Agriculture

फसलों के लिए खतरा बन रहा है नया प्रवासी कीट

स्पीडओप्टेरा फ्रूजाइपेर्डा प्रजाति का यह कीट भारतीय मूल का नहीं है और इससे पहले भारत में इसे नहीं देखा गया है

 
By Kollegala Sharma
Published: Friday 07 September 2018

कर्नाटक में विदेश से आए हुए एक नए कीट का पता चला है जो सभी तरह की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। यह कीट राज्य के कई हिस्सों में मक्का के पौधों को नुकसान पहुंचा रहा है। बंगलुरु स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज के वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है।

स्पीडओप्टेरा फ्रूजाइपेर्डा प्रजाति का यह कीट भारतीय मूल का नहीं है और इससे पहले भारत में इसे नहीं देखा गया है। पहली बार इस कीट को कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले में गौरीबिदनुर के पास मक्के की फसल में इस वर्ष मई-जून महीनों में देखा गया था, जब कृषि वैज्ञानिक इल्लियों के कारण फसल नुकसान का आकलन करने वहां पहुंचे थे।

यूनिवर्सिटी के कीटविज्ञान विभाग के शोधकर्ता प्रभु गणिगेर ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “खेतों से एकत्रित किए गए इस कीट के लार्वा के पालन में हमें थोड़ा वक्त लगा। लार्वा की वास्तविक पहचान के लिए उसे लैब में पाला गया है। हमने पाया कि इन कीटों को कैद में रखना मुश्किल है क्योंकि ये एक-दूसरे को खाने लगते हैं। करीब एक महीने बाद कीट के व्यस्क होने पर उसकी पहचान स्पीडओप्टेरा फ्रूजाइपेर्डा के रूप में की गई है।”

फील्ड सर्वे करते हुए बंगलुरु स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज की टीम स्पीडओप्टेरा फ्रूजाइपेर्डा उत्तरी अमेरिका से लेकर कनाडा, चिली और अर्जेंटीना के विभिन्न हिस्सों में आमतौर पर पाया जाने वाला कीट है। वर्ष 2017 में इस कीट के दक्षिण अफ्रीका में फैलने से बड़े पैमाने पर फसलों के नुकसान के बारे में पता चला था। हालांकि, एशिया में इस कीट के पाए जाने की जानकारी अब तक नहीं मिली थी।

इस खोज को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इस कीट के लार्वा भारत में उगाई जाने वाली मक्का, चावल, ज्वार, बंदगोभी, चुकंदर, गन्ना, मूंगफली, सोयाबीन, अल्फाल्फा, प्याज, टमाटर, आलू और कपास समेत लगभग सभी महत्वपूर्ण फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।  

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि समय रहते इस कीट के नियंत्रण के लिए कदम नहीं उठाए गए तो यह एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकता है। इस तरह के प्रवासी कीटों के प्राकृतिक शत्रु नए स्थान पर नहीं होते हैं, ऐसे में तेजी से विस्तृत क्षेत्र में फैलकर ये कीट भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। करीब चार वर्ष पहले टमाटर के पत्ते खाने वाले दक्षिण अमेरिकी मूल के प्रवासी कीट ट्यूटा एब्सोल्यूटा के कारण भारत में टमाटर की फसल को बेहद नुकसान हुआ था। 

गणिगेर के अनुसार, “स्पीडओप्टेरा और कट वॉर्म के बीच अंतर करना आसान है। इनके शरीर पर काले धब्बे होते हैं और दुम के पास चार विशिष्ट काले धब्बे होते हैं। किसान इन विशेषताओं के आधार पर इस प्रवासी कीट की पहचान कर सकते हैं। हालांकि, यह नहीं पता चला है कि यह प्रवासी कीट भारत में किस तरह पहुंचा है। संभव है कि कीटों के अंडे पर्यटकों द्वारा अनजाने में लाए गए हों या फिर उनके अंडे बादलों से बहुत दूर तक पहुंचे और बारिश से फैल गए। कीटों के अंडों की इस तरह की बारिश और पौधों में परागण होना कोई नई बात नहीं है। ऐसे कीटों के विस्तार को रोकने के लिए जागरुकता का प्रसार बेहद जरूरी है।”

इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययनकर्ताओं में गणिगेर के अलावा एम. यशवंत, के. मुरलीमोहन, एन. विनय, ए.आर.वी. कुमार और कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख के. चंद्रशेखर शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

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