Agriculture

रोजगार मिलने पर भी बदहाल

दिहाड़ी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले गरीबी में जिंदगी गुजार रहे हैं। इनमें उन लोगों का अच्छा खासा प्रतिशत है जिनके पास रोजगार तो है लेकिन वह नियमित नहीं है। 

 
By Richard Mahapatra
Published: Sunday 31 December 2017

तारिक अजीज / सीएसई

भारत में हमें कई बार हैरानी होती है कि आखिर क्यों मेहनतकश नौकरीशुदा लोग गरीबी में जिंदगी गुजार रहे हैं। दिहाड़ी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के साथ ऐसा ज्यादा होता है। गरीब लोगों में उन लोगों का अच्छा खासा प्रतिशत है जिनके पास रोजगार तो है लेकिन वह नियमित नहीं है। वर्तमान में सरकार के सामने बेरोजगारी मुख्य चुनौती है। इस वक्त ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि सबसे बुरे दौर से गुजर रही है जो यहां निराशा की मुख्य वजह है। भारत में बेरोजगारी पर गंभीर बहसें शुरू हो गई हैं।

समस्या यह है कि हमारी बहसें केवल दो उपाय ही सुझाती हैं। पहला यह कि आधारभूत संरचनाओं पर खर्चा बढ़ाकर नौकरी के अवसर पैदा करना और दूसरा कौशल विकास जैसे कार्यक्रम को बढ़ावा देना ताकि युवा रोजगार पाने लायक हो सकें। नौकरियों के सृजन के लिए आर्थिक विकास के अनावश्यक प्रयासों को भी इसमें जोड़ा जा सकता है। ये रणनीतियां बेहद पुरानी हैं और नौकरियों के बाजार की खूबियों से इनका कोई लेना देना नहीं है। हमारे यहां युवाओं में बेरोजगारी की दर काफी ज्यादा है और जो रोजगार में लगे हैं वे भी बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं।

हैरानी की बात यह है कि भारत की यह समस्या वैश्विक चलन में है। विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के युवाओं के लिए ताजा वैश्विक रोजगार चलन के अनुसार, 2017 में वैश्विक स्तर पर युवाओं में बेरोजगारी की स्थिरता 13.1 प्रतिशत है। 2016 में यह 13 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2018 में युवाओं में बेरोजगारी की दर और बढ़ेगी। इसमें यह भी बताया गया है कि उभरते और विकाशील देशों में 39 प्रतिशत युवा कामगार औसत या अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं। इसका मतलब है कि वे प्रतिदिन 3.10 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवनयापन कर रहे हैं।

उभरते और विकासशील देशों में 16.7 प्रतिशत युवा कामगार बेहद गरीबी में जिंदगी गुजारते हुए प्रतिदिन 1.90 डॉलर पर बसर कर रहे हैं। ये चलन विकसित देशों में भी देखा जा रहा है। भारत में अधिकांश गरीब कामगार असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वैश्विक स्तर की बात करें तो 75 प्रतिशत कामगार युवक असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह वयस्कों की दर के मुकाबले काफी अधिक है। विकासशील देशों में 95 प्रतिशत युवा असंगठित क्षेत्र के काम से जुड़े हैं। आईएलओ की रिपोर्ट में एक और निराश करने वाला चलन बताता है कि वयस्कों की तरह युवाओं में भी तीन गुणा बेरोजगारी का खतरा है।

हाल के वषों में श्रम बाजार में युवाओं को अवसर उपलब्ध कराने के लिए वैश्विक स्तर पर युवाओं से लेकर वयस्कों तक में बेरोजगारी की दर में थोड़ा बदलाव हुआ है। पांचवें वार्षिक रोजगार बेरोजगारी सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत भर में शिक्षा के स्तर में सुधार के साथ 18-29 आयु वर्ग में बेरोजगारी भी बढ़ी है।

भारत के असंगठित क्षेत्र में ज्यादातर रोजगार उपलब्ध है। इसका आंशिक प्रतिशत विकास योजनाओं में काम कर रहे दिहाड़ी मजदूरों और कृषि से आता है। क्या भविष्य में रोजगार की मांग की पूर्ति इन क्षेत्रों से पूरी हो सकती है? भारत अब भी इस मांग को पूरा करने के लिए आधारभूत संरचनाओं और मजूदरी कार्यक्रमों में भारी निवेश कर रहा है। लेकिन चुनौती यह है कि क्या रोजगार में लगे लोगों को गरीबी के स्तर से उठाया जा सकता है।

इसका उत्तर क्या है? पहला यह कि असंगठित क्षेत्र के रोजगार की बराबरी नौकरी न होने के स्तर से नहीं की जा सकती। इसके बदले रणनीति यह होनी चाहिए कि संगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन को अधिकतम तवज्जो दी जाए। अभी यह विकल्प नजर नहीं आ रहा है क्योंकि संगठित क्षेत्र को बड़ी संख्या में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को शामिल करना होगा। दूसरा जब हम कौशल विकास की बात करते हैं तब असंगठित क्षेत्र के कामगारों के कौशल को नजरअंदाज करते हैं। इसके बदले हम उन्हें एक नया कौशल सिखाने पर जोर देते हैं जिसके लिए नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है। इससे नौकरियों के सृजन में देरी हो सकती है। सार यह है कि हमें नौकरियों के अवसर पैदा करने के नए रास्ते खोजने होंगे।  

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