Sanitation|Waste Management

“पुन: इस्तेमाल की अवधारणा भारतीय जीवनशैली का एक अभिन्न अंग रहा है”

“इस्तेमाल करो और फेंको” की जीवन शैली से अलग हट कर एक नए मुकाम की ओर अग्रसर शैलजा रंगराजन

 
By Anil Ashwani Sharma
Published: Thursday 15 November 2018
तारिक अजीज / सीएसई

क्या आप कभी सोच सकते हैं कि फटी-पुरानी जींस, फटे टायर आदि भला किस काम आ सकते हैं? हम और आप ऐसे कूड़ा-करकट को फेंकने से पहले सोचते भी नहीं हैं, लेकिन यही चीजें यदि लाजवाब उत्पादों का रूप लेकर हमारे और आपके पास लौटेंगी तो हम इसे हाथों-हाथ लेंगे। ऐसे कचरे को बेंगलुरु की एक उद्यमी महिला ने “यूज एंड थ्रो” यानी इस्तेमाल के बाद फेंक देने के बदले “यूज एंड रीयूज” यानी इस्तेमाल के बाद पुन: इस्तेमाल की अवधारणा को न केवल साकार किया बल्कि इसे उद्यम का रूप दिया। आज कोलकाता और बेंगलुरु में चल रहा यह अभिनव उद्यम न सिर्फ ठोस कचरे को पुन:इस्तेमाल (अपसाइक्लिंग) कर लोगों को सस्ती कीमत पर बेहतरीन उत्पाद मुहैया करा रहा है बल्कि सैकड़ों महिलाओं को रोजगार प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है। “इस्तेमाल करो और फेंको” की जीवन शैली से अलग हट कर एक नए मुकाम की ओर अग्रसर शैलजा रंगराजन से अनिल अश्विनी शर्मा ने बातचीत की

चीजों के पुन:इस्तेमाल (अपसाइक्लिंग) के इस आंदोलन के पीछे आपका लक्ष्य क्या है?

हमारा उद्देश्य उपभोग का एक ऐसा वैकल्पिक ढांचा देने की है जो सस्टेनेबल (टिकाऊ) हो और नवीन संसाधनों का इस्तेमाल नहीं हो। इसके जरिए हम “एक बार इस्तेमाल करो और फेंको” की जीवनशैली में बदलाव चाहते हैं। हमारा लक्ष्य है कि रोजमर्रा के इस्तेमाल में आनेवाली चीजों के लिए उच्च गुणवत्ता वाला वैकल्पिक ढांचा लेकर आएं।

अपसाइक्लिंग और सस्टेनबिलटी (निरंतरता) की दिशा में यह पहल शुरू करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

यह ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में मेरे काम का नतीजा है। मैंने बंगलुरु के एसडब्ल्यूएम में स्वयंसेवक के तौर पर काम किया था, जहां फोकस कचरे को ठीक तरीके से निपटाने और अलग करने पर था। लेकिन इससे मुझे यह अहसास हुआ कि अपशिष्ट का समुचित प्रबंधन इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं है। असल मुद्दा उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट की मात्रा का है। और वह हमारी वर्तमान जीवनशैली का नतीजा है।

इससे मुझे एक ऐसा वैकल्पिक ढांचा बनाने की प्रेरणा मिली जो टिकाऊ भी हो। अपसाइक्लिंग इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। यह तरीका अपनाकर हम कचरापट्टी का बोझ कम कर सकते हैं। साथ ही नए संसाधनों की अंधाधुंध खपत भी रोक सकते हैं।

इस पहल में आपने वंचित तबके की महिलाओं को ही क्यों शामिल करने की सोची?

पिछले दो वर्षों में आजीविका के साधनों का सृजन हमारे बिजनेस मॉडल का एक अहम हिस्सा रहा है। जब हमने संसाधनों के पुन:इस्तेमाल से बने उत्पादों की अपनी खुद की श्रृंखला बनाने का फैसला किया तो यह स्वाभाविक था कि हम उन महिलाओं और कारीगरों को मौका दें जो हमारे साथ काम करके अपने जीवन का स्तर बेहतर कर सकें। वे हमारे साथ-साथ बढ़ते हैं।

इन महिलाओं को सस्टेनबिलटी के काम में शामिल करने की सोच को कैसे बल मिला? क्या आप महिलाओं को सक्षम श्रमबल के तौर पर देखती हैं?

