देश भर में जलस्रोत प्रदूषण की मार से जूझ रहे हैं। पश्चिम, पूर्वी और उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण के राज्यों में जलस्रोतों की स्थिति बेहद दयनीय है
जीवन के लिए जल की महत्ता किसी से छिपी नहीं है लेकिन देश में यही जल और जलस्रोत प्रदूषण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। देश में 86 जलस्रोत ऐसे हैं जो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और इंडस्ट्रियल एफ्लुएंट प्लांट से भी अधिक दूषित हो चुके हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 17 प्रतिशत जलस्रोत गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुके हैं। इन जलस्रोतों में 38 नदियां, 27 झीलें, 3 तालाब और 18 टैंक शामिल हैं। जलस्रोतों के प्रदूषित होने की बड़ी वजह सीवेज है जो बिना उपचार के नदियों और जलस्रोतों में डाला जा रहा है।
दरअसल शहरों में बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में इतनी क्षमता ही नहीं है कि संपूर्ण सीवेज को ट्रीट कर सके। सीवेज का महज 38 प्रतिशत हिस्सा ही ट्रीट हो पाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो 62 प्रतिशत सीवेज बिना ट्रीट किए नदियों और जलस्रोतों में बहा दिया जाता है। कई नदियों में प्रदूषण की स्थिति तो इतनी खराब है कि उसका पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं रह गया है।
इसमें सबसे पवित्र समझी जाने वाली गंगा भी शामिल है। नदियों में भारी धातुओं की मात्रा स्वीकार्य स्तर से कई गुणा अधिक है। केंद्रीय जल आयोग के हालिया अध्ययन में नदियों से पास 414 स्टेशन से पानी के नमूने लिए गए। इन नमूनों के परीक्षण के बाद पाया गया कि 168 स्थानों का पानी पीने योग्य नहीं है क्योंकि इसमें आयरन की मात्रा बहुत ज्यादा थी। पानी पर काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन वाटरऐड के अनुसार, भारत उन देशों में पहले पायदान पर है जहां पीने के पानी व्यवस्था सबसे कम है। भारत में करीब 4.74 करोड़ ग्रामीण आबादी साफ पानी से वंचित है।
ऐसे हालात में नदियों और जलस्रोतों के प्रदूषित होने से उन लोगों पर असर पड़ेगा जो पीने और घर में इस्तेमाल होने वाले पानी के लिए इन नदियों और जलस्रोतों पर निर्भर हैं। अब तक के सरकारी प्रयासों से नहीं लगता कि इस प्रदूषण से निपटने के उचित उपाय किए जा रहे हैं।
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