भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार पूर्ण सूर्य ग्रहण से पहले ही यह अनुमान लगा लिया है कि ग्रहण के दौरान कोरोना का स्वरूप कैसा होगा।
टीवी वेंकटेश्वरन
सोमवार का पूर्ण सूर्यग्रहण भारत में भले ही न दिखाई दिया हो, पर भारतीय खगोल-वैज्ञानिकों ने ग्रहण के दौरान सौर कोरोना की संरचना का पूर्वानुमान लगाया है।
कोरोना की संरचना को लेकर वैज्ञानिकों के बीच अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं क्योंकि सूर्य के तेज के चलते इसका अध्ययन बेहतर तरीके से करना संभव नहीं है। लेकिन पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान कोरोना का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार पूर्ण सूर्य ग्रहण से पहले ही यह अनुमान लगा लिया है कि ग्रहण के दौरान कोरोना का स्वरूप कैसा होगा। उनके अनुसार सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से में कमल की पत्तियों के आकार की दो संरचनाएं नजर आएंगी, जिन्हें हेलमेट स्टीमर्स कहा जाता है।
वैज्ञानिक दल का नेतृत्व कर रहे डॉ. दिब्येंदु नंदी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध के पश्चिमी हिस्से में विकसित हो रहे संभावित नैरो स्ट्रीमर के अलावा हमारा मानना है कि उत्तरी गोलार्ध में भी इसी तरह की दो संरचनाएं हो सकती हैं। सूर्य के दक्षिणी ध्रुव में चुंबकीय क्षेत्र का घनत्व भी अत्यधिक होगा।’ वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन और पहले से उपलब्ध सौर सतह केंद्रित फ्लक्स ट्रांसपोर्ट मॉडल तकनीक के आधार पर कोरोना के आकार और उसकी संरचना का अनुमान लगाया है।
कोरोना का पूर्वानुमान सही निकलता है तो यह काफी महत्वपूर्ण होगा और भविष्य में अंतरिक्ष मौसम (स्पेस वेदर) के बारे में पूर्वानुमान लगाने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। स्पेस वेदर का असर धरती पर भी होता है। सूर्य के आसपास के वातावरण में सौर तूफान और सौर चमक जैसी बहुत-सी हलचलें होती रहती हैं, जो अंतरिक्ष में उपग्रहों के संचालन, टेलीकम्युनिकेशन्स, जीपीएस नेविगेशन नेटवर्क और इलेक्ट्रिक पावर ग्रिड जैसी आधुनिक तकनीकों को प्रभावित करते हैं।
सौर वातावरण में होने वाली उथल-पुथल एक समान नहीं होती है और कोरोना का आकार भी बदलता रहता है। सूर्य की तेज चमक के कारण कोरोना आमतौर पर अदृश्य ही रहता है, लेकिन जब चंद्रमा पूरी तरह से सूरज की डिस्क को ढंक लेता है तो कोरोना अत्यधिक चमक के साथ दिखाई देता है। सौर भौतिकविद पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान इस क्षण को देखने के लिए दुनिया भर के हिस्सों की यात्रा करते हैं।
डॉ. दिब्येंदु नंदी के अनुसार ‘‘इस अध्ययन से सूर्य के कोरोना के बारे में हुए खुलासों से अंतरिक्ष के मौसम के बारे में नए रहस्योद्घाटन हो सकते हैं और सूर्य के कोरोना से जुड़ी इन समस्याओं से निपटने के लिए रणनीतियां बनाने में मदद मिल सकती है।’’
अध्ययनकर्ताओं की टीम में कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में स्थापित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया (सीईएसएसआई) और यूके की डरहम यूनिवर्सिटी के खगोल-वैज्ञानिक शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
Keywords : CESSI, Helmet steamers, full solar eclipse, solar corona, IISER, space weather
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
India Environment Portal Resources :
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.