देश में विकसित एक रडार की स्थापना केरल के कोचीन में की गई है, जो वायुमंडलीय अध्ययन संबंधी शोध कार्यों को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा
मौसमी गतिविधियों पर निगरानी के लिए हाल में देश में विकसित एक रडार की स्थापना केरल के कोचीन में की गई है, जो वायुमंडलीय अध्ययन संबंधी शोध कार्यों को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकता है।
समतापमंडल-क्षोभमंडल (स्ट्रैटोस्फियर-ट्रोफोस्फियर) रडार फैसिलिटी की स्थापना कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टैक्नोलॉली के एडवांस सेंटर फॉर एटमोस्फेरिक रडार रिसर्च में की गई है। इसका औपचारिक उद्घाटन 11 जुलाई को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान तथा पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने किया है।
यह विश्व की पहली विंड प्रोफाइलर रडार है, जो 205 मेगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्यरत है। इसकी रेंज में संपूर्ण क्षोभमंडल और समतापमंडल की निचली सतह होगी। इस प्रकार यह रडार 315 मीटर से लेकर 20 किलोमीटर तक होने वाली सभी मौसमी गतिविधियों पर नजर रखेगा। यही वह क्षेत्र है जहां अधिकतर मौसमी गतिविधियां घटित होती हैं।
अरब सागर और पश्चिमी घाटों के मध्य स्थित होने के कारण कोचीन शहर में इस रडार की स्थापना की गई है। इसके अलावा केरल से ही मानसून भारत में प्रवेश करता है। इसलिए रडार की स्थापना के लिए इस स्थान को चुना गया है। इसकी स्थापना के लिए विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड ने लगभग 25 करोड़ का वित्तीय सहयोग दिया है।
परियोजना के प्रमुखडॉ. के. मोहनाकुमार ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ''इस रडार की खासियत है कि यह लगातार कार्य करता रहता है और खराब मौसम में भी इसके परिचालन में रुकावट नहीं आती। इसके जरिये भारी बारिश, कोहरा, झंझावातों एवं बादलों के फटने, आसमानी बिजली जैसी मौसमी आपदाओं की जानकारी मिल सकेगी। चक्रवात की सटीक जानकारी के लिए भी इस रडार का उपयोग किया जा सकता है। वायुमंडलीय घनत्व, मौसमी परिस्थितियों की जानकारी देने में सक्षम यह रडार पूरी तरह ऑटोमैटिक है। इसका उपयोग जलवायु परिवर्तन संबंधी अध्ययन में भी किया जा सकेगा।''
इस साल जनवरी से कार्यरत यह राडार अपने 619 एंटीनों के जरिये सूचनाएं प्राप्त करता है, जिनका उपयोग एयरपोर्ट, सैन्य सेवाओं, अतंरिक्ष अभियानों में किया जा सकता है। यह एक बहुउद्देश्यी रडार है, जिसका उपयोग संचार सहित खगोल-भौतिकी के क्षेत्र में किया जा सकेगा। मानसून एवं इसकी गतिशीलता की विशेषताओं और उसमें होने वाले परिवर्तनों के संभावित कारणों के अध्ययन में भी यह रडार सहायक होगा।
(इंडिया साइंस वायर)
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