मलप्पुरम जिले में अपनी अथक मेहनत से सफलता की गाथा लिखने वाली तेन्नाला कृषि उत्पादक कंपनी की निदेशक यास्मीन अरिंबरा से बातचीत
इस बार हमारी मुलाकात ऐसी लड़की से है जिसने एक दिन स्कूल जाना बंद कर दिया था, लेकिन उसकी ज्ञानेंद्रियां दुनिया की पाठशाला से बहुत सारा सबक पढ़ रही थीं। बिना किसी औपचारिक डिग्री लिए आज वह इस मुकाम पर हैं कि महिलाओं को घर से निकाल कर खेतों में काम करना और उद्यमिता का पाठ पढ़ा रही हैं। वह अपनी महिला साथियों के साथ एक ऐसी कंपनी चला रही हैं, जिसने आम लोगों की सेहत के मद्देनजर ऐसी धान का उत्पादन कर रही हैं, जिसमें रसायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं किया जाता है। केरल के आर्थिक रूप से पिछड़े मलप्पुरम जिले में अपनी अथक मेहनत से सफलता की गाथा लिखने वाली तेन्नाला कृषि उत्पादक कंपनी की निदेशक यास्मीन अरिंबरा से अनिल अश्विनी शर्मा ने बातचीत की
इस मुकाम पर पहुंचने का सफर कब शुरू हुआ?
मैं 2006 में अंबाड़ी कुटुम्बश्री मिशन (यह मिशन तेन्नाला ग्राम पंचायत के तहत कई स्वयं सहायता समूहों की संस्था है) में एक सदस्य बनी। जल्द ही मैं मिशन की ग्राम पंचायत इकाई की सचिव बन गई। 2011 के कुटुम्बश्री के आम चुनाव में मुझे तेन्नाला ग्राम पंचायत के कम्युनिटी डेवलपमेंट सोसायटी (सीडीसी) का अध्यक्ष चुना गया। तब मैं केरल सरकार के एक विकास कार्यक्रम का हिस्सा थी। मैंने एक ऐसे परिवार की मदद की, जो समाज से अलग-थलग था। उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था, इसलिए मैंने ग्राम पंचायत के माध्यम से एक नया कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम के तहत हाशिए पर चले गए लोगों को घर मिले, कुएं खोदे गए, खाना और कपड़ा मिला। मैंने इन लोगों के लिए शिक्षा और राेजगार की व्यवस्था की। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा।
खेती जैसे क्षेत्र में काम करने का हौसला कहां से आया?
2012 में, मैंने अपनी पड़ोसी महिला मित्रों के साथ गांव में जमीन ली। हमने उस जमीन में धान की खेती की। इस प्रेरणा से, हमने सीडीसी कार्यक्रम के तहत सामुदायिक खेती के बारे में जागरूक करने के लिए स्थानीय किसानों की एक बैठक बुलाई। इस योजना के तहत 96 किसान समूहों ने काम करना शुरू किया। उन्होंने 123 एकड़ असिंचित भूमि में चावल की खेती शुरू की और उस मौसम में अच्छी फसल हासिल की। हम समझ गए कि यदि हम इस फसल को निजी चावल मिलों को देते हैं, तो हमें फसल की बहुत कम कीमत मिलेगी। इसलिए कृषि विभाग और पंचायत सदस्यों के सहयोग से हमने गरिमा किसान क्लब को लागू किया। इस चावल को बाजार में तेन्नाला चावल के रूप में पेश किया।
किन संस्थानों ने आपकी मदद की?
गरिमा फार्मर्स क्लब कुशलतापूर्वक चल रहा था और मुझे कुटुम्बश्री मिशन व नाबार्ड(राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के माध्यम से कंपनी शुरू करने का एक अवसर मिला। सितंबर 2015 में, तेन्नाला कृषि-उत्पादक कंपनी अस्तित्व में आई। इसके 10 निदेशक हैं। हमने 500 महिलाओं को शेयरधारकों के रूप में चुना, लेकिन विभिन्न कारणों से केवल 374 महिलाएं ही शेयर लेने आईं।
आम आदमी आपके चावल के ग्राहक कैसे बने?
