Health

मानसिक रोग और स्वास्थ्य बीमा

भारत में एक बड़ी आबादी को अपनी जद में लेने वाली इस बीमारी पर दस सवाल…...

 
Published: Saturday 15 September 2018

Credit: Wikimedia Commons क्या मानसिक रोग अथवा मनोरोग स्वास्थ्य बीमा के दायरे में हैं?

नहीं। फिलहाल बीमा कंपनियां मानसिक रोगों को स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर नहीं कर रही हैं।

मानसिक रोगों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने के लिए क्या कोशिशें हुई हैं?

हां। 16 अगस्त को भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा कंपनियों को एक सर्कुलर जारी कर कहा है कि वे मानसिक बीमारियों को बीमा पॉलिसी के दायरे में लाने का प्रावधान करें। इसे एक अच्छी पहल के रूप में देखा जा रहा है।

इरडा को सर्कुलर जारी करने की जरूरत क्यों पड़ी?

दरअसल, इरडा को यह सर्कुलर जारी करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 इस साल 29 मई से लागू हो गया है। इस अधिनियम की धारा 21(4) में कहा गया है कि सभी बीमा कंपनियां को स्वास्थ्य बीमा के तहत मानसिक रोग के इलाज का भी प्रावधान करना होगा। यह दूसरी बीमारियों के लिए उपलब्ध सुविधा के अनुरूप ही होगा।

वैश्विक स्तर पर कितने लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर करीब 45 करोड़ लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं। दुनियाभर में चार लोगों में से एक अपने जीवन के किसी मोड़ पर मानसिक रोगों से प्रभावित होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व के 40 प्रतिशत से ज्यादा देशों में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित नीति नहीं है और 30 प्रतिशत से अधिक देशों के कोई इससे संबंधित कोई कार्यक्रम नहीं है। करीब 25 प्रतिशत देशों में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कोई कानून नहीं बना है। विश्व के करीब 33 प्रतिशत देश अपने स्वास्थ्य व्यय का एक प्रतिशत से भी कम मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।

भारत में क्या स्थिति है?

भारत में राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक रोगियों का आंकड़ा नहीं जुटाया जाता लेकिन फिर भी कुछ अध्ययनों से रोगियों का अनुमान मिलता है। मसलन, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत की 18 वर्ष से अधिक 10.6 प्रतिशत आबादी यानी करीब 15 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक रोग से पीड़ित हैं। हर छठे भारतीय को मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद की दरकार है। जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 22 लाख 28 हजार मनोरोगी हैं जबकि लांसेट के रिपोर्ट कहती है कि भारत में मनोरोगियों की संख्या 16 करोड़ 92 लाख है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत की 135 करोड़ की आबादी में 7.5 प्रतिशत (10 करोड़ से अधिक) मानसिक रोगों से प्रभावित है। अध्ययन बताते हैं कि 2020 तक भारत की 20 प्रतिशत आबादी किसी ने किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होगी। 15-29 आयु वर्ग में आत्महत्या की दर भी सर्वाधिक होगी।

मानसिक चिकित्सा की बुनियादी सुविधाओं के मामले में भारत विकसित देशों के मुकाबले कहां खड़ा है?

भारत में एक लाख की आबादी पर 0.3 मनोचिकित्सक, 0.07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 सामाजिक कार्यकहैं। विकसित देशों में एक लाख की आबादी पर 6.6 मनोचिकित्सक हैं। मेंटल हॉस्पिटल की बात करें तो विकसित देशों में एक लाख की आबादी में औसतन 0.04 हॉस्पिटल हैं जबकि भारत में यह 0.004 ही हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर कितना खर्च होता है?

2011 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपने स्वास्थ्य बजट का महज 0.06 प्रतिशत हिस्सा ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है। यह खर्च बांग्लादेश से भी कम है। बांग्लादेश अपने स्वास्थ्य बजट का 0.44 प्रतिशत हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य पर व्यय करता है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति इतनी खराब क्यों हुई?

1980 में नेशनल मेंटल हेल्थ मिशन की शुरुआत हुई थी लेकिन इसे ठीक से लागू नहीं किया गया। इस वजह से मानसिक स्वास्थ्य ही स्थिति इतनी दयनीय हालत में पहुंच गई। इसके अलावा देश की स्वास्थ्य नीति में भी मानसिक स्वास्थ्य को अधिक महत्व नहीं मिला।

भारत में मानसिक विशेषज्ञों की क्या स्थिति है?

2015 में जारी स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि देश में 3,800 मनोचिकित्सक, 898 क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक, 850 मनोरोग संबंधित सामाजिक कार्यकर्ता, 1,500 मनोरोग से संबंधित नर्सें और 43 मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल हैं। देश भर में इन हॉस्पिटल की कुल क्षमता 20,000 बेड की ही है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में 10 लाख की आबादी पर केवल एक मनोचिकित्सक है। राष्ट्रमंडल देशों के मुकाबले यह 18 गुणा कम है। भारत में 12 हजार मनोचिकित्सकों और करीब 17 हजार क्लिनिकल मनोवैज्ञानिकों की जरूरत है।

भारत में मानसिक रोगों के उपचार में क्या दिक्कतें आती हैं?

रोगी सामाजिक भेदभाव के डर से इलाज से कतराता है। वहीं दूसरी ओर रोगों की पहचान भी आसानी से नहीं होती। सामाजिक स्टिग्मा के चलते 90 प्रतिशत रोगियों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, मानसिक विकारों से प्रभावित 99 प्रतिशत भारतीय देखभाल और उपचार को जरूरी नहीं मानते। इन कारणों के चलते मानसिक रोगियों के उपचार में दिक्कतें आती हैं।

प्रस्तुति: भागीरथ

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