Climate Change

लू की भयंकरता और बढ़ेगी

मई के आखिरी हफ्ते में उत्तर भारत लगातार लू यानी हीटवेव की चपेट में रहा और इससे अब भी राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। 

 
By Anil Ashwani Sharma
Published: Tuesday 05 June 2018
Credit: Agnimirh Basu/ CSE

मई के आखिरी हफ्ते में उत्तर भारत लगातार लू यानी हीटवेव  (तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से अधिक) की चपेट में रहा और इससे अब भी राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। हीटवेव की संख्या, मामले और इससे होने वाली मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है। यदि हीटवेव से मरने वालों की संख्या को देखें तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए के अनुसार, पिछले पांच सालों में 17 राज्यों में लू ने 4824 लोगों को मारा है। वहीं यदि लू के मामलों को देखें तो अकेले  महाराष्ट्र है, जहां पिछले 37 सालों में इसकी संख्या 3 से बढ़कर 87 हो गई है। वैसे पूरे देश में लगभग डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। इस संबंध में राजस्थान विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के प्रमुख टी.आई. खान कहते हैं कि भविष्य में इसके दिनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होगी। क्योंकि इसे रोकने के लिए न तो अब तक सरकारी प्रयास किए गए हैं और न ही इस संबंध में अब तक कोई शोध किए जा रहे हैं। 

हीटवेव बढ़ने के संबंध में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में सेंटर फॉर एनवायरमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रोफेसर साची त्रिपाठी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन क्या है? वास्तव में यह एक एनर्जी बैलेंस था, वह बैलेंस अब धीरे-धीरे हट रहा है। पहले पृथ्वी में जितनी ऊर्जा आती थी, उतनी ही वापस जाती थी। इसके कारण हमारा एक वैश्विक तापमान संतुलित रहता था। लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद जैसे- जैसे कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में बढ़ने लगी और चूंकि यह एक ग्रीन हाउस गैस है। इसके बढ़ने के कारण एनर्जी बैलेंस दूसरी दिशा में चला गया और इसके कारण हमारे वातावरण में एनर्जी बढ़ गई। इसका नतीजा था वैश्विक तापमान में वृद्धि। वैश्विक तौर पर एक डिग्री तापमान बढ़ा है। इसे यह कह सकते हैं कि यह औषत रूप से एक डिग्री बढ़ा  है। इसका अर्थ है पृथ्वी के किसी हिस्से में यह 0.6 तो कहीं 1.8 या कहीं 2 डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि अप्रैल में ही दिल्ली का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस है और ऐसी स्थिति में यदि दो डिग्री सेल्सियस बढ़ता तो कुल मिलाकर दिल्ली का तापमान चालीस पहुंच गया। ऐसे में हीटवेव की स्थिति पैदा हो गई। और इसी तरह से इसकी संख्या में दिनोदिन बढ़ोतरी हो रही है। 

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं हीटवेव को बढ़ने में जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारक सिद्ध हो रहा है। त्रिपाठी बताते हैं कि हीटवेव एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसके कारण मानव जीवन प्रभावित होता है। हीटवेव का मानव के स्वास्थ्य पर कई प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में तापमान यदि अधिकतम 36 डिग्री सेल्सियस है, ऐसे हालत में दो डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि होती है तो ये इलाके हीटवेव की सीमा पर जा पहुंचते हैं। वास्त्व में यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। जब तापमान में बढ़ोतरी होगी तो फ्रिक्वेंसी बढ़ेगी ही। यहां तक इस शताब्दी की समाप्ति तक वैश्विक तापमान में 2.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी संभव है। ऐसे मे यदि पृथ्वी के किसी हिस्से में 2 डिग्री सेल्सियस है तो संभव है कि वहां तीन डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी संभव  है।

जलवायु परिवर्तन एक्शन प्लान देश के सभी राज्यों में शुरू किए गए हैं। इसके तहत प्राथमिकता के आधार पर किसानों को फोकस किया गया है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक किसान ही प्रभावित होते हैं।

इस संबंध में आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर कृष्णा अच्युतराव कहते हैं कि वास्तव में जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव की भयंकरता और बढ़ी है। उन्होंने बताया कि 2015 में हीटवेव से हुई मौतों के लिए जलवायु परिवर्तन पूरी तरह से जिम्मेदार है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने ही हीटवेव की गर्मी की लहरों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे कहते हैं कि भारत में हमेशा से हीटवेव होती आई है। और हीटवेव की गर्मी में परिवर्तन स्थिर नहीं रहे हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में जहां हीटवेव की तीव्रता, आवृत्ति और अवधि में वृद्धि दर्ज हुई है, जबकि देश के अन्य ऐसे क्षेत्र हैं यह बहुत अधिक नहीं बढ़ी है। यहां तक कि इसमें कमी भी नहीं हुई है। कृष्णा के अनुसार, हीटवेव से मौत के लिए प्रमुख कारक के रूप में एक संभावित कारण यह है कि उच्च तापमान वाली घटनाओं में आर्द्रता बढ़ी है। इससे मानव शरीर पर बहुत ही भयंकर असर होता है। जलवायु परिवर्तन से आर्द्रता बढ़ने की भी उम्मीद है। वर्तमान में आर्द्रता का अतिरिक्त प्रभाव पूर्वानुमानों द्वारा नहीं लिया जाता है। क्योंकि भारत में अभी  कई अन्य देशों में कि तरह हीटवेव और आर्द्रता को अलग-अलग रूप से परिभाषित नहीं किया जाता है। इसका सीधा मतलब है कि हीटवेव या गंभीर हीटवेव की चेतावनियां प्रभावित क्षेत्र में लोगों के सामने नहीं आ पाती।

जलवायु परिवर्तन के कारण ही हीटवेव के दिनों में बढ़ोतरी हुई है। इस बात के समर्थन में आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर विमल कुमार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही भारत में हीटवेव की आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है। भारत में हीटवेव तीसरी ऐसी आपदा है जिसमें सबसे अधिक मौतें होती हैं। इसका कारण बताते हुए विमल कुमार कहते हैं कि इसके पीछे मुख्य कारण है कि भारत में हीटवेव संबंधी प्रारंभिक चेतावनी समय पर नहीं दी जाती है। इसके अलावा उनका कहना है कि अब भी लोग यह नहीं मानते हैं कि हीटवेव मानव और जानवरों को मार देती है। हीटवेव की तुलना में बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से निपटने के लिए हम बेहतर रूप से तैयार हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में गंभीर हीटवेव बढ़ रही है। इसके अलावा हीटवेव अब भारत की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाली कारक बनते जा रही है। आखिर देश के आधे से अधिक राज्य हीटवेव से प्रभावित हैं। वह कहते हैं कि दुनियाभर में वैश्विक तापमान की चरम सीमाएं बढ़ी हैं और इसमें मानव निर्मित गर्मी इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। 

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