सरकार अपनी छवि चमकाने के लिए आंकड़ों से क्यों खेल रही है?
जहां एक तरफ आंकड़ों को जारी होने से रोका जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारी संवाद आंकड़ों पर आधारित हो रहा है
उल्टी गिनती शुरू
राज्यों में इस साल और लोकसभा के अगले साल होने वाले चुनाव में किसानों के मुद्दे अहम भूमिका निभाएंगे।
ग्रामसभा को चाहिए असली ‘विकास’
पंचायती राज के तीस साल पूरे होने पर ग्राम सभाओं का उत्थान, स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था के जवाबदेह होने की उम्मीद जगाता है।
यह संभावित स्टैगफ्लेशन यानी उच्च मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था में ठहराव है
विश्व बैंक का अनुमान है कि 2022 में वैश्विक विकास दर घटकर 2.9 फीसदी रह जाएगी, जो 2021 में 5.7 प्रतिशत थी, जबकि विकासशील ...
Good while it lasted - IV: Anthropocene epoch & mass extinction
Humans will be the first to have a new geological epoch named after the species — an unfortunate event denotative of our irreversible …
एक ऐसा गांव जिसमें इमली के पेड़ों से आंकी जाती है जीडीपी
जब प्रमुख खाद्य अनाज सस्ता हो रहा है, तो जंगलों के किनारे बसने वाले इस गांव में खेती से इतर, इमली के पेड़ अर्थव्यवस्था ...
बजट 2022-23: भविष्य की आधारशिला कितनी मजबूत?
केंद्रीय बजट 2022-23 में मौजूदा साल तक निर्धारित विकास लक्ष्यों पर बात नहीं की गई, लेकिन देश को 2047 तक एक नई यात्रा पर ...
कोविड 19: वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और जनस्वास्थ्य पर अभूतपूर्व संकट
महामारी के वक्र को समतल करने का अर्थ आर्थिक शिथिलता भी है। एक असमान विश्व में इसका सबसे ज्यादा बोझ कौन उठाएगा?
At 25, Panchayati Raj has become a powerful development instrument
Panchayats have become a kind of systematic investment plan for political parties to deepen their influence
कोरोना महामारी लोगों की बेतहाशा मौत के रूप में ले सकती है बड़ी कीमत
इसकी भविष्यवाणी भी की गई थी, लेकिन हमने कभी नहीं माना कि संपन्न दुनिया में एक ढहती हुई संरचना हम सभी को अपना शिकार ...
सूखे का दंश: सामान्य मॉनसून सूखे से बचने की गारंटी नहीं
सूखा एक स्थायी आपदा है जो हर साल 5 करोड़ भारतीयों को प्रभावित करता है। देश का 33 प्रतिशत हिस्सा लंबे समय से सूखे ...
COVID-19: A long economic quarantine
Forecast of high temperature, erratic rains and cyclone push India’s poor into a point of no survival return
Amrit Kaal vs New India: Why do we buy metaphysical political agenda in deep economic distress
India has not met any of the targets fixed for 2022; But ‘Amrit Kaal’ has now become the government’s vision for …
क्या भारत फिर कृषि प्रधान बनेगा?
खरीफ का मौजूदा रकबा उम्मीद जगाता है क्योंकि कोविड काल में अधिक से अधिक किसान खेती की ओर लौट रहे हैं
क्या कोविड-19 पर काबू पाया जा सकता है?
दुनिया भर में कोरोनावायरस की वजह से 40 करोड़ से ज्यादा लोग एक दूसरे से दूर आइसोलेशन में रह रहे हैं
Changing weather will affect living standards of half of India's population
2018 was the sixth-warmest and had the sixth-lowest monsoon in the last 117 years, says IMD
क्यों है दुनिया को पलायन के एक और नई लहर की जरूरत ?
प्रवासी निकट भविष्य में विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को बनाए रखेंगे क्योंकि उनकी कामकाजी आबादी रिकॉर्ड स्तर पर कम हो गई है।
अभूतपूर्व खाद्य मूल्यवृद्धि : खड़ा कर रहा जीवन यापन का संकट
भारत के वित्त मंत्रालय ने पहले ही चेतावनी दी है कि विभिन्न कारणों से 2023 में खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी। चरम मौसम की ...
विश्लेषण: खाद्य प्रणाली में सुधार से किसे पहुंचेगा फायदा?
23 सितंबर को आयोजित यूएन फूड सिस्टम्स समिट का उद्देश्य फंडिंग में कटौती किए बिना, इस सेक्टर से होने वाले भारी उत्सर्जन को कम ...
जानिए कैसे कोविड-19 ने 2020 में भारत में बदल दिया अपराध का प्रोफाइल
आईपीसी की धारा 188 के तहत 2019 में 29,469 मामले दर्ज किए गए। वहीं 2020 में देश भर में 6,12,179 मामले दर्ज किए गए। ...
अगले 45 सालों में उच्चतम स्तर पर होगी वैश्विक जनसंख्या
लांसेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 2100 तक भारत सर्वाधिक जनसंख्या और प्रवास वाला देश बन जाएगा
रहिमन पानी राखिए
सूखे के निपटने के लिए 150 वर्षों के अनुभव के बाद भी भारत इस दिशा में कारगर कदम क्यों नहीं उठा पाया है?
The countdown begins
Irrespective of being left or right in orientation, the next elections will be about rural issues
Droughts: misery in slow motion
Successive droughts and water scarcity are causing long-term harm in ways that are poorly understood and inadequately acknowledged
Agriculture key to creating jobs in India's largely informal economy
The NDA government is repeating the mistake of the Vajpayee regime by relying on the formal sector for job creation