शोधकर्ताओं को एक ऐसी जीन के बारे में पता चला है जो टमाटर के पौधों को रोगों से बचाने के साथ ही उसे गर्मी के तनाव से निपटने में भी मदद करती है
नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के वैज्ञानिकों ने टमाटर के पौधों में पाई जाने वाली एक जीन “एसआईडीईएडी 35” के महत्वपूर्ण गुणों को खोज निकाला है। टमाटर और अन्य फसलों को अधिक उत्पादक बनाने के लिए किए जा रहे अध्यन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पौधों में पाए जाने वाले तनाव की उत्पत्ति के कारणों को समझना था।
अध्ययन के दौरान भारतीय शोधकर्ताओं को एक ऐसी जीन के बारे में पता चला है जो टमाटर के पौधों को रोगों से बचाने के साथ ही उसे गर्मी के तनाव से निपटने में भी मदद करती है। जैसा की ज्ञात है कि आरएनए हेलिकेसेस, सबसे बड़े जीन परिवारों में से एक है जो की आरएनए मेटाबॉलिस्म के लगभग सभी पहलुओं में कार्य करता है और इसके साथ ही यह किसी प्रजाति की वृद्धि, विकास और तनाव प्रतिक्रिया में भी अहम भूमिका निभाता है।
यह आरएनए जीवाणुओं से लेकर मनुष्यों और पौधों तक अधिकांश सभी जीवों में मौजूद रहता है। हालांकि इससे पहले पर्यावरणीय तनाव के प्रति, टमाटर के पौधे की प्रतिक्रिया में इस जीन की भूमिका ज्ञात नहीं थी। एनआईपीजीआर की टीम ने देखा कि एसआईडीईएडी 23 और एसआईडीईएडी 35 जीनें पौधों को जैविक और अजैविक तनाव का सामना करने में मदद करती हैं।
शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक मनोज प्रसाद ने बताया, “हमने टमाटर की एक प्रजाति,जो टोमेटो लीफ कर्ल न्यू देल्ही वायरस इन्फेक्शन के प्रति सहनशील थी, में ट्रांसक्रिपटोम डायनामिक्स देखा। जब संक्रमित व असंक्रमित पौधों का तुलनात्मक ट्रांसक्रिपटोम विश्लेषण किया तो हमें एक डीईएडी-बॉक्स आरएनए हेलिकेसेस जीन के बारे में पता चला, जिसने इसके बारे में अधिक जानने के लिए प्रेरित किया।
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