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स्मार्टफोन से हो सकेगी ध्वनि प्रदूषण की निगरानी

शोधकर्ताओं ने पर्यावरणीय शोर को मापने के लिए एक एंड्रॉयड एप्लीकेशन बनाई है, जिसका परीक्षण पंजाब के खन्ना एवं मंडी गोबिंदगढ़ क्षेत्र में किया गया

 
By Umashankar Mishra
Published: Friday 28 April 2017
स्‍मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की भागीदारी से ध्‍वनि प्रदूषण की निगरानी करना एक आसान, सस्‍ता एवं टिकाऊ विकल्‍प बन सकता है। Credit: dallscar1 / Flickr

भारत जैसे अत्यधिक जनसंख्या वाले देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण, सड़कों के फैलते जाल और वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब स्मार्टफोन को जरिया बनाकर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है। 

देश में स्मार्टफोन के उपयोगर्ताओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है और शोधकर्ताओं की मानें तो ध्वनि प्रदूषण की निगरानी करने में स्मार्टफोन एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एन्‍वायरमेंट मॉनिटरिंग ऐंड एसेसमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार ध्वनि प्रदूषण की निगरानी और मैपिंग करने में स्मार्टफोन की अहम भूमिका हो सकती है। 

पटियाला की थापर यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस विभाग और ऑस्ट्रेलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण के स्तर का पता लगाने में स्मार्टफोन की भूमिका शोर के स्तर को मापने वाले मौजूदा तंत्र की अपेक्षा काफी अहम साबित हो सकती है। 

स्मार्टफोन पर आधारित इस नए निगरानी तंत्र में एंड्रॉयड एप्लीकेशन की भूमिका रहती है, जो शोर के स्तर का पता लगाकर आंकड़ों को एक सर्वर पर भेजता है और फिर ध्वनि  प्रदूषण के स्तर को चित्र के रूप में गूगल मैप पर साझा कर देता है। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक सेंसिंग की इस प्रक्रिया में जन-भागीदारी होने की वजह से वास्तविक समय पर शोर की मैपिंग की जा सकती है। 

विशेषज्ञों के अनुसार अत्यधिक शोर श्रवण तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण चिड़चिड़ापन, उच्च रक्त चाप और हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनी से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है।

शोधकर्ताओं ने पर्यावरणीय शोर को मापने के लिए एक एंड्रॉयड एप्लीकेशन बनाई है, जिसका परीक्षण पंजाब के खन्ना एवं मंडी गोबिंदगढ़ क्षेत्र में किया गया। अध्ययन के दौरान यह एप्लीकेशन खन्ना एवं मंडी गोबिंदगढ़ में स्मार्टफोन उपयोगर्ताओं को वितरित की गई और रिहायशी, व्यावसायिक, शैक्षिक एवं ध्वनि  प्रतिबंधित क्षेत्रों में शोर के स्तर की मॉनिटरिंग की गई। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार शोर के स्तर की निगरानी करने वाली मौजूदा उपकरणों की तुलना में स्मार्टफोन की उपयोगिता बेहतर पाई गई है। अध्ययन में रिहायशी, व्यावसायिक और औद्योगिक इलाकों में शोर का स्तर निर्धारित मापदंड से काफी अधिक पाया गया। 

स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की भागीदारी से ध्वनि  प्रदूषण की निगरानी करना एक आसान, सस्ता एवं टिकाऊ विकल्प बन सकता है। अधिकतर स्मार्टफोनों में एक्सेलेरोमीटर, गाइरोस्कोप, मैग्नेटोमीटर, लाइट माइक्रोफोन और पोजीशन सेंसर्स (जीपीएस) जैसे सेंसर लगे रहते हैं, जो विभिन्‍न मॉनिटरिंग गतिविधियों में उपयोगी माने जाते हैं। स्मार्टफोन में प्रोसेसिंग, कम्यूनिकेशन और स्टोरेज की क्षमता होने के कारण पर्यावरणीय शोर की मैपिंग आसानी से की जा सकती है।

ध्वनि  प्रदूषण की निगरानी के लिए फिलहाल संवेदनशील माइक्रोफोन युक्त खास तरह के ध्वनि - स्तर मीटर का उपयोग किया जाता है। शोर के स्तर का पता लगाने के लिए ये सेंसर्स कुछ चुनिंदा जगहों पर तैनात किए जाते हैं। समय और स्थान के मुताबिक शोर को प्रभावी ढंग से निगरानी करने के लिए सेंसरों का एक विस्तृत नेटवर्क होना जरूरी है। यह प्रक्रिया काफी महंगी और श्रमसाध्य है, इसलिए इस पर अमल करना काफी कठिन है। ऐसे में ध्वनि  प्रदूषण की निगरानी के लिए कम लागत वाली मापक यंत्र की सख्त जरूरत है, जिसका आसानी से बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा सके।

 शोधकर्ताओं के अनुसार पारंपरिक तरीकों के बजाय ध्वनि  प्रदूषण की निगरानी के लिए सामुदायिक सेंसिंग अब एक नया जरिया बनकर उभर सकती है, जिसमें प्रशिक्षित इंजीनियरों के बजाय आम लोगों की हिस्सेदारी देखने को मिल सकती है। अध्ययनकर्ताओं की टीम में राजीव कुमार, अभिजीत मुखर्जी और वी.पी. सिंह शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

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