उत्तराखंड में जल, जंगल, जमीन, ग्लेशियर, नदियों और पलायन जैसे मुद्दों पर तो चिंता जताई जाती है लेकिन अभी तक पर्वतीय दृष्टिकोण से प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती पर अध्ययन नहीं किया गया
वर्षा सिंह
पर्यावरण के लिहाज से इस वर्ष का थीम “बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन” है। लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण से कैसे निपटेंगे, इसके लिए सरकार के पास क्या कोई कार्ययोजना है? उत्तराखंड में 2018, अगस्त महीने से प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित है। राज्यभर में प्लास्टिक की थैलियों में सामान लेने-देनेवाले दुकानदारों और ग्राहकों पर छापेमारी की कार्रवाई की गई। हालांकि इस प्रतिबंध का असर नहीं दिखता। आम राय यह बनती है कि प्लास्टिक का विकल्प क्या है? क्या प्लास्टिक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सिर्फ दुकानों पर बिकने वाली थैलियों हैं? प्लास्टिक पैकेजिंग करनेवाली बड़ी-बड़ी कंपनियां क्या अपने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण करती हैं? देहरादून स्थित संस्था गति फाउंडेशन ने राज्य के दो बड़े शहरों में “ट्विन सिटी ब्रांड ऑडिट” नाम से एक अभियान चलाया।
हरिद्वार और ऋषिकेश दोनों ही शहर पर्यटन के लिहाज से राज्य के लिए अहम हैं। जहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। दोनों शहरों के डंपिंग ग्राउंड में प्लास्टिक पैकेज का निरीक्षण किया गया। गति फाउंडेशन के अनूप नौटियाल बताते हैं कि हमने दो टीमें बनाईं जिसमें देहरादून विश्वविद्यालय के पोस्ट ग्रेजुशन के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। टीम दोनों शहरों के डंपिंग जोन में गई। ऋषिकेश में रामझूला के पास वेस्ट डंपिंग साइट में ऑडिट कराया गया और हरिद्वार में हर की पैड़ी के पास कचरा स्थल का। यहां अलग-अलग ब्रांड के प्लास्टिक रैपर को अलग-अलग ढेर बनाकर रखा गया। करीब तीन घंटे ये कार्रवाई चली। फिर प्लास्टिक रैपर के इस ढेर का अध्ययन किया गया। अनूप नौटियाल के मुताबिक, ऋषिकेश में कराए गए ऑडिट में पारस दूध, हल्दीराम और लेज चिप्स कंपनियों के तीन शीर्ष प्रदूषण फैलाने वाले प्लास्टिक रैपर मिले। जबकि हरिद्वार में शीर्ष तीन प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने वाले हल्दीराम, लेज चिप्स और बिकानो के प्लास्टिक रैपर मिले।
इससे पहले संस्था ने इस वर्ष मई में उत्तराखंड वन विभाग के साथ मिलकर मसूरी में भी प्लास्टिक रैपर्स को लेकर इसी तरह का ब्रांड ऑडिट किया था। जिसमें नेस्ले इंडिया के मैगी, पेप्सी इंडिया के लेज और पारले एग्रो के फ्रूटी के पैकेज शीर्ष तीन प्लास्टिक प्रदूषकों में पाए गए। संस्था ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट-2016 कानून के एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी अवधारणा के तहत यह निरीक्षण कराया। इसका उद्देश्य उन कंपनियों की पहचान करना है, जिनका प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाने में बड़ा योगदान है। साथ ही यह भी कोशिश है कि ये कंपनियां प्लास्टिक कचरा निस्तारण के लिए अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाए। अनूप नौटियाल कहते हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर जो चिंता जताई जाती है वो अब तक समुद्री जीवन के ईर्दगिर्द है। हिमालयी पर्यावरण को प्लास्टिक किस तरह नुकसान पहुंचा सकता है, इस पर अभी कार्य किया जाना बाकी है।
इसके साथ ही उत्तराखंड में जल, जंगल, जमीन, ग्लेशियर, नदियों और पलायन जैसे मुद्दों पर तो चिंता जताई जाती है। लेकिन अभी तक पर्वतीय दृष्टिकोण से प्लास्टिक प्रदूषण की चुनौती पर अध्ययन नहीं किया गया है। प्लास्टिक को पर्वतीय परिप्रेक्ष्य में देखने की भी जरूरत है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट-2016 के “एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सबिलिटी” नियम के तहत कंपनियों पर जिम्मेदारी होती है कि वे अपने द्वारा पैदा किए गए कूड़े का निस्तारण करेंगी। लेकिन राज्य में ऐसा होता नहीं दिख रहा।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साइंटिफिक ऑफिसर वीके जोशी के मुताबिक, बोर्ड ने पिछले महीने कंपनियों को प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार जल्द ही इस संबंध में नोटिफिकेशन भी जारी करने वाली है। इसे लेकर अभी शासन स्तर पर कार्रवाई चल रही है। राज्य पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2016-17 में एक सर्वे भी कराया था। जिसके मुताबिक 272.22 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन निकलता है, जो कुल कचरे का करीब 17 फीसदी है।
रिपोर्ट के मुताबिक यदि हम इसी प्लास्टिक का इस्तेमाल करते रहे तो अगले तेइस वर्षों में प्लास्टिक कचरा बढ़कर दोगुना हो जाएगा। प्लास्टिक कचरे के मामले में राज्य में देहरादून अव्वल नंबर पर था। दूसरे स्थान पर हरिद्वार है। वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर चिंता जताई जा रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र ने “चैंपियन ऑफ द अर्थ” सम्मान से नवाजा गया। मोदी को अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के नेतृत्व और 2022 तक भारत को एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक से मुक्त कराने के संकल्प को लेकर 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ' अवॉर्ड के लिए चुना गया। लेकिन क्या बिना कार्पोरेट जवाबदेही तय किए, प्लास्टिक से मुक्ति संभव है?
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