भी पाइपलाइन नहीं है। वहां अन्य स्रोत जैसे हैंडपम्प और टैंकरों से जल प्रदाय होता है, जो महंगा है और जिसमें काफी पानी बर्बाद जाता है। महंगे नर्मदा जल की बर्बादी रोकने के उपाय बहुत जरूरी हैं। सम्पूर्ण जल वितरण प्रणाली का मानचित्र बनाया जाए। महत्वपूर्ण स्थानों पर पाइप लाइन में दबाव की मॉनिटरिंग हो। खराब वॉल्व और जर्जर पाइपलाइनें बदली जाएं। जल प्रदाय और सीवेज की लाइनें दूर-दूर हों।

जल सुरक्षा के लिए जन सामान्य को जल साक्षर/जागरूक बनाना सर्वाधिक जरूरी है। यह समयावधि के बंधन से परे सार्वकालिक कार्य हैं। इसकी कार्य योजना अभी से शुरू हो और दीर्घकाल तक जारी रहे। इंदौर में जिस तरह स्वच्छता के लिए अभियान चल रहा है, जिससे यह शहर नंबर वन हो गया है, वैसा ही अभियान जल साक्षरता-जागरुकता के लिए भी होना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार ने पुणे स्थित प्रशासन अकादमी (यशदा) में एक विशेष जल साक्षरता टास्क फोर्स बनाकर इसे तरजीह दी है। इंदौर उससे सबक ले सकता है।

(लेखक इंदौर में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.