अक्षय ऊर्जा हमारे हवाई अड्डों, स्टेडियम और घरों के लिए एक व्यवहारिक और बढ़िया ऊर्जा स्रोत हो सकती है
गर्मियों की एक दोपहर हांफते हुए घर पहुंची पीऊ ने कहा, “मेरे भीतर अब कुछ भी करने के लिए ऊर्जा नहीं बची है।” वह स्कूल से वापस आई थी और बहुत थक चुकी थी। पीऊ का यह हाल देखकर उसकी मां एक गिलास में कुछ लेकर आईं और उसे देते हुए बोलीं, “यह तुम्हें फिर ऊर्जा से भर देगा।” यह ग्लूकोज था, जिसे पीने के बाद पीऊ ने कुछ राहत महसूस की।
फिर मां ने कहा, “कुछ समय में ही तुम बेहतर महसूस करोगी।”
और सच में थोड़ी देर में ही पीऊ ने काफी बेहतर महसूस किया। वह इस बात से बहुत खुश हुई कि अब फिर से पहले की तरह तरोताजा, ऊर्जा से भरपूर महसूस कर रही है। वह पॉम के पास गई और बोली, “पॉम, मैंने तो जैसे कोई जादुई चीज पी ली है! मैं सच में हैरान हूं कि आखिर उस गिलास में ऐसा था क्या?”
पॉम ने जवाब दिया, “तुम जिस जादू की बात कर रही हो, वह उस पेय में मौजूद ग्लूकोज के कारण है। ग्लूकोज से हमें तुरंत ऊर्जा मिलती है।”
“मैं समझी नहीं, क्या तुम मुझे समझा सकते हो” पीऊ ने कहा।
पॉम ने सिर हिलाते हुए हामी भरी और कहा, “मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं, और यह कहानी शुरू होती है ऐसे।”
“सभी जीवित जीवों को ऊर्जा की आवश्यकता होती है, लेकिन सिर्फ पौधों में ही यह क्षमता होती है कि वह ऊर्जा का उत्पादन कर सकें। पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से सूर्य के प्रकाश का इस्तेमाल करके अपना भोजन खुद बनाते हैं। अब चूंकि जानवर अपने भोजन का उत्पादन खुद नहीं कर सकते हैं, इसलिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। वे जीव, जो पौधों से अपना भोजन हासिल करते हैं, उन्हें कहा जाता है...”
“शाकाहारी!” पीऊ ने उत्तर दिया।
“हां, बिल्कुल सही” पॉम ने कहा।
पीऊ मुस्कुराई और फिर बोली, “जो जानवर अन्य जानवरों से भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें मांसाहारी कहा जाता है और जो पौधों व जानवरों दोनों से भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें सर्वभक्षी के रूप में जाना जाता है, जैसे कि हम इंसान। मैं सही कह रही हूं न पॉम?”
“एकदम सही! तुम तो बहुत होशियार बच्ची हो। एक जीव से दूसरे जीव में ऊर्जा के इस प्रवाह को भोजन चक्र कहा जाता है” पॉम ने आगे बताया।
पीऊ को किन्हीं खयालों में गुम देख पॉम ने कहा, “लेकिन क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सिर्फ भोजन ही ऊर्जा विनिमय का एकमात्र रूप नहीं है। हमारे घरों में बल्ब, हमारे स्मार्टफोन, कार, हवाई जहाज और इंडस्ट्रीज तो खाना नहीं खाती हैं, लेकिन उन्हें भी अपने कामों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।”
थोड़ा हैरान होकर पीऊ ने पूछा, “तो हम, मनुष्य अपनी मशीनों को चलाने के लिए यह ऊर्जा कहां से हासिल करते हैं?”
