इलांधा वड़ा एक पोषणयुक्त पारंपरिक अल्पाहार है, जो हमारी थाली से गायब होता जा रहा है
मेरे पिताजी अक्सर हमें अपने बचपन की कहानी सुनाते हुए एक फल के बारे में बताते थे। जब वह तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में पढ़ाई कर रहे थे, तब अपने स्कूल के सहपाठियों के साथ अक्सर इलांधा वड़ा खरीदने के लिए छुपकर निकलते थे। इलांधा वड़ा 1960 और 1970 के दशक का एक लोकप्रिय अल्पाहार था। दादा-दादी को हमेशा हाइजीन की फिक्र लगी रहती थी, इसलिए वे पापा को बाजार से इलांधा वड़ा खरीदकर खाने से मना करते थे। क्योंकि जिस फल से यह व्यंजन बनता है, उस फल के पकने पर उसमें छोटे-छोटे कीड़े पनपने की संभावना होती है, इसलिए इस फल को खाने या कोई व्यंजन बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से साफ करना जरूरी होता है। लेकिन मेरे पापा अपने स्कूल के दोस्तों के साथ इसे खरीदने के लिए स्कूल के निकट की दुकान पर पहुंच ही जाते थे। जब मेरी दादी को यह बात पता चली, तो उन्होंने इसे घर पर ही बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने इसमें थोड़ी सी सूखी मिर्ची डाल दी। इससे फंगस नहीं पनपता। यह व्यंजन जिस फल से बनाया जाता है, उसे अंग्रेजी में इंडियन जुजुबे और हिंदी में बेर के नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम जिजिफस मौरिशियाना है। यह फल छोटे सेब के आकार का होता है और एक सूखा प्रवण पेड़ पर लगता है। बेर के पेड़ अमूमन शुष्क और अर्द्धशुष्क इलाकों में पाए जाते हैं। बेर का फल हरे रंग का होता है और पकने पर लाल हो जाता है। बेर के पकने का समय दिसंबर से मार्च तक होता है।
बेर की एक और प्रजाति भारत में पाई जाती है, जिसका वानस्पतिक नाम जिजिफस नुम्मुलारिया है। यह एक छोटी झाड़ी में लगता है, जिसकी ऊंचाई अधिकतम तीन मीटर तक हो सकती है। यह मुख्यतः शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे तमिल में नरी एलान्धई और हिंदी में झरबेरी कहा जाता है। बेर की दोनों प्रजातियां दक्षिण एशियाई देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल-के साथ ही अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती हैं। भारत में यह हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में मिलते हैं।
बेर का पेड़ ऐतिहासिक हिंदू मंदिरों में लगाए जाने वाले महत्वपूर्ण पेड़ों (जिसे स्ताल वृक्षम कहा जाता है) में से एक है। बेर का फल भगवान शिव को अर्पण किया जाता है और सभी शिव मंदिरों में विशेषकर महाशिवरात्रि के समय इसे बेल के समान ही महत्त्व दिया जाता है। बेर के पेड़ को सिख धर्म में भी विशेष रूप से पवित्र माना गया है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि सिखों के पहले गुरू नानक देव को बेर के पेड़ के नीचे ही दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
औषधीय गुण
यह फल विटामिन और खनिजों से लबरेज है। इसमें विटामिन के, कैल्शियम, मैंग्नीशियम प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। बेर में कुछ जैविक अम्ल भी पाए जाते हैं, जैसे-सक्सीनिक और टार्टरिक अम्ल। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, बेर एक प्राकृतिक परिरक्षक है और इसे अन्य खाद्य पदार्थों के परिरक्षण में इस्तेमाल करने के लिए अनुशंसित किया गया है। बेर में अनेक प्रकार के औषधीय तत्व पाए जाते हैं, जिसकी पुष्टि वैज्ञानिक अनुसंधान भी करते हैं। वर्ष 2015 में फार्माकोग्नोसी रिव्यूज नमक जर्नल में प्रकाशित एक शोध इसके कैंसर-रोधी गुणों की पुष्टि करता है।
इसी तरह, बेर के गूदे का सेवन मधुमेह की वजह से होने वाले तंत्रिका क्षरण से बचाव करता है। इस बीमारी में पैर और तलवे की धमनियों में तेज दर्द होता है। बेर के इस गुण की पुष्टि मार्च 2015 में इंडियन जर्नल ऑफ बेसिक मेडिकल साइंसेस में प्रकशित शोध से होती है।
बेर के पेड़ की छाल और पत्ते का इस्तेमाल चेचक और खसरे के उपचार में लाभकारी है। वर्ष 2010 में एडवांसेस इन नेचुरल एंड एप्लाइड साइंसेस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, बांग्लादेश के पारंपरिक वैद्य बेर के पत्तों और छाल को उबालकर उस पानी को पीड़ित व्यक्तियों पर छिड़कते हैं। तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के पारंपरिक वैद्य भी बेर के पत्तों और छाल को उबालकर और उस पानी को नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की सलाह देते हैं। इससे बदन दर्द में आराम मिलता है।
वर्ष 2017 में जर्नल ऑफ फार्माकोग्नोसी एंड फायटोकेमिस्ट्री में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, इस फल को सुखाकर और पीसकर भी खाया जाता है। बेर के पेड़ के कोंपलों को छांव में सुखाकर इसका पाउडर बनाया जाता है। इस पाउडर को पानी में घोलकर बने मिश्रण का उपयोग विटामिन सी कमी से होने वाले रोग स्कर्वी के उपचार के लिए किया जाता है। वर्ष 2006 में जर्नल ऑफ एथनोबायोलॉजी एंड एथनोमेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि बेर के पेड़ की छाल का पाउडर घाव के उपचार में कारगर है। मई 2007 में कॉलेज साइंस ऑफ इंडिया में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बेर के पेड़ की जड़ से बना घोल दस्त और हैजा के उपचार में सक्षम है।
जिम्बाव्वे में बेर को मसाऊ कहा जाता है। इसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थ के तौर पर, मवेशियों के लिए चारा और जैविक ईंधन के तौर पर किया जाता है। स्थानीय लोग इससे एक प्रकार की शराब बनाते हैं, जिसे कचासु कहा जाता है। रोम स्थित ग्लोबल फेसिलिटेशन यूनिट फॉर अंडरयूटीलाइज्ड स्पीसीज के अनुसार, मसाऊ का इस्तेमाल पारंपरिक औषधि के तौर पर फ्लू, जुकाम, कुपोषण संबंधी बीमारियों, बच्चों की कंपकंपी और अपच जैसी बीमारियों के उपचार में किया जाता है।
व्यंजन
सामग्री
नरिश्ड प्लैनेट: सस्टेनेबिलिटी |
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