क्या आपकी यौन प्राथमिकता केवल आपके जीनों का परिणाम है या पर्यावरण और संस्कृति भी इस पर प्रभाव डालते हैं?
क्या आपकी यौन भावनात्मकता (सामान्य, समलैंगिक, उभयलिंगी या अन्य कोई भी यौन पहचान) आपके इस तरह के जीन के साथ जन्म लेने का परिणाम है या यह आपकी स्वतंत्र इच्छा की एक अभिव्यक्ति मात्र है? यह हमेशा से ही एक ज्वलनशील मुद्दा रहा है।
कहने की जरूरत नहीं है कि यौन पहचान की उत्पत्ति को लेकर प्रकृति बनाम संस्कृति के झगड़े में विज्ञान एक महत्वपूर्ण रेफरी की भूमिका निभाता रहा है। आर्काइव्स ऑफ सेक्शुअल बिहेवियर के जनवरी संस्करण में प्रकाशित एक अध्ययन में कनाडा के अल्बर्टा स्थित लेथब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने इसको लेकर जो सबूत प्रस्तुत किए हैं, वे दृढ़ता से जीन और यौन विन्यास के बीच एक कड़ी होने की बात करते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि मैक्सिकन समलैंगिक पुरुषों की एक श्रेणी, जिसे मक्सस कहा जाता है, में औरों से अलग होने की चिंता कहीं ज्यादा है। एक सामान्य पुरुष की तुलना में अपने माता-पिता या भरोसेमंद अभिभावक से अलग होने की चिंता इन्हें अधिक सताती है। कनाडा में और फिफाफाईन (पॉलीनेशिया में समोआ द्वीपों पर रहने वाले तीसरे लिंग के लोग) में भी समलिंगी पुरुषों के समान अवधारणा पाई जाती है। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो जन्म तो पुरुष के रूप में लेते, लेकिन उनमें मर्दाना और स्त्रियों के गुण परिलक्षित होते हैं। शोधकर्ताओं ने इस संभावना से इनकार किया कि संस्कृति ने इस अंतर को आकार दिया है, क्योंकि अध्ययन से पता चलता है कि यह अनुभव से प्राप्त ज्ञान नहीं है बल्कि यह सोच उन्हें विरासत में मिली है।
दूसरी ओर, शोधकर्ता यह भी तर्क देते हैं कि मां के गर्भ में प्रोजेस्टेरोन जैसी महिला हार्मोनों के संपर्क में आने वाले नर बच्चे यौन विचलित हो सकते हैं। यह बदले में उनके औरों से अलग होने की चिंता की सीमा को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि एक्स गुणसूत्र का एक विशेष खंड पुरुषों के बीच बेताबी और समलैंगिकों के प्रति आकर्षण की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह पहली बार नहीं है कि विज्ञान ने एलजीबीटी (समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेन्डर) की इंद्रधनुषी रंगों को प्राकृतिक रूप से समर्थन दिया है। वर्ष 1990 में, न्यूरोबायोलॉजिस्ट साइमन लेवे ने पाया कि समलैंगिक पुरुषों के हाइपोथैलेमस में कोशिकाओं के एक समूह का आकार विषमलिंगी पुरुषों की तुलना में छोटा था। इसको मद्देनजर रखते हुए उन्होंने यह सुझाव दिया कि समलैंगिकता का जीन के साथ कुछ संबंध हो सकता है।
हालांकि लेवे ने इसमें किसी भी कारण संबंधी लिंक होने से इनकार किया था, लेकिन उनके निष्कर्ष समलैंगिक अधिकारों के आंदोलन के लिए जीत की उम्मीद जगाने वाला था। तीन साल बाद, जब आनुवंशिकीविद् डीन हैमर ने अनुसंधान को प्रकाशित करते हुए सुझाव दिया कि एक समलैंगिक जीन का अस्तित्व हो सकता है, समलैंगिक आंदोलनकर्ताओं ने इसे सबूत के रूप में काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि समलैंगिक होना पूरी तरह से उनकी “गलती” का नतीजा नहीं था।
परेशानी यह है कि समलैंगिकता सहित लगभग सभी मानवीय लक्षण, जीन, पर्यावरण और सामाजिक परिवेश के बीच परस्पर क्रिया का एक परिणाम है। यह दावा करने के लिए कुछ ऐसी चीज भी है जैसे समलैंगिक जीन कृत्रिम होगी। बावजूद इसके, समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता मौन रहते हुए वैज्ञानिकों और विद्वानों के साथ मिलकर इस वैज्ञानिक काल्पनिक कथा पर कायम हैं, क्योंकि इसके प्रभावशाली परिणाम देखने को मिले हैं, जिसमें हाल ही में अमेरिका में समलैंगिक विवाह की मंजूरी देने का निर्णय शामिल है।
इसकी खामियां होने के बावजूद, समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने “इस तरह पैदा हुआ” तर्क को राजनीतिक रूप से समझाया है क्योंकि यह तुरंत उन पर पड़े अप्राकृतिकता या अनैतिकता के कीचड़ को नैतिकतावाद से धो देता है। उनका मानना है कि स्वतंत्र चयन का तर्क खतरनाक है, क्योंकि इससे न केवल रूढ़िवादी आक्रामकता का मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है, बल्कि यह उन्हें पीडोफाइल जैसे पाखंडियों की श्रेणी में रख देता है।
समलैंगिक अधिकार आंदोलनों ने जैविक नियतत्ववाद को नारों में बदल दिया है, लेकिन यह एक दोधारी तलवार है, जिसमें सभी तरह के प्रतिगामी आंदोलनों और सरकारों द्वारा महिलाओं, काले और खानाबदोशों को बदनाम और उनका तिरस्कार किया गया है।
हम कौन हैं और हम क्या करते हैं, इसका निर्धारण अक्सर हमारे स्वतंत्र चुनाव से कम और हम जिस समाज में रहते हैं उनके मूल्यों और विचारों से ज्यादा होता है। इस विचार को कुछ विद्वान सामाजिक निर्माणवाद का नाम देते हैं और जिसे इस शर्मनाक अवस्था से सम्मानपूर्वक बाहर निकलने के रूप में परिभाषित किया जाता है।
यदि हम रूढ़िवादी यह स्वीकार कर सकते हैं कि इच्छा जैविक है, फिर भी संस्कृति द्वारा इसमें बदलाव लाया जा सकता है, तो हम आशा करते हैं कि उनके लिए कामुकता के स्वरूपों को स्वीकार करना आसान हो सकता है, क्योंकि यह उनसे अलग नहीं है। लेकिन “जीव विज्ञान की नियति” के शब्दाडंबर पर इतनी सारी लड़ाई जीतने के बाद भी क्या समलैंगिक अधिकार आंदोलन इसमें सुधार को बर्दाश्त कर सकता है?
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.