भारतीय वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि नदी के तलछट में मौजूद सूक्ष्मजीवों की एंजाइम क्रियाएं गंगा में भारी धातुओं के प्रदूषण का पता लगाने में मददगार हो सकती हैं।
मानवीय गतिविधियों के कारण कई विषाक्त तत्वों का जहर गंगा नदी में लगातार घुल रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब एक अध्ययन में पाया है कि नदी के तलछट में मौजूद सूक्ष्मजीवों की एंजाइम क्रियाएं गंगा में भारी धातुओं के प्रदूषण का पता लगाने में मददगार हो सकती हैं।
कुल कार्बनिक कार्बन, नाइट्रेट, अमोनियम, फास्फेट जैसे पोषक तत्वों, कैडमियम, लेड, निकेल, क्रोमियम, जिंक एवं कॉपर जैसी भारी धातुओं और प्रोटिएज, फॉस्फेटेज, एफएडीएज, ग्लूकोसाइडेज जैसे सूक्ष्मजीव एंजाइमों के बीच अन्तरक्रियाओं की पड़ताल करने के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
अध्ययन के दौरान कानपुर से वाराणसी के बीच गंगा के लगभग 518 किलोमीटर के दायरे में स्थित नवाबगंज, जाममऊ, दालमऊ, हतवा, संगम, सीतामढ़ी, बाईपास और राजघाट समेत आठ स्थानों से गंगा नदी की 10-50 मीटर गहराई से तलछट नमूने एकत्रित गए थे। इन नमूनों की जांच बीएचयू के वनस्पति विज्ञान उन्नत अध्ययन केंद्र की गंगा नदी पारिस्थितिकी अनुसंधान प्रयोगशाला में की गई है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ जितेंद्र पाण्डेय ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “गंगा पर किए गए अधिकांश अध्ययनों में यूट्रोफिकेशन यानी अधिक पोषक तत्वों की उपस्थिति के संदर्भ में जल प्रदूषण को समझने के लिए जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) को संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन, इस अध्ययन में सूक्ष्मजीव एंजाइम क्रियाओं की संकेतक के रूप में पहचान की गई है।”
डॉ पाण्डेय के अनुसार “ये क्रियाएं विभिन्न पोषक स्तरों, धात्विक विषाक्तता और नदी की स्वयं-शोधन क्षमता के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। नदी के तलछट कार्बन, पोषक तत्वों और भारी धातुओं के संग्राहक होते हैं। नदी के तलछट और उनमें होने वाली सूक्ष्मजीव एंजाइम क्रियाएं कार्बन, पोषक तत्व प्रदूषण एवं भारी धातुओं की विषाक्तता के स्तर के बारे में महत्वपूर्ण और अपेक्षाकृत स्थिर पूर्वानुमान प्रदान कर सकती हैं।”
वैज्ञानिकों का मानना है कि भारी धातुओं की कम सांद्रता होने से भी गंगा में मध्यम से उच्च स्तरीय पारिस्थितिक खतरा पैदा हो सकता है। अध्ययन क्षेत्र में पोषक तत्वों और भारी धातुओं की सामान्य से काफी अधिक मात्रा पायी गई है। जाजमऊ और राजघाट में इनका स्तर सबसे अधिक दर्ज किया गया है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पोषक तत्वों, भारी धातुओं और कुल कार्बनिक कार्बन की मात्राओं में विविधता का मुख्य कारण मानव जनित गतिविधियां हैं। नदी तलछटों में पोषक तत्वों और कार्बन के बढ़ने से जैविक एंजाइम गतिविधियां बढ़ जाती हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी स्थल पाए गए हैं, जहां पोषक तत्व ज्यादा होने के बावजूद वहां एंजाइम क्रियाएं कम थीं। इसके लिए वहां भारी धातुओं की अत्यधिक मात्रा को जिम्मेदार माना जा रहा है, जो इन जैविक क्रियाओं को सीमित कर देती हैं। भारी धातुएं यहां पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता को भी कम कर देती हैं।
नदी तलछटों में सूक्ष्मजीव एंजाइम क्रियाओं पर भारी धातुओं के जैविक प्रभावों को समझना एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक चुनौती है। जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में नदी तलछटों में सूक्ष्म जैविक समुदाय ऊर्जा के प्रवाह, पोषक चक्रों और कार्बनिक पदार्थों के विघटन को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः नदी के तलछटों में संचयित पदार्थों के साथ सूक्ष्मजीव क्रियाओं को जोड़ना क्षेत्रीय मानव जनित प्रदूषण के कारणों को समझने का एक संवेदनशील सूचक हो सकता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार इन सूक्ष्मजीव एंजाइम क्रियाओं को गंगा सहित अन्य नदियों में भी कार्बन, नाइट्रोजन और फास्फोरस प्रदूषण तथा भारी धातु विषाक्तता का आकलन करने के लिए एक वैकल्पिक और अधिक विश्वसनीय चेतावनी प्रणाली के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
अध्ययनकर्ताओं में डॉ जितेंद्र पाण्डेय के अलावा दीपा जयसवाल भी शामिल थीं। यह शोध शोध पत्रिका इकोटॉक्सीकोलॉजी ऐंड एन्वायरांमेंटल सेफ्टी में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
India Environment Portal Resources :
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.