“बहुत आसान है, दूसरे जीवों से। पहले हम इसे घोड़ों, हाथियों, ऊंटों, गायों और यहां तक कि इंसानों से भी हासिल करते थे” पॉम ने कहा
“क्या? इंसानों से भी?” पीऊ ने जोर देकर पूछा।
पॉम ने जवाब दिया, “हां, पीऊ इंसानों से भी। किसी जमाने में गुलाम मालवाहक बोगियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते थे, फसल काटते थे और अपने मालिकों के लिए दूसरे सभी तरह के काम करते थे। लेकिन, जल्द ही यह सब बदल गया।”
“आखिर यह सब बदल कैसे गया पॉम?” पीऊ ने फिर पूछा।
पॉम ने एक गहरी सांस भरी और कहा, “औद्योगिक क्रांति के साथ, सत्रहवीं सदी के आखिरी दशक की शुरुआत में दुनिया ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाई। कोयला, पेट्रोलियम (तेल) और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों की खोज ने बिजली, परिवहन, कृषि, उद्योगों, अंतरिक्ष अनुसंधान आदि के लिए बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खपत की राह आसान की। लेकिन, इसका एक दुष्प्रभाव भी था।”
“वह क्या था?” पीऊ ने कहा।
“इन जीवाश्म ईंधनों को जलाने पर कार्बन डाईऑक्साइड नाम की एक ग्रीनहाउस गैस निकलती है, जो वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। औद्योगिकीकरण ने वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई, जो बीते 8,00,000 वर्षों के दौरान पहले कभी नहीं हुआ था। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी की वजह से मौसम चक्र प्रभावित हो गया है, बर्फ तेजी से से पिघल रही है और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।” पॉम ने जवाब दिया और फिर, दोनों चुप हो गए।
थोड़ी देर बाद पीऊ ने कहा, “लेकिन मुझे कुछ तो बताओ कि इसका विकल्प क्या है? अब यह मत कह देना हमें बिजली का इस्तेमाल बंद करना चाहिए और फिर उसी तरह से रहना शुरू कर देना चाहिए, जैसे इंसान गुफाओं में रहते थे।”
पॉम ने पीऊ के मासूमियत भरे सवाल पर चुटकी ली और फिर कहा, “बिल्कुल नहीं पीऊ, वैज्ञानिक पहले से ही ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत खोजने की शुरुआत कर चुके हैं, जो कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित किए बिना हमारे उपकरणों और गैजेट्स को चलाने के लिए बिजली दे सकें। 1839 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक एलेक्जेंडर-एडमंड बेकरेल ने एक ऐसा ही स्रोत खोजा था। जरा अंदाजा लगाओ कि यह क्या था?”
“सूरज?” पिउ ने मजाकिया अंदाज में जवाब दिया।
“बिल्कुल! यह सूरज ही है” पॉम ने उत्साह के साथ उत्तर दिया और फिर आगे कहा, “और इस तरह से शुरू हुई अक्षय ऊर्जा की कहानी। भले ही हम अभी बहुत शुरुआती अवस्था में हैं, लेकिन हमने बहुत कम समय में लंबी दूरी की यात्रा तय कर ली है।” उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कुछ दशकों पहले सिर्फ विज्ञान कथाओं तक ही सीमित था, लेकिन आज यह अखबार की तरह ही आम है, सबके पास उपलब्ध है! गाड़ियों से लेकर स्ट्रीट लाइट और खिलौने तक, सब कुछ सौर ऊर्जा से चल रहे हैं।”
“हां, आखिरकार मुझे पता चल ही गया कि मेरे दोस्त का डायनासोर वाला खिलौना बिना बैटरी के कैसे चल रहा था। आपको इसे बस ऐसी जगह रखना होगा जहां धूप आती हो।” पीऊ ने कहा।
पॉम ने उत्तर दिया, “तुमने एकदम सही कहा। सौर ऊर्जा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता है। यह बिल्कुल प्रदूषण रहित है!”
पीऊ इस पर अपने उत्साह पर काबू नहीं रख सकी और तुरंत बोल पड़ी, “यह बहुत बढ़िया है! अब मैं भी अपने मम्मी-पापा से सौर ऊर्जा पर चलने वाले उपकरण और गैजेट्स खरीदने के लिए कहूंगी।”
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.