हमारी समझ है कि किसी एक महिला के सशक्तिकरण का प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है। जब घर के निर्णय महिलाओं द्वारा लिए जाते हैं तो परिवार को उसका दूरगामी फायदा मिलता है। और यह तब संभव है जब वे वित्तीय रूप से सशक्त हों। यही हमारा उद्देश्य है।

अत्यधिक मात्रा में पैदा हो रहे अपशिष्ट से निपटने की दिशा में इस मुहिम की क्या भूमिका हो सकती है? एक संसाधन से बनी चीजों को फिर से और कई तरीकों से इस्तेमाल करना हमेशा से भारतीय जीवनशैली का अहम हिस्सा रहा है। केवल नामकरण नया है जो हमने पश्चिम से उधार लिया है। अपसाइक्लिंग केवल अपशिष्ट की समस्या का समाधान भर नहीं है। इससे नए संसाधनों के अतिशय दोहन को भी रोका जा सकता है।

आप यह कैसे करती हैं ? यह पूरी प्रक्रिया क्या है?

सर्वप्रथम हम वैसे अपशिष्ट की पहचान करते हैं जो हमें उपलब्ध हो। कचरे से उत्पादों के लगातार निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि अपशिष्ट स्वच्छ हो और उसकी उपलब्धता लगातार बनी रहे। एक बार अपशिष्ट की पहचान कर लेने पर हम उसकी विशेषताओं को समझने पर काम करते हैं। अपशिष्ट की सफाई इस पूरी प्रक्रिया के लिए अहम अंग है क्योंकि उसके बाद ही अपसाइक्लिंग की प्रक्रिया शुरू होती है।

अगला कदम डिजाइनिंग का है जो काफी अहम है। हमारा उद्देश्य ऐसे उत्पाद प्रस्तुत करना है जो उच्च गुणवत्ता वाले हों और बाजार में उपलब्ध मशीन निर्मित विकल्पों की तुलना में खरे उतरें या उनसे बेहतर हों। सैंपलिंग और अनुसंधान की प्रक्रिया खत्म होने के बाद हम उत्पादन की योजना बनाते हैं। हम अपने उत्पादों की बेहतरीन गुणवत्ता के साथ ग्राहकों की पसंद को ध्यान में रखकर डिजाइनों पर भी काम जारी रखते हैं।

पर्यावरणीय स्थिरता (एनवायरमेंट सस्टैनबिलिटी) के क्षेत्र में आपकी कोई ऐसी उपलब्धि जिसे आप साझा करना चाहती हों?

आज तक हमने कुल मिलाकर लगभग 30 टन कचरे को डंप करने से रोका है। इस अपशिष्ट को हम उत्पादन प्रक्रिया में वापस लेकर आए जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।

आपकी समझ से हमारे देश में प्रमुख प्रदूषक कौन-कौन से हैं? उनकी रोकथाम के लिए क्या उपाय सुझाएंगी?

हमारा देश अति-उपभोग की बीमारी से ग्रस्त है। इसलिए जरूरी है कि हर व्यक्ति इस समस्या के समाधान में थोड़ा ही सही लेकिन अपना योगदान दे। किसी भी रूप में प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें। पानी के लिए अपनी खुद की बोतल रखने जैसी छोटी-छोटी चीजें कचरा उत्पादन में कमी ला सकती हैं। वैसी चीजों के इस्तेमाल से बचें जो एक ही बार इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाती है।

कपड़ा उद्योग से निकलनेवाला अपशिष्ट भी इसी श्रेणी में आता है। “फास्ट फैशन” से बचने का हर संभव प्रयास करते हुए हमें केवल वैसे उत्पाद खरीदने चाहिए जिनकी हमें आवश्यकता हो और जिनके उत्पादन के पीछे एक पूरी कहानी हो। कुल मिलाकर हमें अपनी पिछली पीढ़ियों की जीवनशैली का अनुसरण करने की आवश्यकता है। हमें यह देखना चाहिए कि उनके समय में क्या अलग था। हमें अपने सारे सवालों के जवाब वहीं मिलेंगे।

अपसाइक्लिंग भारत में एक बार फिर से प्रचलन में आ रहा है, लेकिन कहा जा रहा है कि यह अभी तक आम जनता की पहुंच से बाहर है। इस तथ्य में कितनी सच्चाई है?

यह सच नहीं है। जागरुकता की कमी से इस अवधारणा को अमीर तबके के साथ जोड़ दिया गया है। इसके अलावा, अपसाइकल्ड उत्पाद मूल्य निर्धारण के मामले में सस्ते मशीन उत्पादित चीजों के साथ टक्कर नहीं ले सकते हैं क्योंकि कचरे के साथ काम करने की प्रक्रिया का एक अहम तत्व अपशिष्ट की सफाई और अनूठे डिजायनों का निर्माण भी है। इस प्रक्रिया में डिजायन उपलब्ध सामग्री को ध्यान में रखकर बनाया जाता है जो साधारण प्रक्रिया के उलट है और जिसके फलस्वरूप इंसानी दखल की जरूरत पड़ती रहती है। साथ ही यह भी अहम है कि यह सारा काम ऐसी जगहों पर न हो जहां श्रम का शोषण किया जाता है।

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.