कंपनी समाज कल्याण भवन में काम कर रही थी जो पंचायत कार्यालय के पास है। हमारा उद्देश्य नाबार्ड के समर्थन से धान को आम लोगों के बीच बेचना था। हमें नाबार्ड के माध्यम से 4.20 लाख रुपए व कुटुम्बश्री मिशन के माध्यम से एक लाख रुपए की निधि मिली। चावल बेचने के लिए कुटुम्बश्री मेलस (स्थान का नाम) मुख्य बाजार था। बहुत से लोगों ने पूछताछ की और हमसे चावल खरीदना शुरू किया। बाद में कुदुम्बश्री मिशन ने हमारे चावल को तेन्नाला चावल के रूप में ब्रांड किया और हम आगे बढ़े। मैंने उसी वर्ष अपना प्लस वन और प्लस टू (उच्चतर माध्यमिक शिक्षा) पास किया। मैंने कुटुम्बश्री मिशन द्वारा संचालित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेना भी शुरू कर दिया।
आपने कंपनी के साथ ही एक स्कूल भी शुरू किया है, इसकी शुरूआत कैसे हुई?
दिसंबर, 2017 में मुझे कैराली चैनल द्वारा सामाजिक उद्यमी के रूप में सम्मानित किया गया था। पुरस्कार देने के समय, कल्याण सिल्क के मालिक कल्याण रमन ने विकलांग बच्चों के लिए स्कूल शुरू करने के लिए 5 लाख रुपए देने का वादा किया। मैंने स्कूल एक मार्च, 2018 को शुरू किया। मैंने स्कूल चलाने व आयकर विभाग से करों में कुछ रियायत पाने के लिए भी आवेदन किया है। कुछ और लोगों की मदद से मैं स्कूल को चलाने के लिए मासिक खर्च का प्रबंधन करने की कोशिश कर रही हूं। अब मैंने धान के खेत में ज्यादा समय देना शुरू कर दिया है। सभी कर्जों को चुकाने के लिए अतिरिक्त 5 एकड़ जमीन में खेती भी शुरू कर दी है।
आज इस मुकाम पर अपनी कंपनी के भविष्य को कैसे देखती हैं?
मैं कंपनी के भविष्य को लेकर थोड़ी चिंतित हूं। हमारे पास कंपनी के दफ्तर के लिए अलग से जगह नहीं है। तेन्नाला चावल ब्रांड के लिए राइस मिल, सीड बैंक और मार्केट साइट स्थापित करने के लिए और अधिक काम करने की जरूरत है। कंपनी के गोदाम का किराया, निजी मिल का खर्च, प्रसंस्करण शुल्क, परिवहन शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए मेरी कोशिश है कि इन मदों पर किए जाने वाले खर्च में हम कटौती करें। किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाने की स्थिति न हो। कुल मिलाकर हमारा प्रयत्न है कि हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर हों। इससे हमारे खर्चों में स्वत: कमी आएगी।
आप महिलाओं से जुड़े और कौन से मुद्दों पर काम करने की जरूरत समझती हैं?
महिला सशक्तिकरण, पुनर्वास, स्वास्थ्य और कार्यस्थलों पर अधिकार को लेकर बहुत काम करने की जरूरत है। ऐसी असंख्य आंखें हैं जो मुझे आशा और प्रेम से निहारती हैं। इनसे ही मुझे आगे बढ़ने का हौसला व चुनौतियों का सामना करने की शक्ति व ऊर्जा मिलती है। मैंने शिद्दत से महसूस किया कि ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं जो मुख्यधारा से अलग-थलग हैं। मैं उन महिलाओं, बच्चों और किसानों के लिए और काम करना चाह रही हूं और भविष्य में भी करती रहूंगी।
आपने स्कूल छोड़ दिया था, फिर पढ़ाई को लेकर उत्साह कैसे जागा?
मुझे अन्य महिला किसानों के साथ-साथ तेन्नाला कृषि-उत्पादक कंपनी के प्रबंध निदेशक के रूप में काम करने पर गर्व है। मेरे गांव में 10वीं कक्षा के बाद महिलाओं को अपनी शिक्षा बंद करने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। अब मैंने इन रूिढ़वादी मान्यताओं को तोड़ने की कोशिश में जुटी हुई हैं। इन्हीं कोशिशों का आज नतीजा है कि अब मैंने अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी कर ली है और अब कालीकट विश्वविद्यालय में स्नातक डिग्री का पाठ्यक्रम पूरा कर रही हूं, लेकिन मेरे लिए जमीनी अनुभव आज भी अहम हैं। मैं अपने परिवेश और अपने समाज से बहुत कुछ सीख रही हूं।
आज आप किन लोगों को अपने मददगार के रूप में देखती हैं?
निश्चित तौर पर मेरा परिवार। मेरे मां-बाप और भाई-बहन ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वास्तव में कुटुम्बश्री के सदस्य मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा स्त्रोत हैं। कंपनी ने मुझे आम लोगों के साथ जुड़ने व उनकी मदद करने के लिए मंच दिया। मेरी यह जीत मेरे परिवार से लेकर मेरे परिवेश तक की है। यदि इसे सामूहिकता की जीत कहें तो बेहतर है।
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